सदैव से इस धरा के ऋषि, संत, अध्यात्मवेत्ता व गुरु प्राचीन सनातन ऋषियों की परम्पराओं के बीज बोकर अपने भक्तों, शिष्यों में करुणा के सहारे सद्वृत्तियों के बदलाव की बयार बहाते आ रहे हैं। उनका लक्ष्य रहा है कि मानव में ‘‘देवत्व का उदय हो, धरती पर स्वर्ग अवतरित हो, परमात्मा की यह वसुधा फिर से सुख, समृद्धि, शांति से लहलहाये, सज्जनों के रहने लायक बने, देश-धर्म एवं संस्कृति, सेवा के कार्य चलें, गौसेवा, शिक्षा सेवा, वृद्ध सेवा, देवालय सेवा आदि के सहारे आत्म कल्याण, मानव व मानवता का उत्थान हो और परमात्मा का उद्देश्य पूरा हो। जीवन व समाज, दुनियां में प्रेम-शांति-न्याय, देवत्व भाव जगे, इसके लिए अंतःकरण में करुणा, प्रेम सहानुभूति जगाने की आवश्यकता है।
वास्तव में सम्पूर्ण प्राणीमात्र करुण संवेदना से एक दूसरे से जुड़ा है। करुणा भरी संवेदना मानव व प्राणिमात्र में सेवा-सहायता के भाव जगाती है। अंतःकरण जब अंदर से करुण हो उठता है, तो करुणा के ऊपर ही पूजा-आराधना, सेवा से लेकर आध्यात्मिक भौतिक जीवन की सफलता के बीज अंकुरित होते हैं।
इसीलिए जीवन में करुणा भरी संवेदनशीलता के उदय में मानव धर्म के उदय की अनुभूति होती है, इसी में सम्पूर्ण मानवता का, सम्पूर्ण भारत व भारतीयता, इस वसुधा का समुज्ज्वल भविष्य निहित है। हमारा विश्व जागृति मिशन प्रेम, करुणा-संवेदना पर ही तो टिका है। करोड़ों साधकों के माध्यम से देश-विदेश तक लोगों के अंतःकरण में करुणा-संवेदना, प्रेम सहानुभूति जगाने का अभियान भी इसे कह सकते हैं।
हमारा विश्व जागृति मिशन अभियान अपने जन्मकाल से ही करोड़ों श्रद्धालुओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने, उनके घर-परिवारों में प्रेम, सद्भाव एवं सद्संकल्प के दीप जलाने तथा संपर्क में आने वालों के जीवन का धर्ममय, भत्तिफ़मय जीवन पथ प्रशस्त करके उन्हें अपने जीवन ध्येय से जोड़ने में अहर्निश संलग्न है। हजारों श्रद्धालुगण मंत्र जप, सद्विचार, योग, प्राणायाम, गौसेवा, शिक्षा सेवा एवं ध्यान-साधना आदि बहुआयामी प्रयोगों द्वारा अपने जीवन में आत्मविकास, सुख, शांति, समृद्धि एवं आध्यात्मिक प्रगति अनुभव कर पा रहे हैं। इस अभियान द्वारा लाखों लोग धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, सेवा एवं मानवकल्याण की ओर मुड़ने हेतु संकल्पित हुए और हो रहे हैं।
घर-परिवार के बीच अपनत्व भावना का जागरण हो, समाज के बीच परस्पर प्रेम भावना का विकास हो, इस सबके मूल में एक मात्र तत्व काम करता है, वह है करुणा। देश-राष्ट्र व भारतमाता की करुण पुकार को सुनकर ही कभी देश की आजादी के लिए लाखों व्यक्तियों ने अपना व्यापार छोड़ा, नौकरी, परिवार, सुख-चैन छोड़ा, व्यक्तिगत उन्नति के बजाय देश की उन्नति में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था और कभी मुगलकाल की क्रूर शासन व्यवस्था को नेस्तनाबूत करके हिन्दू धर्म-संस्कृति की स्थापना करने के पीछे देश के लाखों लोगों के अंतःकरण में देश-धर्म-संस्कृति के प्रति करुणा का जागरण ही जनसैलाब बनकर प्रकट हुआ। वास्तव में यह सब अनुभव बताते हैं कि करुणा ही व्यक्तिगत जीवन व समाज स्तर पर रूपांतरण लाता है। किसी के प्रति करुणा भावना ही उसमें प्रेम और सहानुभूति भाव जगाता है।
