दुनिया भर में अधिकांश लोग आपको पूजा पाठ करते दिखाई देंगे , मंदिरों में जाते, भजन कीर्तन करते और अन्य : परंतु आपको अवगत कराना है कि यह सब कर्मकांड का अंश है !
भगवान की ओर जाने के लिए अधिकांश लोग यही मार्ग अपनाते हैं , उन्हें लगता है कि यदि हम इतना कर लेते हैं तो भगवान प्रसन्न हो जाएंगे और हमारी तमाम मनोकामनाएं पूर्ण कर देंगे !
इस कर्मकांड के पीछे भावना यही बनी रहती है कि हमारी मन्नतें पूरी हो जाये, भगवान हमे सारी खुशियां दे दें, दुख हमसे दूर चला जाये !
यह सत्य है कि कर्मकांड करना यानी मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन कर लिए, तीर्थ यात्रा कर आये, व्रत उपवास कर लिया, घंटे घड़ियाल बजा लिए, यह सब वह क्रिया हैं जिनसे हम भगवान को प्रसन्न करना चाहते है !
परंतु गहरायी से विचार कीजिये कि क्या मात्र इन सब के करने से हम भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं ! इन सभी क्रियाओं का अर्थ हैं कि हम भगवान को याद करें, उसको माने, उसमे हमारी आस्था बनी रहे। जब हम मंदिर जाकर पूजा पाठ करते हैं तो हमारा मन भगवांन से जुड़ता भी है परंतु हमे यही रुक कर नही बैठना चाहिए ! इन सब कर्मों से आपके अंदर सात्विकता आती है पवित्रता आती है परंतु हमे तो उस परम पावन परमात्मा की गोद मे बैठना है तो पूरी तरह स्वयम को शुद्ध करना होगा । मात्र ऊपर से नहीं अंदर से पवित्र हो सकें , यह आवश्यक है !
हमारी भावनाएं पवित्र हों, अन्तःकरण पवित्र हों, हावभाव पवित्र हों और सबसे अधिक आत्मा ही पवित्र हो जाये । इसके लिए हमें तत्व ज्ञान को समझना होगा , उस शुद्ध बुद्ध स्वरूप के स्वरूप को ही अपने अंदर उतारना होगा और इसी का नाम आध्यात्मिक होना है !
हमारे प्रभु को क्या पसंद है, वह हमें किस रूप में देखना चाहते हैं – शुद्ध, पवित्र, निष्पाप – जब यह गुण हमारे अंदर आ जाते हैं तब वह परमात्मा अपना स्वरूप और अपनी कृपायें बरसाने लगता है !
ध्यान सर्वोत्तम मार्ग है आध्यात्मिकता प्राप्त करने के लिए क्योकि इसी से हमारी मैल गलती है, पवित्रता आती है , अपना आंकलन करने की सुबुद्धि जाग्रत होती है कि हम कहाँ गलत है, कहाँ स्वयम का सुधार करना है ! जब तक आत्मदर्शन और आत्मावलोकन से अपना विश्लेषण नहीं करेंगे , कल्याण नहीं होगा। इसके लिए चाहिए एकाग्रता , जितने अधिक एकाग्र होकर आप भगवान के नाम को जपोगे, उसके निकट होते जाओगे !
इसलिए सारे कर्मकांड का आधार एकमात्र है – भगवान से संयुक्त होना, जुड़ना, उसके अतिशय प्रेम में डूब जाना। बस यही आधार है भक्ति का ! और मुख्य बिंदु कि अपने मार्गदर्शक, अपने सदगुरु को पूर्ण समर्पण करके उनके बताए मार्ग का अनुशरण करो, कृपा होगी और वह उंगली थाम कर परमात्मा के दर तक पहुंचा देंगे !!