प्रेमपूर्ण, शान्त, सहज जीवन हों। श्वास भरकर ओमकार का उच्चारण कीजिए, ॐ .. अपने आत्मस्वरूप में स्थित हों! शरीर को स्थिर करें! प्राण को सहज, मन की चंचलता को शांत कीजिए! बुद्धि स्थिर, हृदय प्रेमपूर्ण हो।
प्रभु की करुणा से स्वयं को जोड़िए। दयालुदेव करुणानिधि करुणासागर परमेश्वर, वह अपनी करुणा बरसा रहे हैं। सूर्य से प्रकाश के रूप में उसकी प्यारी धूप, उसमें उसकी करुणाएं हैं। उसके फल फूल सब में करुणा।
वह करुणानिधान करुणामय होकर आप सब पर जीवमात्र पर अपना प्रेम अपनी दया अपनी करुणा बरसा रहा है! करुणामय प्रभु ने हमारे जीवन को सहज बनाने के लिए अनेक अनेक साधन दिए, उसके प्रति मन ही मन धन्यवाद कीजिए और प्रभु के उस नाम को जिसको आप जपते हैं उसे मन मन में तीन बार उच्चारण कीजिए।
चांद सितारों में झिलमिलाता हुआ उसका प्रकाश और इस धरती पर चारों ओर आती हुई कृपाएं जो शान्ति सुख चैन दे रही हैं इसी रूप में वह हमें स्पर्श कर रहा है! उसके प्रेम को अनुभव कीजिए। कृतज्ञता प्रकट करें! आभारी हूं भगवान धन्यवादी हूं! तू तो मुझसे जुड़ा हुआ है लेकिन मैं ही तुझसे नहीं जुड़ पाता!
संसार में हमारी वृत्तियां हमको बिखेर देती हैं! और हम भटक जाते हैं और फिर इस भीड़ के भेड़चाल वाले रवैए में अपने आपको मिला लेते हैं!
हमें अपने आकर्षण में बांधो प्रभु! सांसारिक कर्तव्य कर्म भी पूर्ण हो सकें पर आपके होकर जी सकें!
हमारे व्यवहार में आपकी करुणा, आपकी कृपा, आपका स्वरुप झलके! हमारे लेनदेन में आप ही बस जाओ भगवान! सब रूपों में आप हमें अनुभूति कराइए और हमारे कर्म में भी आपकी अनुभूति हो! हमारा व्यवहार भी आपसे जुड़ा हुआ हो, हमारे अंदर की दिव्यता प्रकट हो और हम अपने आनंद में अपनी शान्ति में अपने सुख में अपने चैन में अपने प्रेम में जी सकें।
शान्त, संतुष्ट, संतुलित, आनंदित और प्रसन्न, निर्भय और निश्चिंत जीवन जी सकें हमें आशीष दीजिए। सबका ही कल्याण हो सभी सुखी सभी प्रसन्न रहें। प्रभु विनती है हमारी यही स्वीकार हो!