भक्ति की पराकाष्ठा का रूप होता है जब भक्त विह्वल होकर अपने प्रभु को इस तरह पुकारता है कि हे प्रभु जन्म पर जन्म बीतते जा रहे हैं – कब कृपा होगी ! हमारी जन्मों की यात्रा की एक कड़ी है यह जीवन, अनेकों अनेकों योनियों में भटकने के बाद मनुष्य का चोला पाया , यदि इसको भी व्यर्थ खो दिया फिर कब मिलना होगा !
हर जन्म की कहानी अलग है, बार बार जन्म लेना , बार बार मरना ,बार बार माँ के गर्भ में आकर जन्म लेना, कभी पशु, कभी पक्षी, कभी किसी ओर जीव की माँ का सहारा मिला, आखिर कब तक यूं ही भटकता रहूंगा। जो मनुष्य का चोला मिला है इसी में अब उद्धार कर दो !
यह आत्मा अपने परमात्मा से मिलने के लिए व्याकुल रहती है – अंतिम छोर तो परमात्मा ही है । इस संसार मे हम आये अपने कर्मों का भोग भोगने के लिए ओर नए कर्म करने के लिए परंतु इसी आवागमन के चक्र में उलझे रह जाएंगे तो कल्याण नहीं होगा !
इसीलिए अपने प्रभु से मिलने को जब यह जीव तड़प उठता है तब यही पुकार ह्रदय से निकलती है “बहुत जनम बिछड़े हो माधव” अब ओर प्रतीक्षा मत कराओ, अपने बच्चे को गोद मे ले लो और इस भवबंधन से छुटकारा मिल सके !
अपनी भक्ति को सुदृढ़ कीजिये, अपना आपा प्रभु को सौंप दो, वह जहां चाहे लेकर चले -जैसा चाहे रखे , उसी में प्रसन्न रहना है :: राज़ी है हम उसी में जिसमे तेरी रज़ा है, यूं भी वाह वाह है और त्यों भी वाह वाह है” मतलब पूर्ण समर्पण !
जब हम इतनी प्रगाढ़ता से प्रभु को समर्पित हो जाते है तब वह कृपा करता है ।भगवान भाव के भूखे हैं और हमारी पुकार जब ह्रदय से होती है, अंतरात्मा से होती है तब वह मालिक दौड़कर आता है और भक्ति में फूल खिलने लगते हैं !
जब भक्त का मन टिक जाए भजन पूजन में , ध्यान में, तब मानो भगवान ने अपना पैगाम भेजा है, आप चुने गए हो, वह मालिक आपको दर्शन देने को आतुर है क्योंकि जितने कदम हम आगे बढ़ाते हैं,
उतना ही प्रभु भी हमारी ओर आ रहा होता है , मिलन तो बीच मे ही हो जाता है क्योंकि जितना भक्त व्याकुल है प्रभु से मिलने को- उतना ही भगवान भी अपने भक्त के पास आने को व्याकुल होता है !
इसलिए अपनी पुकार उस तक पहुंचाते रहिये अपना आपा प्रभु को अर्पित कर दीजिए, अपने सदगुरु के आशीर्वाद लीजिये ओर कुछ आपकी मेहनत और कुछ गुरु की रेहमत दोनों का मेल होगा तो कृपा अवश्य होगी और इसी जन्म में मोक्ष का द्वार खुल जायेगा जहां आनंद ही आनंद है
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Om Namah Shivay..!!!!