आज के गीता अमृत ज्ञान में सतगुरु ने कहा कि सभी यज्ञो में ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है | Gita Updesh

आज के गीता अमृत ज्ञान में सतगुरु ने कहा कि सभी यज्ञो में ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है | Gita Updesh

सभी यज्ञो में ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है

भगवान कहते हैं कि अर्जुन यज्ञ शेष को ग्रहण करने वाले लोग शाश्वतब्रह्म को प्राप्त होते हैं यज्ञ ना करने वालों के लिए यह जीवन सुखद नहीं है । इसका मतलब यज्ञ से प्राप्त फल ही यज्ञ शेष (अवशिष्ट) अमृत है । यहां भगवान ने यज्ञ के प्रसाद या मिष्ठान को ही इसकी सीमा नहीं बताया उन्होंने कहा कि देव, नित्य, द्रव्य ,तथा देश की रक्षा भी एक यज्ञ है ।
जो लोग यज्ञ शील होते हैं उन्हीं का लोक और परलोक सुधरता है। मनुष्य अपने अंदर न्यूनता को घटाने का प्रयास न करते हुए एक योग्य गुरु ढूंढने का प्रयास करता रहता है
मनुष्य की बौद्धिक क्षमता उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी महत्वपूर्ण है भावना जिन्होंने यज्ञ में अपने कलमश को जलाकर अपने को पवित्र बना लिया है उन्होंने अपने आहार और प्राण को भी नियंत्रित कर रखा है। यज्ञ के भी कई प्रकार होते है जिसमें बेदी के प्रकार, मेखला, आहुति, पात्र सब अलग-अलग तरह के होते हैं परंतु शास्त्र विहित कर्मों को ही यज्ञ कहा गया है
वह जो आप तरह-तरह की सेवा कर रहे हैं ।वह एक बहुत बड़ा यज्ञ है । सतगुरु ने युधिष्ठिर के यज्ञ में आए एक जीव जो कुरुक्षेत्र से आया था जिसमें उस जीव ने एक ऐसे यज्ञ की बात की जो बिना अग्नि और कर्मकांड के हुई थी और बताया कि धर्म की परीक्षा तब होती है जब आप संकट में रहते हैं और युधिष्ठिर को बताया कि तुम्हारे यज्ञ में अहंकार जुड़ा हुआ है ध्यान देने वाली बात है कि युधिष्ठिर को जानवरों और पशु पक्षी की भाषा आती थी सनातन व्यवस्था में कहा गया है कि यज्ञ वह है आपके जीवन में जो पुण्य कर्म हुए हैं वही आपको परमात्मा की तरफ ले जाते हैं यज्ञ में सबसे पहले त्याग श्रद्धा विश्वास की भावना होनी चाहिए लेकिन कमाल की बात है दुनिया में जो चीज जहां से गायब होती है वही मिलती है परंतु विश्वास के साथ ऐसा नहीं है। अगर आपका जीवन किसी के काम आ जाए तभी व सार्थक है और आप अपने जीवन में तनाव दुख के साथ रहते हुए भी अगर फूलों की तरह मुस्कुराते हैं तो आप जीवंत है आगे भगवान कहते हैं कि परोपकार या यज्ञ शील लोगों के कारण ही यह लोक है। और लोगों में शांति तथा सुख की प्राप्ति होती है वे लोग पृथ्वी को बहुत कुछ देकर जाते हैं जैसे हमारी पिछली पीढ़ी हमें बहुत सारे अपने यज्ञ बाग लगाए ।जो अस्पताल धर्मशाला के रूप में आपको दिख रहे हैं।आप जिस भी योनि में आगे होंगे वहां भी उसका पुण्य फल आपको प्राप्त होता रहेगा।
भगवान ने आगे कहा कि जो केवल अपने लिए जीते हैं समाज के लिए कुछ नहीं करते वह यज्ञ शील नहीं है पूरी दुनिया में लड़ाइयां अहंकार की है जहां पर आप कोई महान कार्य में लगे हैं उसमें अपनी मैं को नहीं रखना आप बड़े बन रहे थे आपका उत्थान हो रहा था लेकिन आपकी मैं ने आपको छोटा बना दिया।

ऊपर कहे गए शब्दों का सार नीचे चार लाइनों में
💐इस भांति से है पार्थ जो कुछ यज्ञ करते हैं नहीं
💐उनको ना इस संसार में सुख शांति मिलती है कहीं
💐जिनको ना सुख है लोक में पर लोक में कैसे कभी
💐सुख शांति पा सकते भला, जरा सोच तो इसके सभी

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