आज के इस भागदौड़ी भरे जीवन में, जब सब कुछ आसानी से और जल्दी मिल जाता है, मनुष्य का बेचैन रहना स्वाभाविक है। और जब कुछ वक़्त पर न मिले, तो क्रोध आना भी स्वभाविक है। हर व्यक्ति अपने आप को क्रोधित होने का इतना आदि बना लेता है कि ये मानव का एक अभिन्न अंग बन जाता है। व्यक्ति विश्वस्त हो या कमजोर, क्रोध तो किसी को भी आ सकता है।
जब भी व्यक्ति को क्रोध आता है, पहले वो व्यक्ति की शांति को भंग करता है, फिर उसकी मुस्कुराहट छीन लेता है। कहा जाता है कि “क्रोध परमात्मा का दिया हुआ वह रूप है जो व्यक्ति के विरुद्ध होने वाली किसी भी परिस्थिति में बाधित होने वाली ऊर्जा का विस्फोट है। क्रोध की अनुपस्थिति, मानव को अपने दुःख, बाधा, पीड़ा को दूर करने के लिए असक्षम बनाती है। अपने जीवन और अपने समाज में परिवर्तन लाने के लिए क्रोध का आना आवश्यक तो है, लेकिन अपने क्रोध की सीमा तोड़ देना उसी प्रकार हानिकारक है जिस प्रकार चूल्हे की अग्नि का चूल्हे से बाहर आना। इसलिए मनुष्य क लिए अपने क्रोध को सही दिशा देना अति आवश्यक है।
क्रोध को नियन्त्रिक करने के लिए इन बिन्दूओं को ध्यान में रखें :
1. जब भी क्रोध की स्थिति उत्पन्न हो, क्रोध की पहली लहर से ही खुद को शांत करने का प्रयास करें। माथे पर पड़ी लकीरों को सामान्य करें, गहरी सांसें लें, पानी पीएं, और वह स्थान छोड़ दीजिये जहां क्रोध का उत्सर्जन हुआ। उस वक़्त अपने परमपिता परमेश्वर को याद करना और खुद को समझाना ही सद्बुद्धि का कार्य होगा, कि यह घड़ी ठीक नहीं, अपने सन्मुख व्यक्ति की भांति क्रोध के प्रवाह में बह जाना समझदारी की बात नहीं है। इस प्रकार के विचारों से खुद को भरकर अपने आप को शांत करें। इन सभी प्रक्रियाओं को अपने दिल-ओ-दिमाग़ में जल्दी-जल्दी प्रयोग में आने दें क्यूंकि क्रोध की लपटें फैलने में अधिक समय नहीं लगता ।
2. क्रोध को शांत करने में सबसे कारक सिद्ध होती है – मुस्कराहट। यदि चेहरे से मुस्कान नहीं जाने देंगे तो क्रोध आने की संभावना भी कम रहेगी।
3. क्रोधित होने का सबसे पहला संकेत होता है व्यक्ति के गरम कान एवं कनपटी। यदि उस ऊर्जा को उसी समय गहरी साँसों तथा मुस्कराहट के साथ काबू कर लिया जाये, तो वक़्त रहते क्रोध पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इस से पहले कि क्रोध का बाण छूटे, व्यक्ति को इन सभी छोटी बातों पर विचार कर लेना चाहिए कि गुस्से से किसी समस्या का समाधान होना असंभव है।
यूँ तो क्रोध की कनपटी से शुरू हो कर, मस्तिष्क से गुज़र के नथुने फुलाते हुए, व्यक्ति की जिव्हा से नियंत्रण खोने की यात्रा लम्बी है, किन्तु इस प्रक्रिया को पूर्ण होने में एक क्षण से भी कम समय लगता है।
अब यह प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपने पूरे शरीर को इस कड़वाहट भरी यात्रा का हिस्सा बनने देगा या फिर एक शांत स्वाभाव वाले व्यक्तित्व के निर्माण का प्रयास करेगा !