- श्रद्धा और विस्वास ऐश्वर्य है भक्ति में। नियम के साथ आप हर दिन भक्ति में बैठो तो सफलता मिलेगी! कृपा भी मिलेगी और भक्ति भी होगी!
- कभी जाब मन कामजोर पडे तो अपने दिल की पीड़ा और आंसूं परमात्मा को भेंट करो और तब आपकी भावुकता भगवान तक पहंचती है
- प्रर्थना भावपूर्ण होकर करो और गाओ – डूबतों को बचा लिने वाले मेरी नैया है तेरे हवाले; और कोई न देता दिखाई अब तेरा ही है एक सहारा।
- आपको शक्तिशाली बनाएगा आपका विस्वास, गुरु का साथ, और कृपा!
- गीता के बरहँवे अध्याय मे अमृताष्टकम् के आठ श्लोकं का पाठ निरन्तर करो! यह भक्तियोग है!
- निंदा और स्तुति आपको हर पल छूती है। ‘लोग क्या कहेगे ‘ सबसे बड़ा रोग! इंसान की मान प्रतिष्ठा सब दूसरों पर निर्भर करती है! ऐसा नहीं होना चाहिए! आत्मविश्वास जगाओ!
- सेवा धर्म है और जहाँ रेहम है वहां भगवान् है! इस लिए हर दिन कोई सेवा कर्म जरूर करें!
- अहंकार से ऊपर उठो और गलतफेमि को जल्दी से दूर करने का प्रयास करो वार्ना गलतफैमी स्थायी कड़वाहट में बदल सकती है और आपके रिश्तों को नष्ट कर सकती है!
- दिलों तक पहुँचने की चेष्टा करो! दिल में जगह बनाओ लोगों के! ऐसे लोग नहीं मिलते जो दिल की गहराईओं तक पहुंचें! कोई आपको नहीं समझेगा! आपको ही एडजस्ट करना होगा, निभाना होगा और ज़िन्दगी को मिठास से पूर्ण करना होगा!
- दूसरों के सकारात्मक लक्षणों पर ध्यान दें और आप देखेंगे कि आपके सौहार्दपूर्ण संबंध बनेंगे! यह भी ध्यान दें की परिचय ठीक है लेकिन कईं बार अतिपरिचय हानीकारक हो सकता है! इस लिए अपने रिश्तों में नियंत्रण जरूरी है!
- अपने पति या पत्नी के साथ झगड़े में किसी तीसरे व्यक्ति को कभी न लाएं! पति और पत्नी को अपने स्वयं के संघर्षों को स्वयं ही हल करने की आदत डालनी चाहिए! अन्य लोग कबाब में हड्डी का काम करेंगे और आपके रिश्ते को नुक्सान पहुंचा सकते हैं! हाँ घर में बड़ों से राये जरूर लें!
- दूसरों को प्रेम करनेवाले बनो! निंदा भी होगी , स्तुति भी होगी, संतूलं बनाये रखना! सप्ताह में कम से कम एक बार खुद के साथ समय बिताएं। पार्क में बैठो या प्रकृति से जुड़ो, एकांत में शांत बैठो और अपने आप को ऊर्जावान करो। कुछ नया सीखें। नए विचार आपको नया बनाएंगे! अच्छा साहित्य पढ़ें
- मौन आपको सशक्त बनाता है। जो लोग अत्यधिक बात करते हैं वे अधिक ऊर्जा और ज्ञान खो देते हैं। आंतरिक शांति के लिए प्रार्थना करें!
- आपको नियमित रूप से ध्यान करना चाहिए और दिव्य आनंद का मंथन करना चाहिए। अपने गुरु से ध्यान आवश्य सीखें तभी आपको उत्तम परिणाम मिलेंगे
- दुनिया गतिशील है। समय निरंतर गतिपूर्ण है! इस द्वन्दमय संसार में कभी सुख है तो कभी दुःख, कभी हार और कभी जीत लेकिन हमें साहसी होना चाहिए और हमेशा भगवान और गुरु से जुड़े रहना चाहिए!
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शत् शत् नमन गुरुदेव