गुरुकृपा से ऊर्जा पिण्ड को जगायें | Sudhanshu ji Maharaj

गुरुकृपा से ऊर्जा पिण्ड को जगायें | Sudhanshu ji Maharaj

Awaken the energy body with Gurukrupa

गुरुकृपा से ऊर्जा पिण्ड को जगायें

‘पिंड छुड़ाना’ इसके दो अर्थ हैं, प्रथम कि किसी अनचाहे व्यक्ति व अनचाहे कार्य से दूरी बना लेना, दूसरा अर्थ आध्यात्मिक है, परमात्मा द्वारा मिले इस मानव शरीर में स्थित चेतन पिण्ड में चेतना ज्योति का प्रज्ज्वलित होना। गुरु गीता में पिण्ड का आशय कुण्डलिनी शक्ति (मूलाधार) बताया गया है, जो मानव काया का आधार है। इसे काया का ‘बीज’ केन्द्र भी कह सकते हैं। कुण्डलिनी को दिव्य ऊर्जा का पिण्ड भी कहते हैं। इसीलिये काया की सार्थकता तब ही है, जब पिण्ड में ज्योति जागरण हो जाये।

इस चेतन ज्योति का जागरण ही मानव का दूसरा जन्म, आध्यात्मिक जन्म है। इसी दूसरे जन्म के कारण भी मनुष्य को द्विज कहते हैं। द्विज बनना साहस का विषय है। इसीलिये जीवन में कुछ को ही द्विज की उपाधि प्राप्त है। ब्राह्मण व पक्षी को भी द्विज कहते हैं। क्योंकि इनके दो जन्म होते हैं। पक्षी का एक जन्म अण्डे के रूप में मां के गर्भ से बाहर आना और दूसरा जन्म है जब वह अण्डे से पक्षी के रूप में बाहर निकलता है। दांत के भी दो जन्म होते हैं। एक दूध के दांत और दूसरे वे जो उनके टूटने पर आते हैं। मनुष्य के दूसरे जन्म में सहायक बनने वाली शक्ति ही गुरु है।

सद्गुरु व्यक्ति को नया जन्म देता है

जैसे अण्डा मां के पेट से तो बाहर आया, लेकिन अण्डा का तब तक जीवन बेकार है, जब तक उस अण्डे से वह बच्चे के रूप में प्रकट न हो जाये। इसी तरह दूध के दांत भी जिंदगी नहीं चला सकते, इसके लिए असली दांत चाहिये। ऐसे ही व्यक्ति को मां-बाप से जन्म तो मिल गया, पर उसी रूप में जीवन धारण किये रखना बेकार है, इसलिये सद्गुरु व्यक्ति को नया जन्म देता है, तब ही जीवन सार्थक बनता है। असली जीवन यही है, इसमें मनुष्य जागृत रहता है। यह जागरण भौतिक और आध्यात्मिक रूप से भी जागृत कहा जायेगा।

वैसे सामान्य मनुष्य बुद्धि से तो जागृत हो जाता है, पर उसमें जब चैतन्यता आती है, तभी वह वास्तविक मनुष्य कहा जाता है। पर पिण्ड का छूटना इससे भी आगे की बात है। गुरुतत्व द्वारा ही यह जागरण सम्भव बनता है। तब मनुष्य का सम्पूर्ण शरीर, अणु-अणु सहित हृदय तक अलग स्तर पर जागृत हो जाता है। वह अनन्त-अनन्त प्रेम से पूर्ण हो जाता है।

इस अवस्था में व्यक्ति की आत्मा पुकार उठती है। और वह सद्गुरु तत्व की अनुभूति करता है। वह हर व्यक्ति में, कण-कण में ‘‘प्यारा सा अहसास, दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति प्रेम की अनुभूति करने लगता है व सद्गुरु को हर पल अपने पास जीने की आस रूप में देखता है, मन में एक विश्वास जग उठता है।

गुरु कृपा से कुण्डलिनी की शक्ति ज्योति प्रज्ज्वलित

इसी प्रकार गुरु कृपा से कुण्डलिनी की शक्ति ज्योति प्रज्ज्वलित हो उठती है। इस अवस्था में शिष्य साधक को जब भी सद्गुरु आशीष भेजता है, तो उसके साथ देवी-देवता भी अपना आशीष पहुंचाते हैं, गुरु परम्परायें पितर सभी उस शिष्य को निहाल करने लगते हैं। यही है मानव का दूसरा जन्म और पिण्ड का छूटना।

1 Comment

  1. Jai gurudev namah shivay om

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