गुरुकृपा ही केवलम | Atmachintan | Sudhanshu ji Maharaj

गुरुकृपा ही केवलम | Atmachintan | Sudhanshu ji Maharaj

गुरुकृपा ही केवलम

गुरुकृपा ही केवलम

नव वर्ष के आगमन पर सभी को शुभ कामनाएं । सभी के कष्ट क्लेश दूर हों और जीवन शांति और आनंद से पूर्ण हो!

गुरुकृपा का जीवन मे कितना बड़ा महत्व है , इसको कोई आसानी से नही समझ सकता । जो अपने गुरु से जुड़ा हुआ है – जिसकी आत्मा अपने सदगुरु के चरणों मे संलग्न है : वही इसका महत्व जान सकता है!

गुरु का जीवन मे आना जन्म जन्मान्तरों के पुण्यप्रभाव से ही सम्भव है । निगुरा होकर जिये ओर जीवन समाप्त हो गया – निरर्थक हो गया । बिना गुरु के यह मनुष्य का चोला जो इतनी मुश्किल से मिला था, व्यर्थ ही चला जाता है!

क्योकि गुरु से जुड़ने का अर्थ है – परमात्मा से जुड़ना । गुरु हमें सदाचरण की ओर प्रेरित करके भक्तिभाव जाग्रत करते हैं : भगवान के दर तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं ।बिना गुरु के हम चलते तो रहेंगे पर मंज़िल को प्राप्त नही कर सकते!

गुरु को धारण करने का अर्थ है जीवन मे अनुशासन, संयम, ओर सद्विचारों की ओर अपने जीवन को मोड़ लेना । जिस प्रकार बिना मा बाप का बच्चा अपना जीवन तो जी लेता है पर उसमें निखार नही आ सकता : ठीक उसी प्रकार बिना गुरु की उंगली थामे हम चलते तो जाएंगे पर लक्ष्य तक नही पहुंच सकते!

गुरु का जीवन मे कितना बड़ा महत्व है इसके लिए तमाम पुस्तकें भरी पड़ी हैं पर गुरु की महिमा को बखान कर पाना या समझ पाना सम्भव नहीं! कहा गया है कि — सब धरती कागद करूँ, लेखनि सब वनराये :: सात समुद्र की मसि करूँ ::: गुरुगुण लिखा ना जाए! मतलब सारी धरती को कागज बनाकर ,सारी जंगल की लकड़ी को कलम बनाकर , सात समुद्रों की स्याही बनाकर भी – यदि गुरु की महिमा को लिखना चाहे तो संभव नहीं-गुरूमहिमा अवर्चनीय है!

सच्चा गुरु कभी शिष्य के भक्तिपथ का बाधक नहीं बनता- वह तो द्वार बनता है, दीवार नहीं– उसका एकमात्र प्रयास अपने शिष्य को भगवान से किस तरह मिलाया जाए, यही होता है!

सब रिश्ते धीरे धीरे साथ छोड़ जाते हैं पर गुरु तो इसलोक से उसलोक तक अपना संबंध बनाकर रखते हैं । अपनी तप के प्रभाव को भी अपने शिष्यों तक बांट कर प्रसन्न होते हैं। गुरु अंतर्यामी हैं जो बिना बताए सब हाल जानते हैं और अपनी कृपा की शक्ति से हमारे संकटों का निवारण भी कर देते हैं!

इसलिए गुरु के वफादार बनिये, अपना पात्र तैयार कीजिये जिससे उसमे गुरुकृपा का अमृत भरा जा सके। गुरु तो अपनी कृपायें हर पल लुटा रहे हैं, हम ही हैं जो अपना पात्र उल्टा करके बैठे हैं। इसलिए इस सौभाग्य का लाभ उठाएं और गुरुकृपा को अपनी अंजलि में समेटने को हर पल ततपर रहें!

गुरुब्रह्मा गुरुविष्णु गुरुदेवो महेश्वरः – गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः!

1 Comment

  1. Suraj Prakash Verma says:

    Guru ji Ke madhur vaani se Amrit jhalketa hi. Guru ji Ke Pravachan aatma ko terept ker dete hi.
    Guru ji Ke kirpa sabhe per bane rahe ye hi Bhagwan se kaamna hi. Guru ji Ka Aashirwad ese he milta rahe . Guru ji ek ache marg per chalane ke pererana nirenter dete rahe ye he humare iccha hi.
    Guru ji ko Sadar parnam.

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