हरे-भरे उद्यानों, सुंदर झील, सुगंधित पुष्प, मयूर आदि पक्षियों के कलरव व देशी गायों की हुकार के बीच प्रातः बेला में ब्रह्मचारियों, आचार्यों, गुरुकुल के विद्यार्थियों के मुख से उच्चरित यज्ञमंत्र की ध्वनियों, गायत्री व शिव मंत्रजप, महामृत्युंजय मंत्र की हृदयस्पर्शी धुन, ओंकार कुटी, कैलाश शिखर से आती ऊँ ध्वनि, देवालयों में चलते वेद-गीता आदि के लयात्मक पाठ से ओतप्रोत सम्पूर्ण आश्रम परिसर में पहुंचकर कोई विरला ही होगा जो देवत्व भावों से न भर उठे। इसी के साथ आश्रम स्थित दिव्य यज्ञशाला में महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ के संस्कृति निष्ठ विद्यार्थियों द्वारा यज्ञभगवान को समर्पित वेद मन्त्रें के साथ वनौषधीय जड़ीबूटियों एवं देशी गोघृत युक्त यज्ञाहुतियों से उठता सुगंधित धूम्र समूचे आनन्दधाम आश्रम परिसर सहित निकटवर्ती क्षेत्र तक को अलौकिक देवमय बना देता है। ऐसे तीर्थमय वातावरण में निवास, आवास, सयन एवं ब्राह्ममुहूर्त बेला में जागरण का अवसर हर किसी के लिए सौभाग्य ही कहेंगे।
आनन्दधाम में प्रातः चार बजे जागरण के साथ आश्रम दिनचर्या का शुभारम्भ होता है। यद्यपि पूज्य गुरुदेव प्रातः 3 बजे ही अपनी साधना में बैठ जाते हैं और आठ बजे अपनी साधना सम्पन्न करके वे कैलाश शिखर, पशुपति नाथ शिवालय सहित सभी देवालयों के दर्शन-अर्चन-बंदन, हवन पूर्ण कर लेते हैं। इसी के साथ बाहर से पधारे श्रद्धालुओं का गुरुदर्शन, भेंट का क्रम पूरा होता है और गुरुदेव आश्रम की गौशाला पहुंचकर गौ चारा आदि खिलाकर अपने आवास वापस आते हैं। वहीं आश्रमवासी, गुरुकुल के विद्यार्थी, वृद्धाश्रम की मातायें आदि नित्य प्रार्थना, योग, प्राणायाम, यज्ञ व मन्दिरों में देवदर्शन-गुरुदर्शन से अपनी प्राण ऊर्जा को प्रखर करने का अभ्यास करती हैं।
इस प्रकार पूरा आश्रम परिसर दिव्य आध्यात्मिक प्रकाश व आभा से अनुप्राणित रहता है। तत्पश्चात आश्रम के कार्यालय खुलते हैं और सभी अपने अपने दायित्व के साथ कर्मयोग में जुट जाते हैं। सायं काल कार्यालयों के बाद मानसरोवर झील पर यज्ञ-हवन एवं कैलाश शिखर पर भगवान महाकाल की आरती का दृश्य अद्भुत मन को आध्यात्मिक तरंगों से भरने वाला होता है। इसमें आश्रमवासियों के साथ पूज्य गुरुदेव, श्रद्धेया डॉ- अर्चिका दीदी स्वयं भी शामिल होती हैं। सायंकालीन इस सामूहिक आरती के पश्चात देर शाम गुरुकुल के विद्यार्थियों का देववाणी में मंगल प्रार्थनाओं के साथ आश्रम परिसर की परिक्रमा करना अंतःकरण को स्वर्गिक आनन्द से भर देता है।
यद्यपि सम्पूर्ण आनन्दधाम आश्रम परिसर गुरु की तपः ऊर्जा से देवमय है, यही कारण है कि साधक में यहां का कण-कण आध्यात्मिक अनुभूतियां जगाते हैं। आत्मनिर्माण, आत्मसुधार, आत्म अवलोकन की प्रेरणा देते हैं। यहां के पशुपतिनाथ मन्दिर, आनन्दधाम मन्दिर, नवग्रह मण्डल मन्दिर, मानसरोवर देवालय, कैलाश शिखर मन्दिर, आेंकार कुटीर, चरणपादुका कुटी, गणेश मन्दिर, गौशाला स्थित श्रीकृष्ण मंदिर, नवग्रह वाटिका आदि जागृत देवालयों का दर्शन-प्रार्थना करके असंख्य लोग अपने सौभाग्य सराहने, सुख-समृद्धि से भरने में सफल हुए हैं। इन्हें भौतिक आत्मिक मनोकामनाओं की पूर्ति के प्रत्यक्ष केंद्र कह सकते हैं। इसीप्रकार कामधेनु गौशाला भी अपने में ऐसा प्रत्यक्ष देवस्थल है, जिसकी गौ माता का तृणमात्र से सेवा करके कोई भी अपने दुर्भाग्य से मुक्त हो सकता है।
