भगवान कृष्ण ने सबके लिए,अपने स्वभाव के अनुसार, भगवान की ओर जाने का आसान रास्ता बताया। आप जहां हो, जैसे हो, जिस स्थिति में हो- वहां से प्रभु की ओर जा सकते हो, निर्लिप्त जीवन जी सकते हो।
करुणा से बढ़कर दुनिया में कोई धर्म नहीं। दुनिया में काम आने की चेष्टा हम जरूर करें। सेवा भगवान की तरफ जाने का सुंदर माध्यम है।
कीचड़ में जन्म लेकर, कमल निर्लिप्त होकर -शोभायमान होकर खिलता है। वैसे ही, हमारा जन्म कहीं भी हो, हम पुरुषार्थ करें और भगवान के चरणों में पहुंचे। दुनिया की शोभा बने।
निर्लिप्त होने का मतलब है- अटैचमेंट इतनी ना हो के आप के प्राण वस्तुओं में बसे। आपके हृदय में दुनिया के स्वामी रहे ,दुनिया नहीं।
दुनिया में अनासक्त होकर बसना है, आसक्त होकर फसना नहीं।
जिंदगी संतुलन का नाम है। सामने डर , चिंता ,निराशा, गुस्सा, लालच हो तो संतुलन खो जाता है। संतुलन का अभ्यास करना है।
एकांत में, शांत होकर अपनी जिंदगी का विश्लेषण करें। जन्म से बुढ़ापे तक- आखरी समय तक खुद को देखें-सोचे क्या पाया जीवन में और साथ क्या जाएगा?
जीवन में किसीकी उपेक्षा नहीं करो और किसीसे भी कोई अपेक्षा मत रखो! यही निर्लिप्त जीवन जीने की कला है!
जीवन की उप्लाभ्दियों पर ध्यान दो और सात्विक जीवन जीने का प्रयास करो जिस में सेवा भाव भी हो!
4 Comments
Oum Guruwe Namah
shashishekharmishra06@gmail.com
मैं भगवान की सेवा करना चाहता हूं. लेकिन मुझे कोई माध्यम नहीं मिल रहा,
मैं भगवान की सेवा करना चाहता हूं. लेकिन मुझे कोई माध्यम नहीं मिल रहा, मुझे सद्गुरु जी तो मिल गए हैं, लेकिन उन की तरफ से कोई सेवा नही मिल रही है