चित्त का विचाररहित हो जाना ही वास्तव में ध्यान है ! जब मन की लहरें शांत हो जाती है, निर्मल , पवित्र, शुद्ध ह्रदय के साथ जब आप विचारशून्य हो जाते हैं – वह ध्यान की स्थिति है
ध्यान किया नही जाता , घटित होता है , जब मस्तिष्क बिल्कुल शांत स्थिति में पहुंच जाए तो उसमें जैसे चंद्रमा का प्रतिबिंब दिखने लगा हो, उस स्थिति में जब साधक पहुँच जाए तो वह ध्यान की स्थिति होती है
परंतु यह भी सत्य है कि बिना गुरु की शरण जाए और उनकी कृपा प्राप्त करे,कई गुना परिश्रम करना पड़ेगा क्योंकि गुरु व्यक्ति नहीं, परमात्मा का ही अंश हैं और वह ब्रह्मलोक के पथिक हैं :
ब्रह्मांड की तमाम शक्तियों को अपने अंदर खींच कर लाये हुए हैं। इधर साधक लगन से लगा रहे, प्रयत्न करता जाए और सदगुरु अपनी रहमतों की बारिश करते जाए – तब जो बात जन्मों में भी नहीं बनी वह एक झटके में ही बन सकती है
यदि हम गुरु के बताए मार्ग पर पूर्ण समर्पण और श्रद्धा के साथ चलते जाए , अपने नियमों का पालन करते रहें तो गुरूकृपा अवश्य प्राप्त होगी और हम चरम तक की यात्रा कर सकेंगे!
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SATNAM SAKHI SAIJI