बहुत प्रेम से आंखे बंद करें।
शांति अपने माथे पर और मस्तिष्क में उतरने दें।
चेहरे पर आनंद का भाव हो, हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम और समस्त जगत के प्रति प्रेम, दुखीजनों के प्रति करुणा।
स्वयं, समर्थ, सक्षम और स्वाभिमानी होने के लिए मन में भाव जगाएं।
मैं प्रेमपूर्ण हूं, खुश हूं, प्रभु का कृपा पात्र हूं!
मेरे ऊपर प्रभु का आशीर्वाद बरस रहा है!
अपने गुरुमंत्र के अखंड नियम से रक्षित हूं मैं।
धर्म मेरा कवच है, पुण्य मेरा साथी, हर दिन मैं अपने कर्तव्य कर्म करते हुए प्रभु की ओर बढ़ रहा हूं।
ऐसा एफर्मेशन ऐसा संकल्प अपने मन में जागृत कीजिए। प्रभु से आशीष मांगिए कि प्रभु मेरी आंतरिक शक्ति को, क्षमता को, सामर्थ्य को जागृत करो। मुझे अपने स्वरुप में ढालो। शास्त्र ने कहा कि परमात्मा ने अपने मनुष्य को अपना रुप देकर ही धरती पर उतारा। लेकिन वह प्रकृति में, माया में पड़कर अपने आपको पाप पंक में धूसरित करके, गंदा करके बैठ गया।
हम अपने स्वरुप में स्थित हों, स्वयं को धोएं, स्वच्छ करें, शद्ध हों, पावन हों। प्रभु हमें आशीष दीजिए!
सभी का मंगल हो, सभी का कल्याण हो!
ॐ शांति शांति: ॐ