गुरू माँ और ईश्वर पिता की तरह है | Sudhanshu Ji Maharaj

गुरू माँ और ईश्वर पिता की तरह है | Sudhanshu Ji Maharaj

गुरू माँ और ईश्वर पिता की तरह है

गुरू माँ और ईश्वर पिता की तरह है

भगवान शिव गुरु गीता में गुरु ज्ञान को महत्वपूर्ण बताते हुए माँ पार्वती से कहते हैं मानव जीवन में जब विकट स्थिति आ जाए, हर सगा-सम्बन्धी साथ छोड़ेगा, परमात्मा भी दूर है- वह दिखाई नहीं देगा, मगर मेरा प्रतिनिधि गुरु कभी अपने शिष्य का साथ नहीं छोड़ेगा। इसलिए गुरु के प्रति अतिशय प्रेम बनाए रखिए। दुनिया के सारे रिश्ते एक सद्गुरु में देखना। सारे संसार के प्रेम को एक सदगुरु में देखना। क्योंकि गुरु आत्मस्वरूप है सब धर्मों का है।

उसे अपने सामने महसूस करो, जो हमारे हर संकट में साथ है, जो हमें आशीर्वाद देता है और जो गुरुओं का भी परम गुरु है जो पिताओं का भी परमपिता है, जो माताओं की भी परममाता है, सांसारिक माता-पिता तो एक न एक दिन इंसान को छोड़कर, सब बंधन तोड़कर चले जाना हैं। लेकिन जो हर देश में हर वेश में, हर काल में, हरहाल में साथ देता है, उसके साथ हमारा नाता जोड़ने वाला परम का स्वरूप सद्गुरु होता है।

विश्वविख्यात गुरुभक्त रबिया बसरी ने भी गुरु महत्व के विषय में यही गाया ‘ हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर। अर्थात् किसी व्यक्ति से यदि हरि रूठ जाएं, तो पूरा संसार उसके विपरीत गति करने लगता है, उससे उसकी किस्मत रूठ जाती है। उसी समय यदि उस अभागे को सद्गुरु की दीक्षा की प्राप्ति हो जाए तथा सद्गुरु उस पर अपनी कृपा बनाए रखें तो पुनः हरि को मनाने का मार्ग मिल जाता है। अर्थात् सद्गुरु का सहारा उसे तार देता है।

परन्तु यदि किसी का गुरु ही उससे रूठ जाए तब मनुष्य के पास कोई सहारा नहीं बचता, वह व्यक्ति बिना पतवार के दिशाहीन नाव की तरह हो जाता है, जिसका कोई भविष्य नहीं होता। इसलिए खजाना हाथ से निकल भी जाए तो भी चाबी संभाले रखना, यही चाबी फिर से दरवाजा खोलेगी। कभी गुरु से दूर नहीं होना, गुरु ठुकरा भी दे, नाराज भी हो जाए तो भी उसके प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखना।

दुनिया का पिता भी समझाने के लिए बच्चे को डांटता है। पिता जब डांटकर गुस्से से बच्चे को कमरे में बन्द कर देता है, तो माँ की ममता रह नहीं पाती और ताला खोल कर बच्चे के प्रति प्यार दिखाती है और पिता भी माँ के माध्यम से ही बच्चे को खाना वगैरह खिला देता है। मगर खुद उपरी तौर पर गुस्सा दिखाता है ताकि बच्चा अपनी गलती सुधर सके। जब पिता डांटता है तो माँ बच्चे को समझाती है कि पिता ने भले के लिए ही डांटा है।

माँ जब प्यार से बच्चे को समझाती है तो उसके अज्ञान के कपाट बन्द हो जाते हैं और ज्ञान के द्वार खुलते हैं जिससे बच्चा सन्मार्ग पर चलने लगता है। भगवान सुधरने के लिए कठोर होकर दुःख के ताले में जब इंसान को बन्द कर देता है, ताला खोल कर माँ की तरह प्यार करने का काम गुरु ही किया करता है। दुनिया के, हर रिश्ते से ऊपर है वह, मगर सारे रिश्ते जहां आकर जुड़ते हैं वह भगवान है। गुरु और शिष्य जब मिलते हैं तो खुश होते हैं भगवान।

गुरु चोट भी लगाएगा, प्यार भी करेगा और कहेगा, ‘मुझे मान या मत मान, जिसे मानने की जरूरत है उसे जरूर मान। भगवान शिव ने गुरु को बहुत महत्व दिया। भगवान शिव कहते हैं, हे पार्वती! ब्रह्मा-विष्णु-शिव का स्वरूप है गुरु। गुरु के तीन नेत्र नहीं-फिर भी वह शिव है?

चार मुख नहीं फिर भी वह ब्रह्मा है, उसकी चार भुजा नहीं फिर भी वह विष्णु है। ऐसे ब्रह्मा-विष्णु-महेश का स्वरूप है गुरु। गुरु की कही बातों पर विश्वास करके आगे बढें। जब इन्सान अपने ‘मैं’ को पूजवाने की कोशिश करेगा, वह इंसान हो गया और जो परम को पूजवाने की बात करे, वह प्रतिनिधि है परमात्मा का, वह गुरू है।

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