परमात्मा ( दयालुदेव ) जो आनन्द स्वरुप है उसके आनन्द से और उस संपदा से अपने को सम्बंधित कीजिये। जो इस संसार का सौन्दर्य और इस संसार की शुभता बनती है उस खुशी को अपने अंदर अनुभव करें। और प्यारे परमेश्वर से उसके अनंत प्रेम को मांगिये जिस प्रेम से उसने संसार की रचना की, फूलों में सुगन्धि सौंदर्य और कोमलता प्रदान की, पंछियों के पंखों को रंगा और उनके कंठों में माधुर्य घोला।
जिस प्रेम को लेकर परमात्मा ने इस धरती पर हर जीव को बसाया और उसकी रक्षा करने के लिए भी उसकी कृपा काम करती है उस प्रेम को अपने हृदय में धारण कीजिये। करुणापूर्ण हों, प्रसन्नता से युक्त हों। शान्ति और संतुलन मांगिये कि मन शान्त हो, संतुलित हो और स्वयं में संतुष्टि चाहिए।
हम थोड़ा पाकर भी तृप्त हो सकते हैं। जहां तृप्ति है बस वहीं व्यक्ति की संतुष्टि होने के कारण खुशी चेहरे पर आती है।
कि सब कुछ है और क्या चाहिए। व्यक्ति के अंदर की उद्विग्नता, विबलता, बेचैनी जब खत्म हो जाती है और भिखारीपन दूर हो जाता है भीतर से संपन्नता आ जाती है तो माना जाता है कि प्रभु (दयालुदेव) की कृपा से हम मालामाल हो गए। प्यारे ईश्वर से यही हम प्रार्थना करें!
हे दयालुदेव हम आपके प्रेम से परिपूर्ण रहें, आनन्द से भरपूर रहें, चेहरा प्रसन्नता से मुस्कुराहट से युक्त रहे और कर्म करने का जोश अंग-अंग में सदा बना रहे। जब तक इस संसार में हम हैं एक कर्मयोगी का जीवन जियें, दाता का जीवन जियें, वीरों का जीवन जियें और समझदार ज्ञानियों का जीवन जियें। सबका कल्याण हो सबके घर में सुख शान्ति आये प्रभु अपना आशीष दीजिये!
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति: ॐ