हमे भगवान ने यह जीवन दिया है जो अनमोल है , इस जीवन के मूल्य को कैसे बढ़ाना है इस पर हमें लगातार विचार करना होगी !
जब तक हम आत्मशोधन के लिए प्रयास नही करेंगे तब तक हमारा मार्ग अंधकारमय ही बना रहेगा ।
प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपनी आत्मा को कैसे शुद्ध बनाना है, उसमे पवित्रता कैसे भरनी है इन तमाम बिंदुओं पर लगातार चिंतन करते रहना चाहिए !
सर्वप्रथम अपनी शुद्धि का ध्यान रखें मन कि, वस्त्र की, शरीर की, लेन देन की , दृष्टि की सभी शुद्धियों का लगातार ध्यान रखना होगा क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में यही संदेश दिया है कि आत्म उत्थान के लिए पहला काम पवित्रता ही है !
पवित्र ह्रदय में ही परमात्मा का निवास होता है, जब आप वाह्य आडंबरों से दूर, प्रदर्शन की दुनिया से हटकर आत्मदर्शन की ओर चल पड़ते हैं तभी आपके जीवन मे कल्याण होता है !
अपनी आत्मा को अधिक से अधिक पवित्र बनाये रखने के लिए हमे आध्यात्म से जुड़ना होगा , सात्विकता जितनी अधिक बढ़ती जाएगी उतना ही आपका उद्धार स्वतः ही होता जाएगा !
अनुशासित जीवन, मर्यादित जीवन और शुद्ध पवित्र आत्मा, यह सभी आपकी सहायता करेंगे आपको ऊंचा उठने के लिए, नियम ही व्यक्ति को जिताता है , अपने दृढ़ निश्चय केसाथ अपने उद्देश्य में बढ़ते जाइए !
जब आप एकांत में बैठकर अपना विश्लेषण करते हैं वह सबसे अधिक सहायक होता है आपकी आध्यत्मिक प्रगति के लिए अपने दोषों, खोटों पर विचार करना और उन्हें अपने जीवन से बाहर निकलने का दृढ़ संकल्प ही आपको ऊपर लेकर जाता है !
इसलिए अपनी आत्मा को ऊंचा उठाते जाओ, सदगुरु की शरण इसमें अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि गुरु की प्रेरणा चिंगारी का कार्य करती है जो मन बुद्धि के अंधकार को , अज्ञान के अंधकार को दूर करके प्रकाश से भर देती है और आपका जीवन गुरु के प्रकाश से आलोकित हो उठता है !
अपना उद्धार स्वयम करो– यही गीता का संदेश भी है और गुरु का आदेश भी, हमे इसी सूत्र को पकड़ते हुए आगे बढ़ना है और जीवन मे ज्ञान का प्रकाश भरकर अंधकार को आमूल नष्ट करना है !