आत्मविज्ञान की मान्यता है कि व्यक्ति के निजी चिन्तन, चरित्र, आचरण एवं व्यवहार में उत्कृष्टता और भावनाओं में पवित्रता, संवेदनशीलता लाकर ही व्यक्ति व समाज का वास्तविक कायाकल्प कर पाना संभव है। इस स्तर का बदलाव मनुष्य के अंदर करुणा भाव जगाकर सम्भव है। क्योंकि परिवार, समूह, समाज से लेकर देश के किसी तंत्र अथवा सम्पूर्ण विश्व में बदलाव लाने के लिए सर्व प्रथम मनुष्य को बदलना आवश्यक है। मनुष्य ही वह इकाई है, जिनकी कड़ियों को जोड़कर समाज से लेकर विश्व तक का रूपांतरण एवं मनचाहा विकास संभव बनता हैै।
मनुष्य के बदलते ही उसके आस-पास के सम्पूर्ण वातावरण एवं सम्पूर्ण समाज को बदलते देर नहीं लगती। मनुष्य के अंदर जब करुणा का जागरण होता है, तब वह पिघलता और बदलता है, यही वह मूल है। इस बदलाव से व्यक्ति में अपने लिए कठोरता, दूसरों के लिए उदारता का भाव पैदा होता है, इस संसार के प्राणिमात्र करुणामय व्यवहार से सहज परिवर्तित होते देखे गये हैं। भारतीय संतो के आश्रमों का करुणा भरा व्यवहार ही शेर और बकरी दोनों को कभी एक ही घाट पर पानी पीने को प्रेरित करता था।
वास्तव में हमने करोड़ों लोगों में अपनी अंतःकरण की करुणा का संचार करके ही उनकी भावना एवं उसकी आत्मा को जगाया है। प्रत्येक निकट आने वाले व्यक्ति को उसके निज स्वभाव में स्थित करने, उसके मन, विचार तथा संकल्प में पवित्रता जगाने, उन्हें आध्यात्मिक, धार्मिक, साधनात्मक सेवापरक अनेक धर्मादा प्रकल्पों के लिए पुरुषार्थी बनाने में लगाया है। देश के उपेक्षितों, वंचितों, असहायों, निराश तथा पीड़ितजनों की सेवा के लिए बहुविधि प्रयत्न की कार्ययोजनायें भी इसी करुणा, प्रेम सहानुभूति के बल पर बनाई। जन-जन की आत्मा को प्रवृत्तिगत क्षुद्रताओं से बाहर निकालने के लिए ध्यान, मंत्रजप, सिमरन, स्वाध्याय, सेवा-संस्कारों के बीज लोगों के मनों में जो बोते हुए आप लोग देखते हैं, उनके पीछे कर्मकाण्ड कम करुणा, प्रेम, संवेदना व सहानुभूति की मात्र कहीं अधिक है।
इस प्रकार करोड़ों व्यक्तियों में परिवर्तन लाकर यह विश्व जागृति मिशन परिवार खड़ा किया। वास्तव में ‘‘करुणा व सेवा के सहारे मानव सेवा, मानव के आत्मनिर्माण की साधना’’ हमारा लक्ष्य है। इस दृष्टि से विश्व जागृति मिशन के सम्पूर्ण अभियान को मानव के आंतरिक कायाकल्प एवं सामाजिक परिवर्तन का अभियान भी कह सकते हैं। जब करुणामय हृदय के साथ आध्यात्मिक चेतना से भरा संदेश आम जनमानस के बीच प्रवाहित होता है, तो युवा पीढ़ी सहित समाज का विशाल वर्ग आध्यात्मिक अंगड़ाई लेता है। उसी शक्ति से हमने जन-जन को आत्म साधना, आत्मविकास एवं सेवा से जोड़ा। इस प्रकार यह मिशन ‘‘दृष्टि बदलो, सृष्टि बदले’’ सूत्र के साथ परिवर्तन का मूल संदेश बन गया।
