“हुतं लाति इति होली” किसान जिस बीज को अपने खेत में बोता है, वही बीज उसे कई गुणा अधिक मात्र में वापस मिलता है। यह बोने और काटने के संदेश का पर्व होली है। दूसरे शब्दों में होली अर्थात जो हो लिया, जो बीत गया। उस अतीत के गिले-शिकवे, खट्टी-मीठी एवं कड़वी यादों को भुलाकर नए उत्साह, उमंग एवं उल्लास के साथ नए सवेरे के स्वागत के लिए उठ खड़े होना भी होली का संदेश है।
होली पर्व प्रतीक है नई शुरुआत का, नए सृजन का। ऊँच-नीच, गरीबी-अमीरी भुलाकर, नूतन माधुर्य, प्रेम के रंग से परस्पर जीवन जोड़ना होली है। होली में विविध रंगों में रंगे सभी चेहरे समान दिखाई देते हैं। कोई श्रेष्ठ या अश्रेष्ठ नहीं होता। अतः होली उत्सव है समता का, जिसमें वैर भाव को छोड़ एक हो जाने का, प्रेम रंग में स्वयं को एकाकार कर लेने का लक्ष्य है।
गृहसूत्र में ‘सौभाग्याय स्त्रीणां प्रातरनुष्ठीयते। तत्र होलाके राका देवता।।’
अर्थात् होला एक कर्म विशेष है, जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए सम्पादित होता है।
पूर्ण चंद्र देवता के संरक्षण में सम्पादित पर्व होला ही सम्भवतः समय के साथ ‘होली’ में बदल गया होगा। महर्षि जैमिनी के पूर्व मीमांसा में भी होली को ‘होलाका’ शब्द से सम्बोधित किया गया है।
वैदिक काल में इसे ‘नवान्नेष्टि’ पर्व कहा गया। होली पर्व में अधपके अन्न का हवन करके, उसके अंश को प्रसाद रूप में ग्रहण करने का विधान था। कहते हैं होली पर्व भगवान ‘मनु’ का जन्म दिवस भी है। भारत में मुगल काल से आधुनिक काल तक हिन्दू-मुश्लिम दोनों इसे मिलकर मनाते थे। शाहजहां के शासन काल में होली को ‘ईद ए गुलाबी’ या ‘आब ए पाशी’ अर्थात ‘रंगों के बौछार’ के पर्व नाम से सम्बोधित किया जाता था।
वास्तव में मनुष्य का जीवन उमंगों, तरंगों एवं अनेक रंगों से भरापूरा है। संतगण कहते हैं जिस क्षण अंतर में रंगों का भरा गुब्बारा फूट जाए, समझना जीवन में महोत्सव, त्यौहारों का प्राकट्य हो गया। होली ऐसा ही पर्व है। ‘‘जीवन में बसन्त, हर्षोल्लास एवं उमंग का प्रतीक उत्सव है होली। इस पर्व पर सभी लोग ईर्ष्या, द्वेष का त्याग कर प्रेम के रंग-बिरंगे रंगों में रंग जाते हैं।’’
इन दिनों प्रकृति भी अपने रंगों के साथ होली का ही भावपूर्ण पर्व मनाती है। प्रकृति के कण-कण में इन दिनों सुंदर फूल न जाने कितने रंगों में एक साथ उभरते हैं। लगता है परमात्मा ने अपने प्रेम को पृथ्वी पर प्रसन्नता भरे फूलों के रूप में बिखेर रखा है। जो संदेश देती है कि अब तक पीछे जो हो गया, सो हो गया, जो हो ली, सो हो ली। अब नई जिंदगी शुरू करनी है, जीवन में यह पर्व नये पड़ाव की शुरूवात ही तो है।
शास्त्र अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को होली उत्सव मनाया जाता है। माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी जिसे वसंत पंचमी भी कहते हैं। इस तिथि पर होली का प्रतीक एक-एक काष्ठ प्रत्येक गांव में गाड़ा जाता है। उसी दिन से लोग लकड़ियां आदि संचय करके होली को एक विराट आकार देते हैं। काष्ठ संचय के साथ वसंत राग गाये जाते हैं। शास्त्रें में भी फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पंचमी से पूर्णिमा तक की तिथियों में लकड़ी संचयन का विधान है।
‘पंचमी प्रमुखास्तास्तु तिथि योनन्त पुण्यदाः। दश स्युः शोभनास्तासु काष्टस्तयं विधीयते।।’
नारद पुराण कहता है
‘‘फाल्गुने पौर्णमायान्तु होलिका पूजनं स्मृतम्। पंचयं सर्वकाष्ठानाँ पालालानान्च कारयेत्।।’’
अर्थात निश्चित स्थान पर गोबर से लिपी तैयार पवित्र भूमि पर सूखी लकड़ी, गोबर के कंडे, घास-फूस आदि इकट्ठा करके उसे जलाकर होलिका का विधिवत पूजन करना चाहिए। दूसरे दिन उस होली राख को शरीर पर धारण करने का विधान बताया गया है। जिससे जीवन में अन्न, धन, सौभाग्य की रक्षा हो सके।
‘वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शंकरेण च। अतस्त्वं पाहि नो देवि विभूतिर्भूतिप्रदा भवेत्।।’
अर्थात इन्द्र, ब्रह्मा तथा शंकर द्वारा सम्मानित हे होलिके तू इस राख से मेरी रक्षा करे, हमारे सुख, समृद्धि, सौभाग्य की वृद्धि करे।
होली जलाने का भी एक विधान है, मंत्र संदेश देता है कि
‘दीपयाम्यद्यते घोर चिन्ति राक्षसी। सत्तमहिताय सर्व जगताँ प्रीतये पार्वतीयये।।’
अर्थात होलिके आज हम सब चिन्ता तथा दुःख देने वाली राक्षसी को जला रहे हैं। यह कार्य भगवान शिव को प्रसन्न करने तथा सारे संसार के लोक कल्याण के लिए किया जा रहा है।
वास्तव में होली लोक कल्याण भावना से होने वाले सामूहिक यज्ञ का भी पर्व है। इस यज्ञ से समस्त रिश्तों के बीच विश्वास जगता है।
दुनिया में जिस दिन यह विश्वास उठ जाएगा, उस दिन दुनिया ही खत्म हो जाएगी। सारे रिश्तों के बीच विश्वास मूल है। विश्वास के साथ है श्रद्धा और श्रद्धा के पीछे है प्रेम। जीवन का सबसे सुंदर रंग प्रेम है। प्रेम ऐसा रंग है जिसमें हर कोई रंगना चाहता है, जीना चाहता है। जिस घर में प्रेम नहीं है, श्रद्धा विश्वास नहीं है, वह घर खुशियां नहीं देता। यदि विश्वास टूट गया, तो प्रेम के धागे भी टूट जाते हैं। होली जीवन में परस्पर प्रेम विस्तार का पर्व है।
भारतीय ऋषियों ने दुनिया में एक ही रंग बोया, वह है प्रेम, विश्वास, श्रद्धा का रंग। ये रंग जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर चढ़े, हर रिश्ते में बढ़े। यदि अपने रिश्तों में विश्वास बनाकर चल रहे हैं, तो निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। पर विश्वास के लिए अपने हितों की आहुति देनी पड़ती है। सम्बंधी को कोई दुःख, पीड़ा न मिले, उसके हिस्से की पीड़ा स्वयं के दामन में आ जाए। दूसरों के प्रति इस दिव्य भावना के विस्तार का पर्व है होली।