किसी-किसी व्यक्ति के मन पर दुनिया के अनेक आघात लगे होते हैं। ये आघात उसके कार्य, व्यवहार, वार्तालाप, सोचने की शक्ति, स्वास्थ्य सब को प्रभावित करते हैं। ऐसे व्यक्ति को मनः चिकित्सक भी ध्यान में उतरने की सलाह देते हैं। ध्यान की भी अनेक तकनीकें हैं। जैसे मन को स्वतंत्रा छोड़ कर उसकी गति को देखना, मन को किसी दिव्य वातावरण से गुजारना, उसे साक्षीभाव से देखना आदि-आदि। जिस प्रकार नींद लेने की विध् किसी को सिखायी नहीं जाती, नींद के लिए बस आराम से बिस्तर पर शिथिल होकर लेटना और मस्तिष्क को खाली करना पड़ता है। ठीक इसी प्रकार ध्यान के लिए अपने मन को खाली करने का अभ्यास करना पड़ता है। बार-बार ऐसा प्रयोग करने से ध्यान में परिपक्वता
आने लगती है। जैसे नींद का कोई ठीक समय नहीं है, नींद की तरपफ से ध्यान हटा लेना ही नींद का आगमन है, उसी प्रकार शांत होते जाना और विचार शून्य होते जाना, मन का दबाव हटाते जाना ही ध्यान है। इससे मन अपने स्वभाव में आकर स्थित हो जाता है।
मन की आदत पहचानेंः
मन की एक और आदत है कि वह अवसर मिलते ही कहीं से कहीं पहुंचने का प्रयास करता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि मन रस की खोज में मारा-मारा पिफरता है। पर इस मानव मन को अपने अस्तित्व से जुड़ने के बाद ही शांति मिलती है। मनोविश्लेषक इसलिए सर्वप्रथम मन की वृत्ति को समझने, पिफर उसे सही दिशा देने पर जोर देते हैं।
मनोविश्लेषक बताते है मन अनन्त शक्तियों और विभूतियों से भरा है, यह जिस काम में लगता है, उसे जादू की तरह पूरा करता है। मन को अनुकूल दिशा में साध्ने के कारण ही असंख्य लोग कलाकार, वैज्ञानिक, सिद्धपुरुष , महामानव बनने में सपफल हुए हैं। पर मन को साध्ना इतना आसान नहीं। इन व्यक्तियों ने मन को साध्ने के लिए अपने अंदर रुचियां जगाई। भागते मन की धरा को विपरीत रुचि से जोड़ा, तत्पश्चात्
एकाग्रता, तन्मयता द्वारा अपने को उपलब्ध्यिों तक पहुंचाया। कहते हैं पानी की तरह मन की गति भी अधेगामी है। वह आमतौर से जिह्ना, स्वाद, सैर-सपाटे, विलास वैभव, यश, सम्मान पाने, काम वासना में भटकने की इच्छा से भरा होता है। सामान्य मन इन्हीं की कल्पनाएं करता रहता है। मनोविज्ञानी कहते हैं कि मन खाली रहता है, तो अध्कितर इसी ओर जाता है। अतः इसको कभी खाली न छोड़ें, अपितु कहीं कोई ऐसे स्थान, वातावरण या ऐसे काम से जोड़कर रखें, उसकी रुचि का हो, मन को वैसे भी स्वस्थ दिशा सुझाते ही रहना चाहिए।
मन की रुचियां बदलें
