अक्षय तृतीया वैशाख मास की तृतीय दिवस में मनाई जाती है! हमारे शास्त्रों में इसका बहुत विशेष महत्व बताया गया है! यही वह तिथि है जब भगवान विष्णु का अवतार हुआ, गंगा उतर कर धरती पर आई, ऋषि वेदव्यास ने इसी दिन महाभारत की रचना की शुरुआत की! इसलिए यह साधरण दिवस नही है! इसकी महत्ता को समझना चाहिये, अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन दान पुण्य की बहुत परंपरा है! कहा जाता है इस दिन किया गया दान अनंत फलदायी होता है !
इसलिए तन से मन से धन से ,अपना कुछ अंश धार्मिक कार्यों में लगाने की परंपरा है! शरीर से भी सेवा करें, धन का भी अधिक से अधिक सहयोग अपने गुरुकार्यों में करें ! क्योंकि दिया गया दान व्यर्थ नहीं जाता अपितु वह कई गुना बढ़कर आपको वापस मिलता है!
जिस प्रकार आप गेंहू के सौ दाने बोते हो तो बदले में हजारों गुना बढ़कर आपको फसल मिलती है! उसी प्रकार किया गया दान , हाथों से की गई सेवा सब आपके खाते में पुण्य का बाग बनकर एकत्रित हो रहा होता है! साधक लोग अपनी साधना का प्रारंभ भी अक्षय तृतीया से करते हैं यह प्रार्थना करते हुए कि हे प्रभु! हमारी भक्ति अक्षय हो, कभी क्षीण न पड़े, हम भक्ति मार्ग पर आगे से आगे बढ़ते जाएं, हमारा ध्यान सफल हो और हम अपने जीवन को एक सफल जीवन बना सकें!
मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना, मूर्ति स्थापना, मंत्र पाठ, जाप, हवन आदि का आयोजन किया जाता है! हमें भी इस दिन को विशेष दिन बनाना चाहिए कुछ विशेष कार्य करके क्योंकि यह साधारण दिन नहीं है। इस दिन देवताओं की विशेष कृपाएँ धरती पर आ रही होती हैं ! कुछ लोग इस दिन सोना या आभूषण खरीदना शुभ मानते हैं
जिससे उन पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहे! परंतु सबसे अधिक मूल्यवान है! आपकी भक्ति! इस संपदा को जितना एकत्रित कर सकते हो करो क्योकि जन्मों जन्मों तक यही आपका साथ निभाएगी! इसलोक में भी और परलोक में भी! सभी को अक्षय तृतीया की शुभकामनाएं , सभी का मंगल हो।भगवान विष्णु और सदगुरुदेव की अनंत कृपाओं के हम अधिकारी बन सकें -ऐसी प्रार्थना करते हैं !