‘ध्यान’ की क्रिया में साधक मन को चेतना की एक विशेष अवस्था में लाने का अभ्यास करता है। ध्यान का उद्देश्य कोई लाभ प्राप्त करना हो सकता है या ध्यान प्राप्त करने का कोई भी लक्ष्य हो सकता है। ध्यान से कई क्रियाओं का बोध होता है। इसमें मन को शांति देने की सरल तकनीक से लेकर आंतरिक ऊर्जा या जीवन शक्ति (प्राण) का निर्माण करना करुणा, प्रेम, दया, धैर्य, उदारता, क्षमा आदि गुणों का विकास समाहित है। अलग-अलग संदर्भों में ध्यान का अलग-अलग अर्थ है। ध्यान का प्रयोग विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के रूप में अनादिकाल से किया जाता है। ध्यान के अभ्यास से हम अपने विचारों पर नियंत्रण कर लेते हैं और भावनात्मक रूप से शांत हो जाते हैं। योग और ध्यान के माध्यम से साधक शरीर और आत्मा से जुड़ा महसूस करता है। ध्यान के काम करने के तरीके को वैज्ञानिक रूप से देखने पर दिमाग में पांच तरह की तरंगें चलती हैं। इन तरंगों की आवृत्ति जितनी कम होगी साधक को उतनी ही शांति मिलती है। ध्यान के वक्त हमारी दिमागी तरंगें अल्फा में पहुंचती हैं जिससे हमें विश्रांति मिलती है। ध्यान में क्रमशः जैसे-जैसे हम निपुण होते जायेंगे, ये दिमागी तरंग अल्फा से थीटा और थीटा से डेल्टा में चली जाती है। थीटा की स्थिति में हम अपने आपको शांत पाते हैं और कठिन से कठिन परेशानियों का भी आसानी से हल निकाल लेते हैं। डेल्टा स्थिति में बौद्ध भिक्ष्ाु होते हैं। जो सालों-साल की कड़ी मेहनत के बाद इस स्थिति को पाते हैं।
ध्यान और योग दोनों एक सी साधना है, जिससे सबको बहुत लाभ होता है। ध्यान के नियमित अभ्यास से साधक में असीम शक्तियों का जन्म होता है। ध्यान से साधक का चित्त शांत हो जाता है, जिससे मन एकाग्र हो जाता है। संवाद करने में साधक स्पष्ट और सत्य बोलता है।
ध्यान करने वाले साधक के शरीर की आंतरिक क्रियाओं में विशेष परिवर्तन होता है। जिससे शरीर की प्रत्येक कोशिका प्राण तत्व (ऊर्जा) से भर जाता है। शरीर में प्राणतत्व भरने से प्रसन्नता, शांति और उत्साह की अनुभूति होने लगती है साधक को। ध्यान करने वाले को शारीरिक स्तर पर भी बहुत लाभ होता है| ऽ उच्च रक्तचाप में कमी, रक्त में लैक्टेट का कम होना जिससे व्यक्ति को व्याकुलता नहीं होती। तनाव से सम्बंधित शरीर का दर्द भी ध्यान से कम होकर बाद में ठीक हो जाता है। तनाव से उत्पन्न सिरदर्द, अनिद्रा, मांसपेशियां और जोड़ों के दर्द से मुक्ति दिलाता है। प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार होता है। ऊर्जा के आंतरिक ड्डोत में उन्नति के कारण ऊर्जा का स्तर काफी बढ़ जाता है।
ध्यान मस्तिष्क की तरंगों के स्वरूप को अल्फा स्तर तक ले जाता है। ध्यान कोई धर्म नहीं है किसी भी विचारधारा को मानने वाला व्यक्ति ध्यान का अभ्यास कर सकता है। मैं कुछ कहूँ, इस भाव को अनंत प्रयास रहित तरीके से समाहित कर देना और स्वयं को अनंत ब्रह्माण्ड का अविभाज्य हिस्सा समझना चाहिए। ध्यान के लाभों को महसूस करने के लिए ध्यान का नियमित अभ्यास आवश्यक है। प्रतिदिन की दिनचर्या में
एक बार आत्मसात कर लेने पर भी दिन अच्छा हो जाता है। ध्यान एक बीज की तरह है। जब आप बीज को प्यार से विकसित करते हैं तो वह उतना ही खिलता है, इसलिए ध्यान से आप अनंत गहराइयों में जाप और जीवन को उन्नत बनाकर भौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करें।
3 Comments
Pujye Guruver ke pavan charanon men koti koti Naman avm vandan karte hue apka bahut-bahut dhanyavad avm hirdye se abhar vyakt kartti huin
Dhyan avm Yog hamare jeevan ke liye bahut mahatvpurn he jiiako karne se Aatmik, sharirik vikas ke sath sath mansik shanti prapt hoti he. Yadii hum niymit roop se dhyan karte hein vo shanti prapt hoti he jiska shabdo me prakat karna sambh nahi. Yeh anubhav hota he ki hum sansarik vastuen ke piche nahi bhagate. Purn atm santushti ka ahsas hota. Man apman bhi shamil lagta he, aisa lagta he ki duniya ka khajana mil gaya he..
Guruvar yeh sab apke marg nirdeshan se sambh hai. Apka kirpa bhara hath sada hum pr bana rahe aisi me bhagwan swarup Guruver se prarthana karti huin ki hamari adhyatmik unnati ho. Apne. Sath sath sabka kalyan ke saken.
Ok
Aapki rehmato ka aabhar gurudev