हमारा स्वप्न है कि हर व्यक्ति के जीवन में करुणा, प्रेम सहानुभूति इस गहराई तक उतरे कि प्रत्येक परिवार की हर सन्तानें अपने माता-पिता को सुख, सम्मान और आदर दें, युवा अपने कर्त्तव्य एवं दायित्व को समझें और अपनी ऊर्जा का प्रयोग धर्म, संस्कृति एवं जीवनमूल्यों की रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रनिर्माण में नियोजित करें। हमारा यह स्वप्न भी है। समाज में नारी को समुचित सम्मान मिले और हर बच्चा मां की ममता और पिता के प्यार की छांव में स्वस्थ पोषण, संरक्षण, आत्मविकास का पथ पाये।
इस धरा पर कोई अनाथ न कहलाए। सम्पूर्ण विश्व शांति, सौहार्द, भ्रातृभाव, सहयोग और अहिंसा की भावधारा से ओतप्रोत हो, मानवता देवत्व की ऊंचाईयों को स्पर्श करे। व्यक्ति शुचिता, सद्प्रवृत्ति संवर्धन का वाहक बने, प्रत्येक परिवार ऋषि मूल्यों व भारतीय संस्कारों की टकसाल बनकर नररत्नों को गढ़ने का केन्द्र बनें। घर-घर संस्कारवान, प्रतिभाशाली पीढ़ी खड़ी हो, जो धर्म, संस्कृति, मानवता और विश्व वसुधा को स्वस्थ, सशक्त, आत्मनिर्भर व समृद्धशाली बनाने में अपनी युगीन भूमिका निभाये।
जन जन में करुणा, प्रेम सहानुभूति जगाने हेतु स्वयं अपने विश्व जागृति मिशन के द्वारा जगह-जगह सेवा-साधना के उपक्रम प्रारम्भ किये हैं। नई पीढ़ी गढ़ने के लिए गुरुकुल की स्थापना, वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम, अनाथों के दर्द को समझकर बालाश्रमों का निर्माण, झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के संरक्षण, पोषण, संस्कार, शिक्षण, स्वावलम्बन और उनकी आत्मनिर्भरता के लिए फरीदाबाद में ज्ञानदीप विद्यालय की स्थापना, जिसमें 1400 से अधिक निर्धन बालक-बालिकाएं निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
इसी के साथ आदिवासी क्षेत्र झारखण्ड के रुक्का एवं खूंटी जैसे स्थलों पर 1300 से अधिक आदिवासी निराश्रित बच्चों के लिए निःशुल्क विद्यालयों की स्थापनायें की। इसी क्रम में सूरत तथा कानपुर के गुरुकुल आते हैं। वहीं करुणासिंधु धर्मार्थ अस्पताल के माध्यम से नित्य हजारों लोग आज तक निःशुल्क स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे अनेक प्रकल्पों की स्थापना के पीछे हमारा उद्देश्य है कि हमारे देश के अग्रगण्य, धर्म पुरोधा, संस्कृति पुरोधा भी अंतिम पायदान पर खडे़ व्यक्तियों के प्रति करुणावान बनें, प्रेममय बनें और सहानुभूति-अपनत्व से भर उठें, अपने भावों को संवेदनशील बनायें।
जिससे पुनः प्राचीन सेवा-साधना की संस्कृति लहलहा सके। धर्म, संस्कृति, संस्कार, भक्ति, आश्रम, संतत्व, धर्मतंत्र और देश की संतानों, नागरिकों के प्रति प्राचीनकाल के संतो, ऋषियों के समान पुनः करुणा, प्रेम एवं सहानुभूति भाव भरें, जिससे यह संसार सेवा-साधना के सहारे सज्जनों के रहने लायक बन सके।
तब ही सदियों तक मानवता प्रकाशित रह सकेगी, दुनिया सेवा साधना के प्रति संकल्पवान बनकर तप, पुण्य का अर्जन कर सकेगी तथा समाज करुणा, प्रेम, सदभाव, सहयोग, सहानुभूति से लहलहा सकेगा, चहुंदिश धर्म, आध्यात्मिक शांति, छायेगी और इक्कीसवीं सदी की नयी पीढ़ी करुणावान हो सकेगी। इस मिशन के करुणा, प्रेम सहानुभूति योग से करोड़ों लोगों का रूपांतरण हो रहा है। समाज-विश्व इससे आत्मिक व आध्यात्मिक बोध पा रहा है।