सच्ची निष्ठा परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति देती है। | Sudhanshu ji maharaj

सच्ची निष्ठा परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति देती है। | Sudhanshu ji maharaj

True loyalty gives strength to fight situations.

हर संकट का समाधान है तप। वह आर्थिक-शारीरिक हो या वर्तमान कोरोना वायरस का संकट। इतिहास में ऐसे अगणित प्रमाण विद्यमान हैं कि अनेक सामान्य से व्यत्तिफ़यों ने तप द्वारा अपनी आंतरिक शक्ति को विकसित कर आत्मा, मन, प्राण, जीवन को प्रखर-पवित्र कर आरोग्यता का लाभ पाया। तप लाभ से सर्वसाधारण के लिए सुख-शांति-समृद्ध का मार्ग सुगम किया। अनेक करुण हृदय संत आज भी अपने तप बल से आंतरिक व्यत्तिफ़त्व को जगाकर अनेक जीवन की सार्थकता सिद्ध कर रहे हैं।

पंच शक्तियों का जागरणः
दिव्य चेतनसत्ता विश्व ब्रह्माण्ड में व्याप्त है, पग-पग पर उसकी सामर्थ्य सहज समझी जा सकती है। उससे जुड़ाव होने पर शरीर के पंच आयाम खुलते हैं। अन्नमयकोश, प्राणमयकोश, मनोमयकोश, विज्ञानमयकोश, आनंदमयकोश क्रमशः खुलने लगते हैं। पर हमारे आचरणों के परिष्कार पर ही सब सम्भव है। सच कहें तो हर मनुष्य थोड़ी सी भाव अवस्था बदल कर अपने को पांच प्रतिरूपों में बदल सकता है। पंचकोश हर मनुष्य के बहुआयामी बीजांश ही तो हैं। इसके लिए जरूरत है साधक की निष्ठा में गहनता, व्यत्तिफ़त्व में प्रखरता, श्रद्धा में गहराई, और साधक की पवित्रता। इन सबसे साधक आंतरिक जीवन शक्ति की प्रखरता का भी मार्ग खुलता है। कोरोना से लड़ने की शक्ति भी इसमें सामिल है। प्राचीन काल से भारतभूमि पर कितने ही संतो, ट्टषियों, गृहस्थयोगियों, साधकों और तपस्वियों ने ऐसी उपासनाएं कर शत्तिफ़यां, विभूतियाँ एवं आध्यात्मिक उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। यही देवत्व का जागरण है।

देवत्व की आवाज ही आंतरिक शक्ति की आवाज है। जिसमें देवभाव जितना अधिक होगा, वह पवित्रता, परोपकार, सेवा, दान, सहायता, संवेदना को उतना ही महत्व देगा। इससे पुण्य बढ़ेगा, रोग से लड़ने की शक्ति जगेगी। ऐसे व्यक्तियों में मंत्र जप, तप, उपासना, उपवास आदि भी अधिक फलित होगा। तब अंतरात्मा की पुकार ईश्वर को सुनना ही पड़ता है। जिसका भी अंतःकरण प्रबल है, परिणाम शुभ आते हैं। स्वार्थ रहित अंतःकरणः हर समस्या का कारण है द्वेष व स्वार्थ का आ धमकना, अतः पश्चाताप, प्रायश्चित किए बिना चैन नहीं पड़ना चाहिए। क्योंकि जो निरंतर क्रूर कर्म करता रहता है, उसकी अंतरात्मा बुराई को आसानी से हटाने के लिए तत्पर नहीं होती। यद्यपि ईश्वर दोनों प्रकार के लोगों में है, दोनों की अंतरात्मा एक सी है। पर दोनों का स्वभाव व मनः स्थिति भिन्न है। सज्जन ने सत्प्रवृत्तियों से अपनी अंतरात्मा को निर्मल बनाया है। पर दूसरे ने अपनी आत्मा को जड़ता-क्रुरता से दुर्बल बना रखा है। दुर्बल आत्मा व मन में रोग का प्रवेश स्वाभाविक है। इस तप से स्वार्थभरी आत्मा को जगाना होगा। तभी अंदर का भगवान प्रकट हो सकेगा, हमें आरोग्य करेगा।

