प्रेम पूर्वक दोनों हाथ जोड़ें, कृतज्ञता के साथ, आभार के साथ दोनों हाथ हृदय से लगा लीजिए और श्रद्धा भाव से समर्पण करते हुए सिर को झुका लें, शांति पूर्वक अपनी आंखे बंद करें, प्रभु का अहसास करते हुए कि माता तुम्हीं, पिता तुम्हीं, बन्धु तुम्हीं, सखा तुम्हीं, मेरे जीवन का सर्वस्व तुम्हीं, मेरा अन्न, धन, जीवन, शक्ति, सामर्थ्य सब कुछ तुम्ही हो प्रभु।
मेरे शरीर में जब तक आत्मतत्व है शरीर चलता है। तुम जगत में हो तो जगत चलता है प्रभु तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं है। तुम्हारी न्यायायिक व्यवस्था संसार में न्याय करती है। तुम्हारे नियम और अनुशासन में हर चीज बंधी हुई है। हवाएं भी, अग्नि भी, सूर्य भी, चन्द्र भी, तारे भी।
तुम्हारे कारण ही नदियां लगातार गतिशील हैं, हवाएं बह रहीं हैं, फूल खिल रहें हैं, अनेकों-अनेकों जीव इस संसार में आ रहे हैं और जैसे ही उनका कार्यकाल आप समाप्त करते हैं तो इस संसार से जाने वाली ट्रेन में बैठकर यहां से वापिस चले जातें हैं। न जाने कहां, किस देश में, किस लोक में कहां चले जाते हैं सब। कोई निशान नहीं, कोई पहचान नहीं। जाने वाला सपना सा रह जाता है, यादें छोड़ जाता है। आता है तो मुट्ठी बांधकर अपना भाग्य लेकर आता है, जाता है तो दोनों हाथ खोलकर के कुछ भी साथ नहीं जाता ।
कितना भी बड़ा संग्रह किसी का क्यूं न हो, कितनी भी चीजों का मलकियत बनाकर व्यक्ति परिचय देता रहा हो, आखिरी परिचय यही कि देह भी यहीं पड़ी है, शरीर भी छूट गया और हाथ खुले रह गये। तुम्हारी इस व्यवस्था में ही संसार में लोग आ रहे हैं, जीव आ रहे हैं, जा रहे हैं। आवागमन के इस चक्र में फंसा हुआ जीव कर्मबंधन के कारण संसार में सुख-दुःख भोगता है।
गुरुओं का ज्ञान मिले, सच्चा ज्ञान मिले, मोह ममता से ऊपर उठे, आसक्ति से ऊपर उठे, कर्तव्य को पहचानें और तुमसे प्रभु लगन लगा लें तो फिर वह इस संसार के माया बंधन से मुक्त होता है। परम शांति मिलती है, परम आनंद मिलता है अन्यथा इस संसार में राज सिंहासन पर बैठे हुए लोगों में भी अशांति, अतृप्ति, भय, चिंताएं दिखाई देती हैं। शक्तिशाली लोग भी डरे हुए हैं और धनी से धनी भी असंतुष्ट, अतृप्त दिखाई देते हैं।
झोपड़ी में बैठा हुआ भी आपकी कृपा प्राप्त व्यक्ति हर दिन शांत भी हैं, संतुष्ट भी है। कल की चिंता नहीं है लेकिन आज के लिए धन्यवाद करता हुआ चैन की नींद सोता है। जिस पर तेरी कृपा है भले ही उसका संग्रह संसार की वस्तुओं का कम क्यूं न हो लेकिन उसके आंनद में कमी नहीं है, उसकी शांति कमी नहीं है, उस पर कृपा है आपकी।
प्रभु संसार के साधन कम दो, ज्यादा दो, लेकिन अपने चरणों की भक्ति, अपनी प्रीति को कम न करना, चेहरे की मुस्कुराहट को कम न होने देना, हृदय के प्रेम का कम न होने देना, हिम्मत को टूटने मत देना। कर्तव्य, कर्म करने की निष्ठा हमेशा बनी रहे, गुरु चरणों में प्रीति बनी रहे और इस संसार में न किसी का कर्ज सिर पर रहे, कोई फर्ज भी बाकी न रहे। जीवन की यात्रा आनंद से निभा सकें। मुस्कुराते हुए तेरे दर तक आएं यही प्रार्थना स्वीकार करना।
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Guru mein aap ka Lakh Lakh shukragujar hun jo aap Hamen is Marg Mein chalane Ki Shiksha Dete Hain