आइए दोनों हाथ जोड़कर इस पवित्र बेला में प्रभु से अपने हृदय के भाव कहें कि! प्रभु जब तुम्हारा ध्यान आया और तुम्हारे लिए ही सोचा,
हमारी वाणी में जब तुम्हारा नाम बस गया, हमारे चिंतन में जब आप बस गए सब ओर आप ही आप महसूस होने लगे तो हमारी सारी चिंताएं आपने ले लीं, हमारी व्यवस्थाएं आप ने ले लीं!
हर अवस्था में हर स्थिति में हमें जो भी आप दे रहे थे हम उसको आपका प्रसाद समझकर आनंदित थे क्योंकि हमें पता था कि जो भी आप हमारे लिए कर रहे हैं उसमें हमारा कल्याण छिपा हुआ है! हमारा समर्पण जब संपूर्ण था तो हम निश्चिंत थे।
मां बाप के सहारे बच्चे बड़े होते हैं! और युवा होते होते तक उन्हें समझ में आता है कि न कोई चिंता थी न कोई फिकर था न कोई आशंका थी सारा भार तो संभाल रखा था माता-पिता ने! और जब हम अपने स्वयं के पांव पर खड़े होकर अपने आप इस दुनिया की परीक्षाएं देने के लिए खड़े होते हैं न जाने कहां-कहां से कितनी चिंताएं कितना दर्द कितनी पीड़ाएं कितनी तरह की निराशाएं जीवन में आकर लग जाती हैं!
प्रभु हमने अपने समस्त स्वरूप को आपको देखकर निश्चिंत हो जाना है। जिस तरह से बच्चे मां बाप के सहारे बड़े होते जाते हैं और वही उनके जीवन का सबसे स्वर्णिम काल होता है भक्त का भी स्वर्णिम काल वही है जब वह अपने पिता परमात्मा के सहारे अपने जीवन का आनंद ले! हमारा संपूर्ण समर्पण आपके लिए! यह वाणी यह मन यह हृदय हमारे समस्त साधन आपने दिए हैं आपकी ओर जाने के लिए!
हम इस मायालोक में संसार में उलझकर लक्ष्य को भूल जाते हैं! हमें सुबुद्धि दो कि हमारी वाणी में आपका नाम प्रतिष्ठित हो! हमारी आंखों में आपका प्रेम स्थित हो! और हमारे पांव आपकी राह में चलने लग जाएं! हे प्रभु आशीष दीजिए!