जब समय की धरा विपरीत होकर बहती है, उसे बुरा वक्त कहते हैं। उन संकट के क्षणों में अगर मनुष्य का विवेक और विश्वास दोनों खो जाए तो इंसान मुसीबतों की दलदली जमीन में धंसता चला जाता है। विवेक और विश्वास ऐसी मानवीय शक्ति हैं जिनके डगमगाने से मुश्किलें घटने के बजाए बढ़ती जाती हैं।
जैसे किसी के उपर परेशानियों का पहाड़ एकाएक टूट पड़ा हो, क्योंकि ऐसे लम्हों में अच्छा करने का प्रयास भी विफल हो जाता है, विचार शक्ति क्षीण हो जाती है, निर्णय लेने की क्षमता नहीं रहती, समझदार होते हुए भी आदमी नासमझ जैसा बर्ताव करने लगता है। सबकुछ जानकारी अपने पास होते हुए भी दूसरे अनजान लोगों से विचार विमर्श करता है। लेकिन ऐसे समय में उसकी हालत को देखकर कोई तरस नहीं खाता और उल्टा लोग उसकी मजाक उड़ाते हैं।
इसलिए अगर जीवन की राह में कभी ऐसे प्रतिकूल क्षणों का आगमन हो तो अपने विवेक को संभाल कर रखना और अपने विश्वास की डोर को कमजोर मत होने देना। क्योंकि मुसीबतों के भंवर जाल में विवेक और विश्वास ही पतवार का कार्य करते हैं। विवेक का अर्थ है होश-हवास में रहना, अपनी चैतन्यता को बनाए रखना।
मस्तिष्क को शांत रखना, संयम और नियंत्रण को संजोए रखना और अपने गुरु तथा इष्टदेव के प्रति श्रद्घा भाव एवं विश्वास को कायम रखना। बुरे समय में अन्य बातों को भूलकर नेकी के महान कार्यों पर ज्यादा ध्यान टिकाना चाहिए। ऐसे समय में गुरु नाम जपते रहो, इष्ट देव की पूजा करते रहो, भगवान का ध्यान करते रहो, सेवा के कार्यों में संलग्न रहो, त्याग-तपस्या को अपनी दिनचर्या का अंग बना लीजिए।
महानपुरुषों के जीवन चरित्रों का स्वाध्याय करें, संभव हो तो तीर्थ यात्रा जरूर कीजिए लेकिन अपने उत्तरदायित्व, कर्तव्यपरायणता से कभी विमुख नहीं होना। कर्म के उपासक बने रहो, आपकी लगातार की यह साध्ना एक दिन रंग अवश्य लाएगी, आपका विवेक और गुरु चरणों के प्रति विश्वास के प्रभाव से बुरा समय भी अच्छे समय में बदल जाएगा।
पुण्यकर्म ही इंसान को मुसीबतों से बचाते हैं। किंतु मुसीबत में मन अधीर हो जाता है, रुदन करने लगता है, आंखों से गंगा-यमुना बहने लगती है। ऐसी स्थिति में भगवान की प्रार्थना हृदय से करो, अपने भाव-भावनाओं को पवित्रा बनाओ। अपनी बुद्घि द्वारा मन को समझाओ कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का विश्वास तोड़ सकता है, परन्तु ईश्वर कभी किसी का विश्वास नहीं तोड़ता।
समय तो सदा एक सा नहीं रहता, परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है, सवेरा होने से पूर्व अंधेरा घना हो जाता है। जब गर्मी सभी सीमाएं तोड़ देती है, तब मेघ वर्षा अवश्य करते हैं, मनुष्य जब चारों ओर से घिर जाता है, कोई उसका मददगार नहीं बनता, तब ईश्वर ही उसकी सहायता करते हैं। चीरहरण के समय द्रौपदी कुरु सभा में जब तक अपनी सहायता के लिए अपने पांच पतियों सहित उपस्थित महान योद्घाओं को पुकारती रही तब तक उसे कोई सहारा प्राप्त नहीं हुआ।
किंतु जैसे ही उसने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया, उन्हें हृदय से पुकारा तो दुःशासन चीर खींचते-खींचते थककर जमीन पर गिर गया, लेकिन द्रौपदी की लाज पर कोई आंच नहीं आई। यहां विश्वास का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है।
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परम पूज्य परम वंदनीय पतित पावन श्री सदगुरु देव महाराज जी गुरु माँ और दीदी जी के श्री चरणों में कौटी कौटी दणडवत प्रणाम नमन औम गुरुवै नम औम नमो भगवते वासुदेवाय नम
Bhaut sundar motivational