बसंत पंचमी एक लोकप्रिय पर्व है। इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती माता की पूजा की जाती है। यह पर्व भारत में ही नहीं अपितु कई अन्य देशों में भी बड़े उल्लास से मनाया जाता है और इसे पर्व को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
1 वर्ष को 6 मौसमों में बांटा जाता है, उनमें बसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम है। इस ऋतु में फूलों पर बाहर आ जाती है, खेतों में सरसों के फूल मानो सोना चमकने लगता है, जौ और गेहूं की बालियां खिलने लग जाती हैं, पेड़ पौधों पर फल फूल आने लग जाते हैं और हर तरफ प्रकृति में हरियाली आने लगती है चारों ओर रंग-बिरंगी तितलियां मड़राने लगती हैं, भर-भर भंवरें भवराने लगते हैं और हम सभी की चेतना में नयापन आने लग जाता है। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माह महीने के पांचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता है, जिसमें भगवान विष्णु और कामदेव की भी पूजा की जाती है। बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर माता सरस्वती का जन्म हुआ था। माता सरस्वती को बागेश्वरी भगवती शारदा वीणा वादिनी और बाग्देवी सहित अनेक नामों से जाना जाता है। माता शारदा विद्या और बुद्धि की दाता हैं, संगीत की उत्पत्ति करने के कारण यह संगीत की भी देवी हैं।
ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए बताया गया है प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनी धीनामणित्रयवतु।।
यह परम चेतना है सरस्वती के रूप में हमारी बुद्धि प्रज्ञा तथा मनोवृतियों की संरक्षिका है, उनमें जो आचार और मेधा है उसका आधार सरस्वती ही है। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।
पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने माता सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी तभी से वरदान के फलस्वरूप भारत देश में बसंत पंचमी के दिन विद्या बुद्धि की देवी माता सरस्वती की पूजा होने लग गई जो कि आज तक जारी है।
बसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नई उमंग से सूर्य उदय होता है और नई चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
यूं तो माह का पूरा मास ही उत्साह देने वाला होता है पर बसंत पंचमी का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीन काल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। जो शिक्षाविद् भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं वे इस दिन मां शारदा की पूजा कर उनसे और ज्ञानवान और धनवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का कहना है कि जो महत्व सैनिकों के लिए शस्त्रें का और विजयदशमी का है, व्यापारियों के लिए अपने तराजू-बाटों और दीपावली का है वही महत्व कलाकारों के लिये बसंत पंचमी का है चाहे वे कवि, लेखक, गायक वादक, नाटककार, नृत्यकार या शिक्षक हों सभी इस दिन का प्रारंभ अपने उपकरणों की पूजा और माता सरस्वती की वंदना से करते हैं।
वसंत पंचमी का दिन हमें और भी ऐतिहासिक महत्वों को बारे में याद दिलाता है। वसंत पंचमी को ही पृथ्वीराज चौहान की स्मृति हो आती है, जिन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। मोहम्मद गोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। जैसे ही तवे पर चोट हुई उससे अनुमान लगाकर उन्होंने जो बाण मारा, वह मोहम्मद गोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
सिक्खों के लिये भी वसंत पंचमी का दिन महत्वपूर्ण है क्योंकि मान्यता है कि सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह का विवाह हुआ था इस दिन अन्य घटनाएं भी घटित होती है। वंसत पंचमी का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है।
पावका नःसरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती।
यज्ञम् वष्टु धियावसुः।।
इस दिन विद्यार्थियों को ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती माता से प्रार्थना करनी चाहिए कि हम सब उन्नति को प्राप्त हों और बुद्धि-विद्या में अभिवृद्धि हो। सभी विद्यार्थियों को इस मंत्र का जप करना चाहिए इस मंत्र से माता सरस्वती हमारी बुद्धि को पवित्र एवं पोषित करती हैं। हमें ऐसी माता से प्रार्थना करनी चाहिये जो हमारे ब्रह्मयज्ञ को सफल बनाती हैं, सच बोलने की प्रेरणा देती हैं और सभी लोगों को सुमति प्रदान करती हैं।