प्रेम का ही रूप जब श्रद्धा में परिवर्तित हो जाता है तब वह भक्ति बन जाती है :भक्ति तभी सफल होती है जब उसमे प्रेम की मिठास घुल जाए !
प्रेम के अनेक स्वरूप है – जब यह प्रेम भगवान के प्रति होता है तबभक्ति बन जाताहै- यही प्रेम गुरु के प्रति हो तो श्रद्धा बन जाता है और यही प्रेम संसार मे हो तो हर रिश्ते में अलग रूप ले लेता है !
प्रेम में विह्वल होकर जब मीरा भगवान के गीत गाती थी, अश्रुधारा बह रही है और उसे अपनी होश नहीं: इतना पागलपन या दीवानापन जब प्रेम में हो तभी वह पराकाष्ठा पर पहुंचता है !
भगवान को आपसे कुछ नही चाहिए न आपका तन, न आपका मन, नाही धन :: चाहिए तो मात्र आपके ह्रदय का प्रेम :: वही उसको अर्पित कर दीजिए तो कल्याण हो जाएगा !
भगवान किसी भाषा को जानते हैं ना वेश भूषा को : न किसी के चढ़ावे से प्रसन्न होते – यह तो मात्र प्रेम प्रकट करने का माध्यम है – वह तो गूंगे की भाषा भी सुन लेते हैं – क्योंकि भगवान भाव के भूखे हैं !
इसलिए भावपूर्ण होकर अपना आपा उसके सामने रख दो – अपना प्रेम उसको अर्पित कर दो: अपने को तरल अवस्था मे ले आओ, जैसा वह चाहे उसी में रहना है : राज़ी हैं हम उसी में जिसमे तेरी रज़ा है पूर्ण समर्पण !!
प्रेम हमेशा त्याग मांगता है – भगवान के प्रति त्याग आप क्या कर सकते हैं , अपना आलस्य का त्याग कीजिये , अपने क्रोध का त्याग कीजिये अपनी बुरी आदतों के त्याग कीजिये :: उस मालिक के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने की भावना रखें : यह भी प्रेम का एक रूप है !
जब आप स्वयम को शुद्ध करके, पवित्र ह्रदय लेकर भगवान के समक्ष जाओगे तब वह कृपा अवश्य करेगा और एक दिन आपकी भक्ति चरम को स्पर्श करेगी -प्रभु का साक्षात्कार होगा !