हमारा देश बुजुर्गों का सम्मान करने वाला देश है, राम, श्रवणकुमार का देश है, जहां अपने पिता की आज्ञा से राज्याभिषेक को छोड़कर जंगल की ओर चल देने की परम्परा है। वह भी इस भाव से कि पिता का आदेश है, तो निश्चित ही इसमें हमारा कोई न कोई हित अवश्य छिपा होगा।
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अपने बुजुर्गों व बड़ों के लिए यौवन का सुख, संसाधन, पहचान, समाज, समृद्धि आदि सब कुछ छोड़कर निकल पड़ने में धर्महित, देशहित, लोकहित वाली हमारी संस्कृति है। इस प्रकार बुजुर्गों का अशीर्वाद महत्वपूर्ण पूजी मानी जाती है, बुजुर्गों के संकल्पों के अनुरूप जीवन जीते हुए मिली पहचान, सम्मान को जीवन का सौभाग्य मानकर स्वीकार करना यहां की थाती रही है।
इस प्रकार जहां एक ओर प्राचीनकाल से माता-पिता, बुजुर्गों के सम्मान-मान वाली हमारी राम-कृष्ण की प्रेरणाओं वाली संस्कृति रही है। सम्पूर्ण विश्व में संयुक्त परिवार की रीढ़ माने जाने, परिवार के वरिष्ठ-बुजुर्ग को जीवन पूर्ण हो जाने के बाद भी उनका सम्मान बनाये रखने वाली भारतीय परम्परा आज तक नमन की जाती है। इस प्रकार समाज के हर असहाय, कमजोर, निर्बल को सहारा देना हमारी परम्परा है, इससे उसे खुशी मिलती है और सहारा देने वाले को बदले में पुण्य प्राप्त होता है, इसलिए कहते हैं कि जिस समाज में बुजुर्गों का सम्मान न हो, उस समाज का विकास रुक जाता है।
वृद्धावस्था मानव जीवन का वह पड़ाव है, जहां व्यक्ति अपने वाह्य पुरुषार्थ को आंतरिक आत्मपुरुषार्थ की ओर मोड़ने का अभ्यास करता है। वानप्रस्थ आश्रम के प्रारम्भ होते ही वह शान्तिपूर्ण जीवन बिताने के साथ साथ आत्म उत्थान-आत्म परिष्कार के प्रयोग अपनाता है। शारीरिक शक्ति कम होने के साथ उसकी इच्छाशक्ति आत्म शक्ति को मजबूत करने में लगे, यह उसका लक्ष्य होता है। इस प्रकार हर बुजुर्ग की सकारात्मक जीवन दृष्टि एवं उसकी संतानों का उसके प्रति सम्मान भाव परिवार के बीच दुर्लभ स्वर्गीय वातावरण का निर्माण करते हैं। क्योंकि परिवार के वृद्धजन का अपना अनुभव, योग्यता जब उनके सन्तानों को भेंट रूप मिलती है, तो परिवार सुख-शांति-समृद्धि का केंद्र बनता है। वृद्धजनों की योजनाओं और अनुभवों का समाज एवं सम्पूर्ण विश्व लाभ उठाने का प्रयास आज भी आनन्दधाम करता ही रहता है, जो एक प्रकार का बुजुर्गों का सम्मान ही है।
शास्त्रों में मानव जीवन को ब्रह्चर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास इन चार आश्रमों अर्थात भागों में बांटने के पीछे बुजुर्गों को सम्मानित जीवन जीने का अवसर देना है, क्योंकि इनमें से दो भाग वानप्रस्थ और सन्यास केवल- केवल बुजुर्गों के लिए ही समर्पित है। जीवन का यह विभाजन आयु की वैज्ञानिकता पर आधारित है।