पूज्य श्री सुधंशु जी महाराज कहते हैं मन की उड़ाने, वासना, तृष्णा की ओर जाने के लिए जन्म-जन्मांतरों से अभ्यस्त रही हैं, इसलिए वह पुराना मार्ग ही पकड़ने लगता है। स्वेच्छाचार तक के लिए भी वह आतुर होता है। पर यह मनुष्य का मन है, इसलिए पशुओं की तरह कुछ भी कर गुजरने के लिए स्वतंत्रा छोड़ा भी नहीं जा सकता। इसलिए इसे साध्ने के लिए मर्यादाएं, वर्जनाएं और जिम्मेदारियां डालकर महापुरुषों के आदर्श जीवन बोध्, जप, उपासना, सिमरन, सेवा, सद्विचार, सद्कार्य के माध्यम से इध्र-उध्र आवारापशु की तरह दौड़ने से रोका जा सकता है।खासबात कि यदि मन का रुचि केन्द्र बदला जा सके, तो इसी मन के सहारे सम्पूर्ण संसार को अपना बनाया जा सकता है।’’ इस तरह सिखाने, साध्ने पर वह सरकस के जानवरों की तरह उठ खड़ा होता है और एक दिन ऐसे उच्च स्तरीय लक्ष्य को बेध्ने में सपफल होता है, जो उसकी जन्मजात प्रकृति के विपरीत अनुभव होता है। मन प्रयासपूर्वक जब अनुकूल बन जाता है, तो मालिक की इच्छानुसार अपनी गतिविध्यिों का करतब दिखाता है। प्रमाण, उदाहरणों के सहारे मन का रुचि केन्द्र बदलकर उसे कार्य में लगाते आये हैं। भारत के सम्पूर्ण अध्यात्म में मनःस्थल की साध्ना का ही तो विज्ञान छिपा पड़ा है।
पूज्यवर के कछ विशेष प्रयोगः
गुरुदेव कहते हैं कि ‘‘मन की अवस्था को अंतःकरण के भावावस्था से जोड़ते ही प्रार्थनायें परिवर्तनकारी साबित होती हैं। प्रस्तुत है एक प्रार्थना। इसके लिए गुरुदेव कहते हैं ‘‘साध्क सर्वप्रथम कमर सीध्ी करके शांत-चित्त से ध्यान में बैठकर क्रमशः प्रार्थना अनुरूप भाव दशा में उतरने का प्रयास करे, तो कुछ दिन के अभ्यास से साध्क
का मन सहज सध्ने लगेगा।’’ इसके बावजूद सामने तथ्य आये हैं कि गुरुकृपा प्राप्त साध्क इसमें पूर्ण सपफल होते देखे गये हैं। ध्यान कुछ इस तरह से करें जैसेμ‘‘मैं
शांत हो रहा हूं, शांत, शांत, शांत, शांत।’ इस प्रकार अपने को ढीला करते जाएं। भावना हो कि मस्तिष्क में शांति की लहरें उतर रही हैं, मैं शांत होता जा रहा हूं। चंद्रमा की चांदनी शांति बनकर संसार में उतर रही है। ऐसे शांति की लोरी गाते-गाते मन को एक जगह टिकाकर पलकों को इतनी कोमलता से बंद करें, जैसे पूफलों की पंखुड़िया बंद हो रही हैं। इस प्रकार जैसे-जैसे शांत होते जायेंगे, अंदर असीम शांति और गहन मौन का वातावरण बन जाएगा। बीच-बीच में इध्र-उध्र मन जाए भी तो
पिफर शांति-शांति कहते हुए पुनः शांत हो जायें।’’ इस कार दिन में बार-बार ऐसा प्रयोग करने से मनःतंत्रा में परिपक्वता आती है और जीवन में मन का महत्व समझ में आता है। इस प्रकार मन हमारे आत्म स्वभाव से जुड़कर उपलब्ध्यिों का मार्ग प्रशस्त करता है। गुरु निर्देशित यह साध्ना मन को स्वभाव में लाने का एक विशेष प्रकार का विज्ञान भी है।
5 Comments
ऊँ गुरुवे नमः
धन्यवाद गुरुदेव आपका
मन को रोकने में यदि सफल तो शांति, सफलता मिलेगी यह आवश्यक है जीवन का यही तो सच
Hariom Guruji
हर मनुष्य को पता है जिस दिन मैं आत्मा विलीन हो गया तब एक तिनका भी साथ नहीं जायेगा फिर भी मनुष्य आज की नहीं कल इच्छा रखता है जब कि मनुष्य एक पानी का बुलबुला है जय शनिदेव बाबा यही जीवन है
Jay Gurudev I am connected to Art Of Living and always trying to findout simple way of meditation to achieve Atmasagatkar,or can say peace of mind.