शिष्य के लिए सौभाग्यमय गुरु की आशीर्वाद मुद्रा

शिष्य के लिए सौभाग्यमय गुरु की आशीर्वाद मुद्रा

शिष्य के लिए सौभाग्यमय गुरु की आशीर्वाद मुद्रा

शिष्य के लिए सौभाग्यमय गुरु की आशीर्वाद मुद्रा

दुष्टता-विसंगतियां जब भी समाज में उभरती है, तब उसे ललकारने की हिम्मत जिनके अंदर जागृत होती है, समझना चाहिए कि उन पर परमात्मा की कृपा है। उन्हें परमात्मा ने अपना विशेष प्रतिनिधि चुना है, और उनके हाथों में यह अभय मुद्रा स्वतः जाग उठती है। सौभाग्यशाली लोग गुरु की इस आशीर्वाद मुद्रा के सहारे अपना भाग्य जगाते हैं।

‘‘जीवन जीने का अंदाज सही है, फिर भले ही व्यक्ति झोपड़ीं में ही रहता हो, प्रसन्नता के फूल खिलने लग जायेंगे। पर यदि किसी व्यक्ति के जीवन में आनन्दपूर्ण जीवन की सुव्यवस्था ही नहीं है, तो महलों के अन्दर भी विषाद, निराशा से भरी आहें ही होंगी।’’

सद्गुरु पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज

आपने देखा होगा कि साधु-महात्माओं, गुरुओं, ट्टषियों के हाथ की मुद्रा आशीर्वाद देती दिखती है। यह आशीर्वाद वाली हाथ की भाव-मुद्रा आशीर्वाद, मंगलकामना, अभय की मुद्रा कहलाती है। जिसका संकल्प है कि सबका भय हट जाए, चिंताएं हट जाएं, दुःख हट जाएं, सब भयमुक्त हो जाएं। वास्तव में भय है तो चिंता है, चिंता है तो फिर निराशा भी है। संतों की उस मुद्रा का मतलब है भक्त, शिष्य व संसार भर में अभयता प्रवाहित करना। ये विशिष्ट मुद्रा ही अभय मुद्रा है। वास्तव में कोई समर्थ सद्गुरु व समर्थ योगी ही इतनी साहसपूर्ण मुद्रा में टिक सकता है।
इसीलिए अनंत कलाओं से ओतप्रोत होता है योगी। योगी में ही गुरुत्व जागृत होता है। कृष्ण षोडश कला युक्त संपूर्ण अवतार माने जाते हैं। वे संपूर्ण योगेश्वर रूप लेकर प्रकट हुए हैं। कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्, कृष्ण जगत् के गुरु भी हैं। वे कहते हैंµ

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।
बहवो ज्ञानतपसा पूता म७ावमागताः।।
अर्थात् सबसे पहले राग को त्यागो, भय को मुक्ति दो, क्रोध को अपने अंदर से पोंछ दो, ज्ञान और तप से अपने को पवित्र करो, बस समझ लो प्रभु का धाम सम्मुख है। इससे स्पष्ट है कि योगी बनने के लिए रागमुक्त होना जरूरी है। राग जब तक छोड़ेंगे नहीं, संसार छूटेगा नहीं और योग मिलेगा नहीं। गुरुमुद्रा  इसी रागमुक्ति का प्रतीक है।
भारतीय महापुरुष कभी भी किसी से भयभीत नहीं हुए, निडर होकर चलते रहे। अनेक महापुरुषों के सामने तो ऐसा भी हुआ है कि दुनियाभर के लोग विरोधी बनकर खड़े हो गये, लेकिन वे फिर भी कांपे नहीं, डरे नहीं और एक समय ऐसा आया कि लोगों ने उन्हें समझा और हृदय से पुनः आत्मसात किया। निर्भयता वास्तव में जीवन की विशिष्ट कला है। यह जीवन में आती है तो हर सौभाग्य जाग उठते हैं। इसीलिए गुरु योग साधना के लिए सर्वप्रथम अभयता को ही धारण करने का संकल्प कराते हैं।
यह अभयता अपने लिए ही नहीं, अपितु जिससे सज्जनों की रक्षा हो सके, संसार में लुप्त हुई सद्धाराओं को फिर से प्रवाहित किया जा सके। ताकि सृष्टि में पुनः आदर्श स्थापित हो और दुष्ट-वृत्तियां दबें, सज्जनों को दिशा मिले, उनका मनोबल बढ़े। कहते हैंµदुष्टता-विसंगतियां जब भी समाज में उभरती है, तब उसे ललकारने की हिम्मत जिनके अंदर जागृत होती है, समझना चाहिए कि उन पर परमात्मा की कृपा है। उन्हें परमात्मा ने अपना विशेष प्रतिनिधि चुना है, और उनके हाथों में यह अभय मुद्रा स्वतः जाग उठती है। सौभाग्यशाली लोग गुरु की इस आशीर्वाद मुद्रा के सहारे अपना भाग्य जगाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *