नशा से भक्ति की ओर (विश्व धूम्रपान निषेध दिवस पर विशेष)
धूम्रपान क्या है? यह नशा है। यह किसी भी नशीली चीज से हो सकता है, जब उसकी लत लग जाए। अर्थात् आप बार-बार उसका सेवन करें। पहले तो आप उसको चखते हैं, हल्का सेवन करते हैं। फिर आप थोड़ा ज्यादा लेने लगते हैं। एक समय ऐसा आता है, जब आप दिन-रात उसी के लिए जीने लगते हैं। सुबह भी मिल जाए, शाम भी मिल जाए। रात को मिल जाए, तो क्या कहने! कहने वाले कहेंगे कि यह सुखद अनुभूति है, लेकिन यह आपको बरबाद करने लगता है। आपके सारे तंत्र बिखेर देता है। शरीर-तंत्र खोखला हो जाता है। रोगों से लड़ने की क्षमता खत्म हो जाती है। आप लाइलाज रोगों के शिकार भी हो जाते हैं। आपका समाज-तंत्र उखड़-सा जाता है। लोग आपको हेय दृष्टि से देखने लगते हैं। आपकी बातों पर विश्वास करना बंद कर देते हैं। कोई भी कह देता है – अरे कहां फंस गए? इसने तो नशे में बोला था! आपका परिवार-तंत्र उजड़ने लगता है। पत्नी से आए दिन झगड़े होते हैं। बच्चे आपको अनसुना करते हैं।
आर्थिक तंत्र तो ध्वस्त ही हो जाता है।
लेकिन भक्ति, यह क्या है? यह भी तो नशा है, पर इसमें लत नहीं, लगाव है। यह सुखद अनुभूति है, वाकई। आप इसमें संसार से परे हो जाते हैं। जहां नशा का प्रभाव क्षणिक है, अस्थायी है, वहीं भक्ति नित्य है, निरंतर है, स्थायी है। आप इसमें तल्लीन होने लगते हैं और आगे बढ़ने लगते हैं। नशे में आप हिचकोले खाते हैं। लेकिन भक्ति में आप रमने लगते हैं। भक्ति आपको बरबाद नहीं करती, बल्कि आपके अंतर्मन का विकास करती है। आपके सभी तंत्र सुदृढ़ होने लगते हैं। शरीर पर काया का नहीं, बल्कि मन का जोर होता है। आप रोग से समाधान पाते हैं। समाज आपको सम्मान की दृष्टि से देखता है। पत्नी धर्म-कर्म में आपका साथ देती हैं। बच्चे आपका कहा मानने लगते हैं। पूंजी इतनी रहती ही है कि आप भी भूखे न सोएं और अतिथि भी खाली पेट न जाएं।
एक नशेड़ी कुछ भी करने में सक्षम नहीं होता, क्योंकि उसमें सकारात्मक ऊर्जा होती ही नहीं। वहीं, एक भक्त सब कुछ करने में सक्षम होता है। वह सकारात्मक ऊर्जा का पुंज होता है। तो आइए, नशे को न कहें और भक्ति को हां कहें। नशा से भक्ति की ओर बढ़ें।