परमात्मा के प्रति निष्ठाः
चूंकि आदर्शों का समुच्चय भगवान है। जीवन आदर्श के प्रति निष्ठा ही ईश्वर निष्ठा है। इस ईश्वर निष्ठा को न समझे, तो भ्रम, निराशा व नास्तिकता ही हाथ लगती है। ऐसे में उसी मंत्र और उसी विधान से एक व्यत्तिफ़ आश्चर्यजनक सकारात्मक परिणाम प्राप्त करता है, जबकि ठीक उसी रीति-नीति को अपनाकर दूसरा व्यत्तिफ़ सर्वथा निराश व असफल रहता है। आध्यात्मिक जगत के प्रयोगों में भी यह लागू होते हैं। अतः विधि-विधान, मंत्र को न दोष दिया जाना
चाहिए और न देवता को। दोष है तो यह कि हमने अपने इष्ट देव को किस स्तर का बनाकर रखा है। सच में देवता के प्रति हमारी निष्ठा से हमारी प्रार्थना में शक्ति आती है और इस आधार पर वे देवता हमारी सहायता कर सकने में समर्थ होते हैं। द्रौपदी के कृष्ण को देखें तो वे एक पुकार सुनते ही दौड़कर आ गये, जबकि हमारे कृष्ण में पुकार सुनने और सहायता के लिए खड़े होने की सामर्थ्य नहीं है। क्योंकि हमारी निष्ठा, नियति में छुद्रता, हीनता व स्वार्थ समाया है।

यह सच है कि इस विराट ब्रह्माण्ड में जो कुछ दिव्य, महान, पवित्र, प्रखर है, उसका एक अंश हर व्यत्तिफ़ के भीतर विद्यमान है। पर उसकी उपेक्षा करने से वह शक्ति निरर्थक ही रह जाती है। ‘‘गुरु व शिव हर जगह उपलब्ध हैं, पर जो अपने शिव को, गुरु को श्रद्धा-निष्ठा, पवित्रता की साधना करके परिपुष्ट बना लेगा, जो उनकी जड़ में जैसा पानी देगा, उसके गुरु व भगवान वैसे ही हरे-भरे रहेंगे अन्यथा निष्ठा के अभाव में वे सूखे मूर्छित एक कोने में पड़े होंगे।’’ हनुमान चालीसा’’ पाठ बहुत प्रभावशाली है, पर जो असंयमी, अपवित्र रहेंगे, उनके लिए इसका पाठ कुछ ज्यादा कारगर नहीं होगा। सच कहें तो आरोग्य और बलिष्ठता का वरदान रुग्ण हनुमान से प्राप्त भी नहीं किया जा सकता है।

वास्तव में जो बालबुद्धि, उतावले और अदूरदर्शी लोग हैं, वही उपासना को जादूगरी, बाजीगरी जैसी चीज मानते हैं और इसीलिए इनकी कल्पना निराधार ही साबित होती है। क्योंकि आत्म परिष्कार के बिना देवताओं की स्तुति, जप, पूजा, प्रसाद से प्रलोभन पूरा करने की आशा में रहते हैं, तो निराशा मिलेगी ही। शक्ति साधना के लिए बिना तप के अपनी भत्तिफ़ का प्रमाण भगवान के सामने नहीं प्रस्तुत किया जा सकता। आरोग्यता पाने के लिए जीवन
के देवता को जगाना ही विकल्प है। अतः आइये! अंदर के भगवान को जगायें। जप-उपासना, ध्यान-गुरुकृपा के सहारे कोरोना से लड़ने की शक्ति पायें।

2 Comments

  1. बहादुर सिंह राजपूत says:

    यह एक दिव्य प्रयास है। इस तकनीक को गुरुवर को बताना ही था। मुझे आशा है यह काफी लाभदायक सिद्ध होगा। जय गुरुदेव

  2. PRAKASH JHUN JHUNWALA says:

    jai guru dev ji

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