स्वयम को आसक्ति से ऊपर उठाना होगा | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

स्वयम को आसक्ति से ऊपर उठाना होगा | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

Atmachintan

• भगवान की भक्ति का चरम रूप यही है कि निरासक्त हो जाओ – मन संसार से ऊपर उठ जाए – रहना इसी संसार मे है पर फंसना नही!

• भक्ति की सुध यूँ करो जैसे गागर पनिहार:: जिस प्रकार से पनिहारी महिला पानी लेकर चलती है , घड़े सर पर भी रखे हैं, बातचीत करती हुई भी चल रही है पर ध्यान अपने घड़ों में ऊपर की ओर केंद्रित है कि पानी न छलक जाए- बस संसार के कर्तव्य भी पूरे करते रहो पर ध्यान परमात्मा में जुड़ा रहे, मानसिक रूप से भक्ति चलती रहे, यही आध्यत्म की पराकाष्ठा है!

• विदेहराज जनक का भी उदाहरण समक्ष है जो राज महल में रहते हुए, राजकार्यों को संभालते हुए भी इतने विरक्त थे कि मन भगवान में ही जुड़ा रहता था । इसी प्रकार दुनिया का आनंद लेते हुए जीना है , बस मन को भगवान को अर्पित करके अपनी लौ वही जोड़कर रखनी है!

• इसी को मानसिक जाप या अजपा जाप के द्वारा सम्भव माना गया है, मन ही मन प्रभु का जाप, ध्यान चलता रहे और सन्सार के कार्य भी चलते रहें!

• जाप, ध्यान, यज्ञ याग, दान पुण्य यह सभी वह क्रियाएं है जो हमे सहायक होती हैं भगवान से जोड़ने में। मन को इतना गहराई से जोड़ लो उस परम सत्ता में : कि कण कण में वही अपना अहसास कराए- तुम प्रभु के और प्रभु तुम्हारा हो जाये !

• मन को निर्मल, पवित्र, शुद्ध करके अपने गुरु का आशीर्वाद लेकर पूरी तरह झोंक दो भक्ति के यज्ञ में- तू ही तू , तू ही तू, बस तू ही तू :: और कुछ ध्यान ही नही- अपने लक्ष्य में सफलता अवश्य मिलेगी और तुम परमात्मा को आए जाओगे !

1 Comment

  1. Usha pathak says:

    Naman gurudev.ap bahut achha samajhate rehte ho.phir bhi hum bhul ker duniya dari may lage rehte hain

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