शास्त्र मनुष्य को आदेश देते हैं:
तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्।
पश्येमशरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतम्।
प्रब्रवाम शरद् शतमदीनाः स्याम शरदः शतम् भूयश्यच शरदः शतात्।।
अर्थात् देवताओं द्वारा प्रतिष्ठित जगत के तेजस्वरूप तथा दिव्य तेजोमय जो भगवान सूर्य पूर्व दिशा में उदित होते हैं। उनकी कृपा से हम सौ वर्षों तक देखें। सौ वर्षों तक हमारी तेज त्योति बनी रहे, सौ वर्षों तक सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करें। सौ वर्षों तक हमारी सुनने की शक्ति बनी रहे, सौ वर्षों तक मधुर वाणी से युक्त रहें। सौ वर्षों तक किसी के सामने दीनता प्रकट न करें। सौ वर्षों से ऊपर भी बहुत कालतक हम देखें, जीयें, सुनें, बोलें और अदीन रहें। (शुक्लयजुर्वेद)
इस मन्त्र में सौ वर्षों तक जीने की कामना है, किन्तु महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जीवन कैसे जियें? मनुष्य जीवन में किस रास्ते पर चलें, क्या सोचें, क्या कर्म करें आदि-आदि अनेक प्रश्न हैं, जिनका उत्तर जरूरी है। इस का सटीक उत्तर कठोपनिषद् मे दिया गया है जब बालक नचिकेता के बार-बार अनुरोध पर यम ने उसे ब्रह्मविद्या का ज्ञान दिया।
यम ने कहा-
अन्यच्छ्रेयोन्ययदुतैव प्रेयस्ते उभे नानार्थे पुरुषँसिनीतः।
तयो श्रेय आददाननस्य साधु भवति हीयते{थूर्थाद्य उ प्रेयो ववृणीते।।
अर्थात् यमराज ने नचिकेता से कहा – श्रेय (कल्याण) का मार्ग और प्रेय (सांसारिक भोग्य पदार्थों) का मार्ग दोनों अलग-अलग हैं। यह दोनों भिन्न-भिन्न परिणामों वाले हैं, दोनों ही मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। उन दोनों में से श्रेय मार्ग ईश्वरीय मार्ग है, जो कल्याण करने वाला है और प्रेय मार्ग संसार की ओर जाने वाला मार्ग है, जो सांसारिक वस्तुओं और सुखों में रुचि पैदा करता है और मनुष्य को मानव जीवन के उद्देश्य से भटकाता है।
जीवन में शास्त्रोक नियमों का पालन करने का उपदेश देते हैं, ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता को स्वीकार करें, उसे अपने अन्तर्मन में बसायें, उनके पावन नाम का प्रतिदिन सिमरन करें, हर कार्य करते हुए ईश्वर को हाजिर-नाजिर मानें, इन्द्रियों पर नियन्त्रण करें। वे निर्देश देते हैं कि संसार से प्रेम करो, मोह नहीं, धन कमाओ, पर अपने सुख के लिये धन के दास मत बनो, क्योंकि आसक्ति, चीजों से लगाव दुख का कारण है। काम, क्रोध, मोह, लोभ से बचो, वाणी में माधुर्य बनाओ, अहंकार मत करो, मृत्यु से मत डरो, अच्छे कर्म करो, जो तुम्हें अच्छा नहीं लगता, उसे दूसरों पर मत थोपो, भजन, भोजन और भ्रमण का जीवन में नियम बनाओ, गुरु के बचनों में श्रद्धा रखो, उनका जीवन में पालन करो, अपनी कमाई को पवित्र रखो, मतलब गलत तरीकों से कमाई नहीं करो, पड़ोसी से, देश से प्रेम करो। हिंसा मत करो, न वाणी की, न कर्म की। माता-पिता, बुजुर्गों की सेवा करो। तुम्हारा स्वर्ग तुम्हारे हाथ में है। यह सब जीवन में करें, तो सौ सालों से अधिक जियेंगे।
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सुन्दरं