भगवान शिवशंकर के अनेक रूपों में सर्वाधिक पूज्य है उनका लिंग रूप। लिंगरूप में ज्योतिर्लिंग, स्वयम्भूलिंग, नर्मदेश्वर लिंग, अन्य रत्नादि, धात्वादि लिंग एवं पार्थिवादि लिंग होते हैं। सौभाग्य सम्पूर्ण भारत में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सभी लिंगों की अपनी महिमा है।
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् , उज्जयिन्यां महाकालमोंकारंममलेश्वरम्
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम् , सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्रयंबकम गौतमीतटे , हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये
पूज्यवर कहते हैं ‘‘हर साधक सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन हेतु देशभर का भ्रमण नहीं कर सकते, अतः सौभाग्य सभी तीर्थों के जल-रजकणों के साथ यहां आनन्दधाम परिसर में 12 ज्योतिर्लिंगों की प्राण-प्रतिष्ठा कर दी है। जिनका निर्धारित अनुशासन के साथ साधक दर्शन लाभ ले सकें।’’ प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का गुरु अनुशासन में दर्शन की महिमा आइये समझते हैं-
श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजन से व्यक्ति जरा रोग-व्याधि से मुक्ति पाते देखे गये हैं।
प्राचीन काल में ब्रह्मा जी की आज्ञा से चन्द्रमा ने मृत्युंजय का अनुष्ठान करके भगवान आशुतोष से अमरत्व प्राप्त किया था। जैसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पर माह की प्रत्येक पूर्णिमा को पूर्णता का वरदान प्राप्त करने श्रद्धालु पहुंचते हैं, वैसे ही आनन्दधाम तीर्थ में भक्तों के
कल्याणार्थ यह ज्योतिर्लिंग स्थापित करके गुरुदेव ने आशीषित किया है। भक्त जब भी गुरुदर्शन के लिए
पधारें, तो इस ज्योतिर्लिंग का आर्शीवाद अवश्य लें।
दक्षिण के कैलाश स्थित इस स्थल पर गणेशजी ने माता और पिता को आसन पर बैठाकर उन्हीं की सात बार परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा पूर्ण करने का आशीष पाया था। इसप्रकार बुद्धि विनायक गणेशजी को ऋद्धि और सिद्धि का लाभ मिला।
कार्त्तिकेय की इच्छा से भगवान शंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में वहाँ प्रकट हुए, जो श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग नाम से आज प्रख्यात है। जो साधक परिवार में सुख-समृद्धि चाहते हैं, वे इसका दर्शन अवश्य करें।
श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन नगर में स्थित हैं, जहां ब्राह्मणों को भोजन कराने से समस्त पापों का नाश होने की मान्यता है, दरिद्र की दरिद्रता तक नष्ट होती है। हर पीड़ित के रुदन को दूर करने के लिए ही भोलेनाथ अतिप्रकाश
युक्त इस ज्योतिर्लिंग में स्थित हैं। देदीप्यमान यह ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर रूप है। हर भक्त आश्रम आकर इसके सामने अपनी पीड़ा कह सकता है।
नर्मदा नदी की दो धाराओं के बीच ओंकारेश्वर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग धन-धान्य से भरपूर करता है। आनन्दधाम आकर इन मनोभाव से भी लिंग का दर्शन करके लाभ पा सकते हैं।
शास्त्रों में वर्णित है कि केदारेश्वर के दर्शन बिना बद्रीनाथ की यात्र अधूरी मानी जाती है। यहीं महातपस्वी श्रीनर और नारायण की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और तब से श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में वास कर रहे हैं। इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन जन्म-जन्मांतरों के बंधन काटता है। गुरुनिर्देशित साधना में रत साधकों के लिए इसका दर्शन आध्यात्मिक फलदायी माना गया है। भक्त गुरुधाम आकर आत्म उत्थान का आशीष इससे ले सकते हैं।
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग भक्तों के मोक्ष के द्वार को खोलता है। गुरुधाम में इसके दर्शन से गुरुकृपा भी जुड़ती है।
यह ज्योतिर्लिंग वाराणसी काशी विश्वनाथ के रूप में विराजमान है। कहते हैं प्रलयकाल में भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं। साधक सदैव अक्षत रहने का सौभाग्य इसके दर्शन से पाते हैं।
महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित यह लिंग गौतम ऋषि तथा माँ गोदावरी की प्रार्थना से प्रकट हुआ। भौतिक एवं आध्यात्मिक हर तरह की प्रगति का आशीर्वाद देता है यह ज्योतिर्लिंग।
जो अपना सिर कटाने को तैयार है, उस पर शिवजी प्रसन्न होते हैं। अर्थात अपने अहम भाव सहित अपना सर्वस्व जो शिव को समर्पित करने को तैयार है, उसे अक्षय शक्ति से यह ज्योतिर्लिंग भर देता है। यहां परम समर्पित होने का संदेश मिलता है। भक्तों को यह ज्योतिर्लिंग अहम मुक्त करता है।
नागेश्वर भगवान का स्थान द्वारिका में है। मान्यता है कि जो साधक किसी भी परिस्थिति में अपने आत्मतत्व से नहीं डिगते, उन पर यह ज्योतिर्लिंग परम कृपा करके अजड्ड वरदान से भर देता है। सत्य के साधक को भगवान शिव कारागार में भी ज्योतिर्लिंग के रूप में दर्शन देकर आशीष देते हैं। भगवान शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश पड़ा।
11. सेतुबन्धा रामेश्वर
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम द्वारा हुई। उन्होंने समुद्र के तट पर बालू से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया और विजय प्राप्ति का आशीर्वाद पाया। आशय है कि लोकोपकारार्थ जीवन जीने वाले की हर प्रार्थना यह ज्योतिर्लिंग स्वीकार करता है।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप में भगवान शिव लोककल्याण के लिए वास करने लगे और घुश्मेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। हर अमीर-गरीब, पापी-दानी-पुण्यात्मा को अपनत्व का आशीष देकर कृपा करते हैं भगवान शिव।
पूज्यवर द्वारा प्रतिष्ठित 12 ज्योतिर्लिंग स्वरूप दिव्य कृपा से साधक जुड़ें, दर्शन करके इनके मूल स्थापनाओं तक पहुंचने की प्रेरणा जगायें, गुरुकृपा पायें और जीवन को सौभाग्य शाली बनायें, दुर्भाग्य को दूर करें।
सद्गुरु इस धरा पर शिव व विष्णु स्वरूप स्थान पाते हैं। इसीलिए गुरु का आश्रम शिष्य के लिए शिव व विष्णुधाम कहलाता है। सौभाग्य लाखों शिष्यों का अपने गुरुधाम आने एवं गुरुकृपा पाने के पीछे साक्षात शिव व विष्णु का आशीष-कृपा पाकर जीवन को धन्य बनाना उद्देश्य होता है। यही नहीं सद्गुरु भी अपने तपःस्थली को उन दिव्य धाराओं की शक्ति ऊर्जा से सतत ओतप्रोत करने का हर सम्भव आध्यात्मिक प्रयोग करते रहते हैं। इन्हीं तपःपूर्ण प्रयोगों के अंतर्गत पूज्य सद्गुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज ने अपने शिष्यों के लिए अपने तपःक्षेत्र आनन्दधाम आश्रम में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिष्ठा की, साथ भगवान पशुपति नाथ के विग्रह के साथ शिवालय स्थापित कराया, ताकि श्रद्धालु साधक एक ही साथ सभी ज्योतिर्लिंगों का दर्शन-कृपा पा सकें और अपने मूल स्त्रोत्र तक जाने की प्रेरणा पायें।
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