सत्संग की महिमा | आत्मचिंतन के सूत्र | Sudhanshu Ji maharaj

सत्संग की महिमा | आत्मचिंतन के सूत्र | Sudhanshu Ji maharaj

आत्मचिंतन के सूत्र

आत्मचिंतन के सूत्र

सत्संग की महिमा

सत्संग का अर्थ है सत्य का संग — यानि जो चर्चा हमे सत्य का बोध कराती है वही सत्संग है , सत्य है परमात्मा ओर उसकी अनुभूति हमे सत्संग से ही मिलती है !

महान पुरुषों के सानिध्य में बैठकर, उनके औरा से जुडकर हमे महान विचारों की प्राप्ति होती है जो हमे ऊंचाई की ओर अग्रसर करते हैं , हमे सच की राह पर चलना सिखाते हैं !

सत्संग का अर्थ यह नही की नाच गा कर आप अपने घर चले जाएं – अधिकांशतः इसी को लोग सत्संग समझते हैं : यह तो धार्मिक मनोरंजन हुआ , जिस प्रक्रिया से आपका भगवान से मिलन तो हुआ ही नहीं !

वास्तविक सत्संग तो आपको कनेक्ट करता है आपके प्रभु से, जब तक आप कनेक्ट नही होंगे – तब तक आपकी भक्ति में पंख नहीं लगेंगे !

इसलिए हमें चुनाव करना आवश्यक है कि जहां हम जा रहे हैं वहां से कितनी सात्विक ऊर्जा ग्रहण करके आये हैं – जब तक आपके अंदर वह ऊर्जा काम नही करेगी, तब तक परिवर्तन असम्भव है !

इसलिए सत्संग का अर्थ है कि हम अपने गुरु के वचनों को श्रद्धापूर्वक सुनें ही नहीं- एक एक वाक्य को अपने ह्रदय में उतारें ओर उसका अनुशरण करते हुए अपने जीवन को सर्वोच्च सत्ता यानी परमेश्वर की निकटता प्राप्त कर सकें !

सदगुरुका जीवन मे आना साधारण बात नहीं- उनके चरणों मे बैठकर वेद शास्त्रों के उन महान संदेशों को सुनो और समझो जो हमारे ऋषि मुनियों ने अपनी तपस्या के बल से प्राप्त किया और जन कल्याण के लिए बांटा : प्रत्येक वचनअनमोल है !

सदगुरु की वाणी अमृतवाणी होती है – जब गुरु सत्संग में बरसते हैं तो धरती अम्बर सब मानो भीग गया हो : जन जन के ह्रदय को छूकर अपनी वाणी उन तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं –यही वास्तविक सत्संग है !

1 Comment

  1. Ram Naresh Prasad says:

    बहुत ही अच्छे विचार हैं आपके गुरुजी के चरणों मे कोटि कोटि नमन, हमारा भारत हिन्दु राष्ट्र बनें जहाँ सभी सनातन वैदिक धर्म और संस्कृति के अनुसार सुखपूर्वक सब सत्संग करें और आत्मज्ञानी बनें

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