राजकुमार सिद्धार्थ जब ज्ञान प्राप्त कर महात्मा बुद्ध हो गये तो बुद्ध ने अपनी साधना के बाद जो ज्ञान प्राप्त किया और जो उपदेश दिया वह अष्टांगिक मार्ग कहलाया। उन्होंने सम्यक दृष्टि, सम्यक जीवन, सम्यक संकल्प, सम्यक समाधि, सम्यक आजीविका आदि के माध्यम से जीवन में संतुलन बनाने का संदेश दिया।
महात्मा बुद्ध ने कहा कि जीवन में दुःख है, दुःख का कारण है और दुख को दूर करने का उपाय भी हें दूसरों के दुःख को देखकर वे घर छोड़कर निकल गये। जंगल के रास्ते से जब वे जा रहे थे तो गंधर्व लोग गीत गा रहे थे, जिसका मतलब था कि वीणा के तारों को इतना मत कसो कि टूट जायें और इतना ढीला भी मत छोड़ों कि आवाज भी न निकले। इसका आशय यह है कि मध्यम मार्ग अपनाओ, मध्यम मार्ग ही संतुलन का मार्ग है। जिसमें व्यक्ति संसार में रहते हुए भी करतार की ओ बढ़ सकता है।
एकाएक यदि कोई घर छोड़ता है तो हो सकता है कि उसे अतिरिक्त वासनाएं भटकाएं और साधना भक्ति में मन टिकने में परेशानियां आएं लेकिन जो संसार में रहते हुए सांसारिक वासनाओं से तृपत है उसका भगवान की भक्ति में आसानी से मन टिक जाता है।
बौद्ध धर्म की स्थापना के बाद बौद्ध भिक्षुओं को समता का उपदेश देते हुए भगवान बुद्ध ने कहाµआप लोग कई देशों और जातियों से आये हैं, किंतु यहां सब एक हो गये हैं। जिस प्रकार भिन्न-भिन्न स्थानों में अनेक नदियां बहती हैं और उनका अलग-अलग अस्तित्व दिखाई देता है, किन्तु जब वे सागर में मिलती हैं तो अपना पृथक अस्तित्व खो देती हैं, उसी प्रकार बौद्ध बन जाने के बाद आप सभी एक हैं। सभी समान हैं।
भगवान बुद्ध अपने उपदेशों में ‘निर्वाण’ को सबसे ज्यादा महत्व दिया। उन्होंने कहा, ‘निर्वाण’ से बढ़कर सुखद कुछ भी नहीं। भगवान बुद्ध ने निर्वाण का जो अर्थ बताया वह निर्वाण उनके पूर्ववर्ती महापुरुषों से बिल्कुल भिन्न है। पूर्ववर्तियों की दृष्टि में निर्वाण का मतलब था आत्मा का मोक्ष। बुद्ध के अनुसार निर्वाण का मतलब है राग, द्वेष और मोह की अग्नि का बुझ जाना। अर्थात् राग, द्वेष, मोह से मुक्ति। राग-द्वेष की आधीनता ही मनुष्य को दुःखी बनाती है और निर्वाण तक नहीं पहुंचने देती। भगवान बुद्ध के अनुसार निर्दोष जीवन का ही दूसरा नाम निर्वाण है।
भगवान बुद्ध ने अपने आप को कभी श्रेष्ठ नहीं बताया। उन्होंने हमेशा यही कहा कि वे भी बहुत से मनुष्यों में से एक हैं और उनका संदेश एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य को दिया गया संदेश हे। बुद्ध ने कहा उनका पथ मुक्ति का सत्य मार्ग है और कोई भी मनुष्य इस विषय में प्रश्न पूछ सकता है, परीक्षण कर सकता है और देख सकता है कि वह सन्मार्ग है।
बुद्ध ने आष्टांगिक मार्ग के साथ चार आर्य सत्य बताये। उनका पहला सत्य है बुढ़ापा दुःख है। मृत्यु दुःख है। हम जो इच्छा करते हैं उसकी प्राप्ति न होना दुःख है, जिसकी इच्छा नहीं करते उसकी प्राप्ति दुःख है। जो प्रिय है, उसका वियोग सबसे बड़ा दुःख है। दूसरा सत्य दुःख का कारण तृष्णा है। तृष्णा ही दुःख का मूल कारण है। तीसरा सत्य है कि तृष्णा के त्याग से ही दुःख का निरोध सम्भव है। जब तृष्णा का सर्वनाश होता है तभी दुःख का अंत होता है। तृष्णा की जननी इच्छा है और जब तक इसकी पूर्ति नहीं होती यह दुःख ही देती रहती है। चौथा सत्य है आर्य आष्टांगिक मार्ग पर चलने से आदमी सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है।
भगवान बुद्ध ने जीवन और धर्म में अनुभव को पहले स्थान पर रखा है, जबकि श्रद्धा को अनुभव के बाद। उनका कहता था कि अनुभव होगा तो श्रद्धा होगी, अनुभव होगा तो आस्था होगी। अनुभव को मजबूती प्रदान करते हुए उन्होंने कहाµमुझ पर भरोसा मत करना। मैं जो कहता हूं, उस पर इसलिये भरोसा मत करना कि मैं कहता हूं। सोचना, विचारना, जीना तुम्हारे अनुभव की कसौटी पर सही हो जाये तो ही सही ह। पूरे संसार को मध्यम मार्ग का सरल, सहज, आसान और अनुभवपरक मार्ग दिखाने वाले भगवान बुद्ध को उनकी जयंती बुद्ध पूर्णिमा पर कोटि-कोटि प्रणाम।
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Aapke shubh charno mei koti koti pranam vurudev