पूज्य सद्गुरु श्रीसुधांशु जी महाराज कहते हैं कि मानव जीवन अनमोल है, इसको बुद्धिपूर्वक नियोजित कीजिये, ब्रह्मचर्य एवं गृहस्थ जीवन शास्त्रों के नियमों के अनुसार चलाईये तथा 50 वर्ष की आयु पार करते जैसे ही आयु के साथ वन शब्द प्रयोग होने लगे, तुरंत सावधान हो जाईये और अपने मन को अटैचमेंट-डिटैचमेंट के प्रयोगों के अभ्यास से जोड़कर चलना प्रारम्भ कर दीजिये, इस प्रकार क्रमशः धीरे-धीरे मोह छूटेगा और खुद वानप्रस्थ की गहराई में उतरने लगेंगे।’’ इसके साथ आत्म परिष्कार एवं आत्म विकास के इस मार्ग में योगाभ्यास, प्राणायाम, सन्तुलित आहार, सद्विचारों-सद्व्यवहार का सन्तुलन, ईश्वरपूजन, गुरुदर्शन, गुरुकृपा, मंत्र जप, यज्ञ, सत्संग आदि जीवन निर्माण के छोटे-छोटे नियम सहायक साबित होते हैं और वृद्धावस्था वरदान बनता है। यदि कहीं सदगुरुओं के आश्रमों स्थित वृद्धाश्रमों में यह वानप्रस्थ आनन्दधाम अवस्था व्यतीत करने का सौभाग्य मिल सके तो जीवन धन्य और मानव जीवन सार्थक हो उठता है।
सदगुणों से भरे बुजुर्गों का सम्मान साक्षात परमात्मा का सम्मान माना जाता है, जो बुजुर्गों का आदर करते हैं, उसकी झोली परमात्मा स्वतः भर देता है। बुजुर्गों के साथ अन्य परिवारीजनों के रिश्ते सहज होते हैं, और समर्पण-त्याग, विश्वास, प्रेम, मधुरता-जीवंतता भरा वातावरण परिवार में विकसित करते हैं, घर-परिवार सुख-शांति से भरता है। इसीलिए हमारे ऋषियों ने माता-पिता तथा परिवार के हर बुजुर्ग का सम्मान परमात्मा के सम्मान के समान महत्व दिया है।
बुजुर्गों के प्रति इतने ऊचे आदर्श वाले देश में जब अपने ही बच्चों द्वारा उनका असम्मान होता देखने को मिलता है, तो किसी भी संवेदनशील संत हृदयी का मन व्यथा से व्याकुल हो उठना स्वाभाविक है। पूज्य सद्गुरु जी महाराज चाहतें हैं कि देश एवं विश्वभर में पुनः बुजुर्गों के सम्मान की परम्परा वापस आये, इसके लिए अपने विश्व जागृति मिशन के द्वारा वे जहां श्रद्धापर्व जैसे अभियान चला रहे हैं, वहीं आनन्दधाम आश्रम परिसर में वृद्धाश्रम की स्थापना करके हर बुजुर्ग के जीवन की सांझ को सम्मानजनक एवं संतुष्ट बनाने के लिए प्रयासरत हैं। अभी फ्सीनियर सिटीजन लिविंग होमय् वरदान की स्थापना करके बुजुर्गों को आश्रम में स्थान देकर उन्हें आध्यात्मिक जीवन की ओर उन्मुख करने का अभिनव नव प्रयास प्रारम्भ किया है। जिसमें शामिल हर बुजुर्ग की जीवन पुरुषार्थ एवं गुरु अनुशासन व्यवहारों से आत्मा पर जमी नकारात्मक परत धुले।
द्वेष-घृणा, स्वार्थमय इच्छाओं, अहंकार भाव आदि भीतर से मिटाकर जीवन को पवित्र, संवेदनशील, सरलता, ज्ञान, संतोष, शांतिवान बनाकर अपने आत्मतत्व को परमात्म तत्व से जोड़ सकें। गुरुकृपा व परिसर के दिव्य आश्रममय वातावरण के बीच अपने निज स्वभाव को परमात्मा के निकट ला सकें। आप भी सात्विक जीवन व्यतीत करते हुए अपने जीवन की सांझ को सार्थक और आनन्दमय बनाने का सौभाग्य पायें आनन्दधाम आश्रम में।
3 Comments
Pls send details of Anand dham ashram for senior living.
I want to live rest of life in guru ji ashram and seeking spiritual blessings from them.
कहां है, क्या राशि लगती है, क्या दिनचर्या होगी और क्या नियमावली होगी कृपया सूचित करें