• कर्म का हमारे जीवन मे बहुत अधिक महत्व है: जो भी कर्म हम करते हैं वह अपना फल अवश्य ही देते हैं – अच्छा किया तो अच्छा और बुरा किया तो बुरा !
• कोई भी व्यक्ति चाहे कितना ही महान हो, यहां तक कि भगवान भी धरती पर मनुष्य का चोला धारण करके स्वयम पधारे पर कर्म बंधन को वह भी नही काट सके ! भगवान राम अपने पिता के कर्मो को नही काट पाए और उन्हें अपने पुत्र के वियोग में तड़प तड़प कर प्राण त्यागने पड़े!
• मतलब यही है कि कर्म का फल तो भुगतना निश्चित है -: हां कर्म यदि पके नही हैं और वह आपके खाते में जमा हैं , तो उन्हें साधना भक्ति और गुरु के द्वारा दी गयी विधियों का प्रयोग करके जलाया जा सकता है- यह संचित कर्म कहलाते हैं पर यदि कर्म पक चुके हैं तो उनका फल भोगना निश्चित है!
• कर्म करते समय बहुत सावधानी की आवश्यकता है : यह कभी मत सोचना की कोई हमे देख नही रहा: उस परमात्मा के खाते में सब लिखा जा रहा है ! वही कर्म जब फल बनकर आता है तो व्यक्ति को बहुत रुलाता है: अकेला पड़ जाता है और कोई राह नही दिखती :इसलिए सतर्क रहने की बहुत आवश्यकता है!
• यदि आपने अच्छे कर्म किये हैं तो उनका अच्छा फल और बुरे का बुरा फल -प्राप्त होगा । ऐसा नहीं है कि यदि 5 कर्म अच्छे हैं और 3 बुरे — तो 5 में से 3 घटाकर 2 कर्मो का अच्छा फल मिल जाये *!
• सेवा, साधना, सत्कर्म , भक्ति द्वारा हम अपना व्यक्तित्व रूपांतरित कर सकते हैं , होश में रहकर कर्म किया जाए तो भले बुरे का ज्ञान होगा और गलत ओर हमारे कदम नही चलेंगे!
• गुरु की शरण मे रहकर ज्ञान प्राप्त करो, वह तुम्हे उस सदमार्ग पर लेकर चलेंगे जहां कर्म सत्कर्मो में बदल जाये, राह भटकने से बचाएंगे. वह दिव्यदृष्टि प्रदान करेंगे जिससे हम अपना लोक भी सुधार सकें और परलोक भी, उन पूज्य चरणों मे कोटिशः प्रणाम!
1 Comment
गुरु क्रपा से सब समभव हो जाता है गुरु हैं तो जिंदगी शुरू है औम गुरुवै नम भागयशाली महशुश कर रहे हैं