मंत्र में छिपी है रूपांतरण की शक्ति
किसी मंत्र के नित्य उच्चारण से एक विशिष्ट ध्वनि-कम्पन बनता है, जो ब्रह्मांड व्यापी ईथर में मिलकर वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और जिस आदर्श व देवता से सम्बन्धित यह मंत्र हैं, आकाश में
प्रवाहित वही सूक्ष्म भाव, सूक्ष्म परमाणु, प्राणशक्ति को संचित कर वापस जपकर्त्ता के शरीर-मन व अवचेतन की गहराई तक अनेक गुणा होकर टकराता है और उन गुणों का प्रभुत्व बढ़ा देता है।
वेद, पुराणों, उपनिषदों से लेकर विद्वानों की सभाओं और गांव की चौपालों तक मंत्रें की बड़ी महिमा बखानी जाती है। भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में असंख्य लोग हुए हैं, जिन्होंने मंत्र के सहारे जीवन का कायाकल्प किया है। यही कारण है कि देश-विदेश के लोग इसके रहस्य को समझने में आज तक प्रयासरत हैं।
गुरुदेव श्री सुधांशुजी महाराज कहते हैं कि ‘‘मंत्र बारम्बारता का विज्ञान है, जिसका प्रभाव साधक के अवचेतन मन पर पड़ता है। वैदिक मंत्र हो या बीज मंत्र इससे सीधे मनुष्य के चक्र विशेष प्रभावित होते हैं और व्यक्ति की ऊर्जा शक्ति का जागरण व एकीकरण होता है।’’ ‘मननात् त्रयते इति मंत्रः’ अर्थात् जिसके मनन करने से त्रण मिलता है, वही मंत्र है। इसका आशय यह है कि जब एक ही आदेश मन को बार-बार दिया जाता है, तो वह संदेश चेतन मन से अवचेतन मन की ओर प्रवाहित होकर अंततः वह व्यक्तित्व का रूपांतरण करता है।’’ इस दोहराने की क्रिया को ‘ऑटोसज्जेशन’ भी कहा गया है।
‘मंत्र’ रूपी कुछ बीज अक्षरों में इतनी शक्ति है कि इसको भाव संकल्प के साथ साधक बारम्बार दोहराकर अपने सम्पूर्ण मन, मस्तिष्क और इन्द्रियों को उनके अनुरूप कार्य करने के लिए बाध्य कर देते हैं। शब्दों के बारम्बारता का प्रभाव हमारे आभामण्डल पर भी पड़ता है। प्राण विज्ञान विशेषज्ञों का कहना है कि ‘‘हर प्राणी के आस-पास उसके ही विचारों का एक विद्युत-वर्तुल साथ चलता रहता है, जिसपर शब्दों की बारम्बारता के माध्यम से प्रभाव डाला जा सकता है।’’ मंत्र जप द्वारा जब बार-बार दोहराया जाता है, तो शब्द के माध्यम से वातावरण में दिव्य तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो मनुष्य के अवचेतन मन में जाकर बस जाती हैं, फिर उन्हीं के अनुसार मनुष्य की आदतें, व्यक्तित्व और व्यवहार का निर्माण होता है। यही है मंत्र जप का महत्वपूर्ण पहलू।
हर मंत्र में एक अपार रहस्य समाया हुआ है। रहस्य यह कि जब ‘शब्द’ हम वाणी से प्रकट करते हैं, तो वह सर्वप्रथम ध्वनि तरंगों में परिवर्तित होता है। तत्पश्चात बार-बार उच्चारण से उसी के अनुरूप आभामण्डल तैयार होता है, जो हमारे जीवन को प्रभावित करता है। इस प्रकार किसी मंत्र के नित्य उच्चारण से एक विशिष्ट ध्वनि-कम्पन बनता है, जो ब्रह्मांड व्यापी ईथर में मिलकर वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और जिस आदर्श व देवता से सम्बन्धित यह मंत्र हैं, आकाश में प्रवाहित वही सूक्ष्म भाव, सूक्ष्म परमाणु, प्राणशक्ति को संचित कर वापस जपकर्त्ता के शरीर-मन व अवचेतन की गहराई तक अनेक गुणा होकर टकराता है और उन गुणों का प्रभुत्व बढ़ा देता है।
इस प्रकार मंत्र द्वारा हम प्रकृति के सारे रूपों, सारे स्वादों और साधनों, रहस्यों को खंगाल सकते हैं। साथ ही मन और चित् को शान्ति और सन्तोष के परमाणुओं से जोड़कर ईश्वर से एकीकरण का मार्ग प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार जीवन में एक नवीन ऊर्जा जगाने, रूपांतरण की दिशा तय करने में ‘मंत्र’ कारगर साबित होता है। मंत्र का सहारा लेने से मन की तामसिक प्रवृत्तियों का नाश होता है और व्यक्ति दुर्व्यसनों से भी मुक्त होता है। ‘मंत्र’ द्वारा रोग भी ठीक किए जा सकते हैं। पर इससे भी बड़ी बात कि गुरुकृपा, श्रद्धा, भक्तिभाव और विधि के संयोग से जब मंत्रें के अक्षर अन्तःकरण में प्रवेश करते हैं तो वर्तमान ही नहीं, जन्म-जन्मान्तर के पाप-संस्कार स्वतः ही नष्ट होने लगते हैं और साधक में एक दिव्य चेतना का जागरण धीरे- धीरे प्रारम्भ होता है। इसे ही शब्द-शक्ति एवं मंत्र तत्व का रहस्य कह सकते हैं। इसमें सम्पूर्ण रूपांतरण का रहस्य छुपा है।
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बहुत ही लाभकारी जानकारी