‘होली’ का पर्व प्रतीक है नई शुरुआत का, नए सृजन का। इस क्षण न कोई अपना है न पराया, न कोई ऊंच है न नीच है तो सिर्फ नए, नूतन माधुर्य का रंग, प्रेम का रंग। होली के विविध रंगों में रंगे सभी चेहरे समान दिखाई देते हैं। कोई श्रेष्ठ या अश्रेष्ठ नहीं होता। अत: होली उत्सव है वैरभाव को छोड़ एक हो जाने का, प्रेम रंग में स्वयं को एकाकार कर लेने का। मनुष्य का जीवन उमंगों, तरंगों एवं अनेकों रंगों से रंजित है। जिस क्षण अंतर में रंगों का भरा गुब्बारा फूट जाए तो समझना उसी क्षण जीवन में महोत्सव का, त्यौहारों का प्राकट्य हो गया। जीवन में बसंत, हर्षोल्लास एवं उमंग का प्रतीक उत्सव है होली। इस पर्व पर सभी लोग ईर्ष्या, द्वेष का त्यागकर प्रेम के रंग-बिरंगे रंगों में रंग जाते हैं।
इन दिनों प्रकृति भी अपने रंगों के साथ होली का यह भावपूर्ण पर्व मनाती है। प्रकृति के कण-कण में, कोने-कोने में इन दिनों सुंदर फूल खिलते हैं। न जाने कितने रंग एक साथ उभरते नज़र आते हैं।
ऐसा लगता है मानो परमात्मा ने अपने प्रेम को पृथ्वी पर प्रसन्नता के रूप में फूलों के रूप में बिखेरकर मनुष्य को प्रेरणा दी है कि तुम अपने गमों को भूलकर, एक नई उमंग और एक नया उल्लास लेकर जीवन को संवारो। जो हो गया सो हो गया, जो बीत गया वो बीत गया, जो हो ली सो होली। अब नई जिंदगी शुरू होगी, नया पर्व शुरू होगा।
जीवन का सबसे सुंदर रंग प्रेम है ये ऐसा रंग है जिसमें हर कोई रंगना चाहता है इसमें जीना चाहता है। जिस घर में प्रेम नहीं है, श्रद्धा नहीं है, विश्वास नहीं है तो फिर वह घर खुशियां नहीं देता। विश्वास, प्रेम के धागे को बांधे हुए है। यदि विश्वास टूट गया तो प्रेम के धागे भी टूट जाते हैं।
ये रंग जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर चढ़े हों, हर रिश्ते में हों। इस रंग को बदरंग मत होने दो। अपने विश्वास को कम मत होने दो। आपका धन कम हो जाए चिंता मत करना लेकिन आपका आपस का प्रेम कम हो जाए तो चिंता करना। यदि आप सफल नहीं हो पा रहे हैं तो इतनी बड़ी बात नहीं यदि आप अपने रिश्तों को बनाकर चल रहे हैं तो निश्चित रूप से आप सफल हैं लेकिन इसके लिए त्याग करना होगा। अपने हितों की आहुति देनी पड़ेगी। यदि आप मांग करते हैं कि वह मेरे लिए यह करे, तो प्रेम टिकेगा नहीं। टिकेगा तो केवल एक बात पर जिसको मैं अपना कहता हूँ , चाहे वह मां है, पिता है, भाई है, बंधु है सखा है कोई भी हो, मैं उसके लिए क्या कर सकता हूं। मैं उसे क्या दे सकता हूं? बल्कि यहां तक होना चाहिए उसको दर्द न मिले उसको दु:ख न मिले उसे पीड़ा न मिले, उसके हिस्से की पीड़ा मेरे दामन में आ जाए। जब आप दूसरों के प्रति यह भावना रखें तब मानना आपका प्रेम निर्मल है और रंग तो ऐसे ही निर्मल होने चाहिए। इसलिए जीवन में उन रंगों को बिखरने की कोशिश कीजिए, जो रंग जीवन में उत्सव लाएं। उनमें पहला प्रेम का रंग है। दूसरा रंग शांति का है तीसरा रंग कृष्ण रंग हो सकता है, काला भी हो सकता है, जो सम्मोहन का रंग है। भगवान श्रीकृष्ण का श्याम रंग जिस पर दूसरा रंग नहीं चढ़ सकता। अभिप्राय है कि जिसके हो तो फिर ऐसे हो जाओ दुनिया इधर से उधर हो जाए पर अपने आपको बदलना नहीं, अटल रहना है दृढ़ रहना है तो समझना तुम उस परमात्मा के प्रेम में रंग गए जिसके लिए तुमने इस देह को धारण किया है।
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जय गुरूदेव