आश्रम की सम्पूर्ण आध्यात्मिक ऋद्धि-सिद्धि दायी विशेषताओं के पीछे कार्य करती है, यहां के युगसंत पूज्य सदगुरु श्री सुधांशु जी महाराज की अपनी तप साधना, जो आश्रम निर्माण के दिन से लेकर अनवरत जारी है। यदि नित्य कुछ समय की मानसिक तीर्थ यात्रा साधक अपने घर बैठे भी कर लें, तो गुरुवर अपने तप-पुण्य का अंश जोड़कर उसकी इच्छा पूरी कर देते हैं। पूज्य गुरुदेव के करुणाकर स्वभाव से यह आनन्दधाम परिसर हर किसी को अपना घर अनुभव होता है। यहां पधारने वाले व इससे जुड़ने वाले हर किसी के लिए यह अनुदान पा लेना सामान्य है।
इसके बावजूद जिन्हें आत्म विकास-आत्म उत्थान, आध्यात्मिक उत्थान की विशेष चाहत है, परम अनुभूति से जुड़ने की अभीप्सा है, उन्हें गुरुदेव के तपःपूर्ण आश्रम के अणु-परमाणुओं को अंतःकरण में आत्मसात करते हुए गुरु मार्गदर्शन में चलने वाले आध्यात्मिक प्रयोगों से होकर गुजरने की जरूरत है। इसके लिए पूज्यवर के ध्यान, शिववरदान साधना, वरदान सिद्धि साधना, नवजीवन ध्यान, सत्संग, स्वाध्याय से लेकर उनके बताये प्रयोगों में भागीदार बनना आवश्यक है। साथ ही गुरुदेव द्वारा संचालित धर्मादा सेवाओं में से किसी एक सेवा में अवश्य हाथ बटाना भी जरूरी है। जो ऐसी नियमितता अपनाते हैं, उनके ब्रह्मरंध्र्र का ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से सुयोग सहज बैठने लगता है, इसके असंख्य उदाहरण भरे पडे़ हैं।
कहते हैं जिस भूमि पर वर्षों से नियमित यज्ञ, आध्यात्मिक अनुष्ठान, आरती, देवपूजन, गुरुदर्शन, गुरुसाधना, अनवरत करोड़ों मंत्रें की साधना होती आ रही हो, वह स्थल स्वतः सिद्धतीर्थ बन जाता है, वहां साधकों की मनवांछित मनोकामनायें सहज पूरी होती हैं। आनन्दधाम आश्रम की यह दिनचर्या अपने निर्माण काल से ही इसी तरह अनवरत है, इसलिए यह आनन्दधाम अपने में सिद्धधाम भी कहा जा सकता है। आप भी पधारें और जीवन को आध्यात्मिक-भौतिक अनुदानों से भरकर सौभाग्यमय बनायें।
12 Comments
Jai Guru Dev ji,
Ye batayen ki aane ke liye booking karwani hoti h ya jab chahe aa sakte h
सादर चरण स्पर्श गुरूजी
गुरुदेव के दिव्य दर्शन हेतु …नये साधक कैसे संपर्क कर सकते है…. वहां एक दिन प्रवास के लिए आ सकते हैं क्या…जय गुरुदेव
2 days
ये धाम किस स्थान पर है?
Nagloi najfgar road delhi
सत्य है एक बार जाने के बाद वापस आने का मन नही करता।सदगुरूजी कोटि कोटि प्रणाम ।
Om
शत् शत् नमन गुरुदेव
Kya guruji aaj milege
I want to free serve life time for your ashram
One day stay at ashram