दुख का सिमरन सब करें, सुख का करे न कोये
जो सुख का सिमरन करे तो दुख काहे को होए।
खुश रहने की आदत बनाओ तो कोई दुखी होने की जरुरत नहीं है!
कबीरा तू हारा भला, और जीतन दे संसार;
जीते को जम ले जाएगा और हारा हर के द्वार!
हारकर स्वयं को, समर्पण करके ही तुम अपने हर के, शिव के द्वार पहुंचोगे क्योंकि समर्पण ही तुम्हें वहां लेकर जायेगा!
बूँद समायी समुंदर में, यह जानत है सब कोई |
समुंदर समाया बूँद में, बुझे बिरला कोई |
परमात्मा हमारे अंदर समाया हुआ है जैसे एक बूँद में समुन्दर है! आप बूँद की तरह हैं जिसमें सारा समुन्द्र समाया हुआ है लेकिन प्रकट नहीं है! इस लिए निडर होकर जियो!
कबीर सब जग निर्धना , धनवंता नाहि कोय |
धनवंता सोई जानिए, राम नाम धन होय ||
सारी दुनिया निर्धन दिखाई देती है लेकिन जिसके पास परमात्मा का नाम धन है बस वही है अमीर , उसीको धनवान मानना !
लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल |
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ||
परमात्मा के प्रेम के रंग की लाली, पूरी दुनिया में छायी हुई है, और यही रंग है जो दुनिया को बांधे हुए है! आप भी अपने परमात्मा के रंग से खुद को रंग लो, दुनिया को रंग दो और फिर हर एक में उस परमात्मा को देखो!
तू तू करता तू भया, मुझमें रही न हूँ |
बारी फेरी बलि गई, जित देखू तित तू ||
आपकी हूँ ही आपको परमात्मा से दूर रखती है! अहंकार की ध्वनि को हटाओ और ओंकार की ध्वनि को जगाओ! तू ही है, तू ही है कहते हुए अपनी अकड़ को हटाओ और बस उसके ही हो जाओ!
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