हमारी प्राचीन देवपूर्ण संस्कृति का प्राकट्य एवं विस्तार के मूल गुरुकुल शिक्षण केन्द्र रहे हैं। ऋषि संस्कृति से ओतप्रोत शिक्षण के सहारे मानव में श्रेष्ठ उदात्त संस्कार, उत्तम आचरण एवं जीवन में सर्वांगीण विकास का बीजारोपण सम्भव हुआ है। इस गुरुकुलीय संस्कृति के बल पर मनुष्य में अपने अस्तित्व के प्रति गरिमामय सोच, जीवन के प्रति आत्मगौरव, धार्मिक चेतना, ईश्वरीय आस्था एवं समाज के प्रति श्रेष्ठ कर्त्तव्यों के मापदण्ड गढ़ने में मदद मिली। गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली के बल पर भारतभूमि पुण्यभूमि, ज्ञान भूमि, तपो भूमि, गुरुओं, महान सद्पुरुषों की महान संस्कृति, सद्शिक्षा, संस्कार, सभ्यता, सद्भावों की भूमि कही गयी। इसीलिए गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली विश्व प्रसिद्ध रही है।
राष्ट्रभक्ति, धर्म-संस्कृति, सेवा-परोपकार भाव जैसे अनेक पक्षों का जन-जन के अंतःकरण में जागरण से लेकर उनका लोक परम्परा में नियोजन हुआ। देश को विदेशी शासकों की दासता से मुक्ति में भी गुरुकुल क्रांति के आधार बने। वास्तव में गुरुकुल एक प्रकार से मानव निर्माण की समग्र सोच से ओतप्रोत आदर्श जीवन पद्धति देने वाली शिक्षा व्यवस्था है, जिसमें मनुष्य, पशु, पक्षी, प्राणीमात्र से लेकर पर्यावरण के पोषण-संवर्धन का ख्याल रखा जाता था। युग के मानकों के अनुरूप लोक परम्परा को नवप्राण एवं नवदिशा देना हमारे गुरुकुलों का लक्ष्य था। इनकी शिक्षा पद्धति शोधपरक थी तथा स्नातक अपने आचार्यों के मार्गदर्शन-संरक्षण में देश-विश्व की आवश्यकता अनुरूप प्रकृति एवं प्राणिजगत में समन्वय वाले शोध शिक्षण के सहारे लोकमानस को उच्चतम शिखर पर ले जाने में अहर्निश समर्पित रहते थे।
मानव को विद्ययाऽमृतमश्नुते अर्थात् विद्या से अमृतत्त्व की प्राप्ति कराना इसका लक्ष्य था। व्यक्तित्व में स्थिरता, संतुलन, धैर्य, गाम्भीर्य का प्रकटीकरण, वाणी में सत्य की प्रतिष्ठा, व्यक्ति के भीतर की भगवत्ता को जागृत करना एवं ‘प्रज्ञा पूर्वरूपं श्रद्धाउत्तररूपम्’ अर्थात् श्रद्धा-निष्ठा से ओतप्रोत सम्पूर्ण विश्व में योग्यतम मानव के रूप में हर स्नातक को प्रकाशित करना गुरुकुल का ध्येय लक्ष्य था। परिणामतः देश के शिक्षण संस्थान विक्रमशिला, नालन्दा, तक्षशिला, धौम्य का अवन्ती गुरुकुल, द्रोण का गुरुग्राम, वनप्रान्त आदि देशभर में स्थित सम्पूर्ण गुरुकुल शिक्षणशालाओं के बल पर भारत को सदियों तक प्रतिष्ठित होने का गौरव मिला। इसी कारण सदियों तक भारत ‘विश्व गुरु’ के पद पर प्रतिष्ठित रहा।
हमारी इस प्राचीन शिक्षा का एक स्वरूप था जन जन में यज्ञीय भावना का जागरण करना। वास्तव में समाज, देश, विश्व अगर जीवित है, सत् की दिशा में सतत विकासशील है, तो उसका आधार है यज्ञशीलता और यज्ञशील जनमानस। ऋषि परम्परा पर स्थापित हमारे गुरुकुल अनन्तकाल से यज्ञशील मानव गढ़ने की टकशाल रूप में सेवारत रहे हैं।
गुरुकुल की शिक्षा प्रणाली अनन्तकाल से नई पीढ़ी में संवेदनशीलता, पराई पीड़ा को अपना समझकर दूसरों के दुःख-दर्द दूर करने की भावना का जागरण, करुणा, सेवा, सहयोग, लोकमंगल, दान, शील, परस्पर सहअस्तित्व, स्नेह एवं परोपकारी भाव जगाकर एक दृष्टि से यज्ञीय भावना के बीजारोपण का ही तो कार्य करती आ रही है।
‘सन् 1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल थे। अर्थात देश के हर गांव में एक गुरुकुल के बल पर यहां की शिक्षा व्यवस्था अत्यंत उन्नत शिखर पर थी। वह भी निःशुल्क 18 विषय पढ़ाये जाते थे। भारत में आ पड़ी 800 वर्षों की मुगल दासता एवं अंग्रेजों की मैकाले शिक्षा पद्धति के दुष्प्रभाव ने गुरुकुलों के आंगन से झांकते भारतीय गौरवपूर्ण इतिहास, संस्कृति, सभ्यता, साहित्य को विखण्डित करके, देश के जन-जन को हीनता से ग्रसित कर दिया। रही सही कसर ब्रिटिश सरकार ने हमारी देशी गुरुकुल शिक्षा को गैर कानूनी घोषित करके पूरी कर दी।
आज देश की भावी पीढ़ी को अपने पूर्वजों, महान पुरुषों, अपनी सभ्यता-संस्कृति, धर्म और सद्परम्पराओं का उपहास करने की वृत्ति से बाहर निकालना हमारे गुरुकुल का लक्ष्य है। वास्तव में देश की युवा पीढ़ी को उस मानसिक दासता से बाहर निकालने की दिशा में हमारा विश्व जागृति मिशन और उसका मुख्यालय आनंदधाम आश्रम, दिल्ली स्थित ‘महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ’ एवं इसके अनुसांगित शिक्षण तंत्र पूरे दशभर में अपने स्थापना काल से ही अहर्निश प्रयत्नशील है। भविष्य में देश की युवा पीढ़ी अपने सनातन गौरव को और संस्कारगत जीवन शैली में स्थित होने में सफल हो यही मिशन का उद्देश्य है।
3 Comments
Very nice
क्या आज एक भी गुरुकुल भारत में नही है जो वेदिक शिक्षा प्रदान कर सके ? वो भी बीना किसी भारी आर्थिक बोझ के ? कोई मेरा मार्गदर्शन करें
Mujhe bahut aacha laga.My name is Santram .I Request Respected sir,I want join your gurukul…but I have not your no…