मात्रमान, पित्र मान, अचार्यवान पुरुषों वेदः | Atmachintan | Sudhanshu ji Maharaj

मात्रमान, पित्र मान, अचार्यवान पुरुषों वेदः | Atmachintan | Sudhanshu ji Maharaj

मात्रमान, पित्र मान, अचार्यवान पुरुषों वेदः

मात्रमान, पित्र मान, अचार्यवान पुरुषों वेदः

  • मनुष्य इस संसार मे जन्म लेता है तो उसके ऊपर माता, पिता और गुरु सभी का ऋण होता है जिससे उसे उऋण होना परम आवश्यक है!
  • अपनी संतान को अपने से भी अधिक योग्य बनाकर समाज को अर्पित करना तथा उन्हें संस्कार वान बनाना यह माता पिता का कर्तव्य भी है और ऐसा करके ही वह अपने मात्र,पित्र ऋण से मुक्त हो सकते हैं !
  • हमें अपने माता पिता का उचित सम्मान करना और उन्हें आदर देना – यह संतान का कर्तव्य है !जिन्होंने अपने कंधों पर बिठाकर आपको दुनिया दिखाई, अपने दुख सुख का ध्यान किये बिना अपनी सामर्थ्य से अधिक आपके लिए सब कुछ किया – उनकी आवश्यकता में आपको भी सहयोग करना चाहिए । वृद्ध माता पिता की सेवा सुश्रुषा करने पर जो पुण्यलाभ प्राप्त होता है : उसकी किसी चीज से तुलना नहीं!
  • मा बाप की दुआएं भी अपनी संतान के लिए बहुत बड़ा काम करती हैं, परंतु हमें उनका सम्मान और आदर देने में कही कोई कमी नहीं रखनी चाहिए! अपना समय देकर उनके साथ बैठिए, उनके हाल पूछिये, प्रेमपूर्ण बातें करने से उनका मन प्रसन्न हो जाएगा और दुआएं तो स्वतः ही उनके हृदय से निकलेंगी!
  • अपनी कमाई का कुछ अंश उन्हें मासिक खर्चे के लिए दीजिए! जब आप छोटे थे तो उन्होंने आपको जेबखर्ची दी, आपको भी कुछ राशि उनको मासिक तौर पर अवश्य देनी है! उन्हें कभी घूमने ले जाये, उनकी पसंद का भोजन व अन्य वस्तुएं उन्हें खिलाकर संतुष्ट कीजिये और उनकी वीडियो बनाकर रखे: आज वह जीवित हैं, कल नहीं रहेंगे तो यह यादें आपको बहुत भावुक करेंगी!
  • देखने मे आया है कि “जीवित पितर तो जंगमजंगा – मर जाये तो पहुचाये गंगा” जीवित रहते तो उनसे झगड़ा किया, उन्हें दुखी किया, मरने के बाद उन्हें गंगा घाट लेकर जा रहे हैं! कुछ करना है तो जीवित रहते ही उन्हें खुशियाँ दें तभी लाभ है!
  • हमे अपनी परंपराओं का निर्वाह करते हुए पित्रों के प्रति तर्पण, दान पुण्य तो करना ही चाहिए, यथासंभव दान दक्षिणा भी दें – ऐसा हमारे संस्कार होते हैं! यह भी आवश्यक है!

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