भक्ति तो हम सभी करते हैं परंतु उसके प्रवाह को तेज किया जा सके मतलब भक्ति में दृढ़ता बनी रहे यह सबसे महत्वपूर्ण है – इसी के लिए हम आज कुछ बिंदुओं पर मनन करेंगे ।
सबसे पहला नियम तो है कि अपने को सरल, शुद्ध, पवित्र बनाये रखें क्योंकि यदि आपका मन पवित्र निर्मल है तो भक्ति परवान अवश्य चढ़ेगी !
अभिमान से चढ़ी हुई आंखें ओर हिंसा करने वाले हाथ — भगवान से दूर ले जाते हैं , इसलिए अधिक से अधिक सरल होकर जीवन व्यतीत करो – बनावट और दम्भ से दूर रहना है ।
इसके साथ ही शुद्धता आवश्यक है – लेन देन की पवित्रता सबसे महत्वपूर्ण है जिसको भगवान श्रीकृष्ण ने बहुत अधिक बल दिया है – आर्थिक रूप से हम शुद्ध हो सकें : लेते समय व्यक्ति की स्थिति कुछ और होती है और वापस करते समय कुछ और — ऐसा व्यक्ति कभी भगवान को प्रिय नही हो सकता ।
शुध्दता मन की भी चाहिए, वचन की भी चाहिए और दृष्टि भी पवित्र हो सभी कुछ महत्वपूर्ण हैं – संसार का आनंद लेना है पर मर्यादा का ओर पवित्रता का बांध नहीं लांघना ।
इसके साथ ही आता है दृढनिश्चय पक्का इरादा , जो समय भगवान को अर्पित करना है उसमें कोई आलस्य या लापरवाही नहीं होनी चाहिए । इसके लिए कच्छप का उदाहरण भगवान शिव के मंदिर में मिलता है – कि चाहे थोड़ा ही सही पर नियम के पक्के होकर चलो , कछुए की तरह धीरे धीरे पर लगातार : क्योकि नियमित भक्ति ही सफलता प्रदान करती है ।
जिसका नियम पक्का है, निश्चय दृढ़ है, आलस्य का कोई स्थान नहीं, कोई बहानेबाजी नही भक्ति के लिए मौसम जिसे डिगा न सके, परिस्थितयां विचलित ना कर सकें – उसी की भक्ति परवान चढ़ेगी ।
अपने सदगुरु के निर्देशन में , उनके बताए गए मार्ग पर लगातार लगातार चलते जाओ, उनमे पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और आस्था रखो- वह अवश्य भवसागर पार करा देंगे- चाहिए तो पूर्ण समर्पण ।
सभी का समन्वय बनाना है कि हम अपने दायित्व भी पूर्ण कर सकें और भक्ति का मार्ग भी पकड़े रखें क्योकि दोनों के संतुलन ही सफलता देगा ।
मन मे शांति हो, घर मे शांति हो, व्यवहार में शांति हो और कर्मक्षेत्र में भी शांति को स्थान दें , शांत मन ही भक्ति को पंख लगाता है , अशांत मन से अगर भक्ति करने बैठोगे तो मन नही लगेगा इसलिए पूर्ण शांति, गहन मौन ओर स्थिरता ही भक्ति की सीढ़ी है जो भगवान के दर तक लेकर जाती है ।
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सदगुरू द्वारा के चरणों में कोटि कोटि नमन