गायों की सेवा व सुरक्षा से होगा विश्व का कल्याण

गायों की सेवा व सुरक्षा से होगा विश्व का कल्याण

The service and security of cows will be the welfare of the world | Sudhanshuji Maharaj

(विश्व पशु कल्याण दिवस 4 अक्टूबर पर विशेष)

प्रकृति ने हमें पैड़-पौघे, पहाड,, नदियाँ, समुद्र, पशु-पक्षी सभी कुछ दिया है। प्रकृति ने मानव के विकास के रास्ते विविध तरीकों से खोले हैं। मानव को सोचने-समझने और अपने जीवन के साथ-साथ प्रकृति की बनाई हुए प्रत्येक वस्तु के संरक्षण का ज्ञान प्रदान किया है। मानव इस संसार में सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी है। ईश्वर ने विवेक तो मात्र उसे ही प्रदान किया है। प्रभु ने पशुओं में गाय को सर्वोत्तम बनाया है। यदि इस संसार में गाय नहीं होती तो हमारे लिए जीवन यापन-करना बहुत ही कठिन हो जाता। इसलिए गायों की सेवा व सुरक्षा से ही विश्व का कल्याण सम्भव है।

विश्व पशु कल्याण दिवस की शुरुआत:

विश्व पशु कल्याण दिवस जानवरों के महान संरक्षक रहे असीसी केसेंट फ्रांसिस के जन्मोत्सव के अवसर पर मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत वर्ष 1931 में इटली के शहर फ्जोरेंस में विज्ञान-शास्त्रियों के सम्मेलन में की गयी थी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पशु कल्याण पर एक विस्तृत घोषणा के तहत नियम एवं निर्देशों के अधीन अनेक कार्यक्रमों की शुरुआत की। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी घोषणा में जानवरों के दर्द और उनकी पीड़ा को महसूस किया तथा जानवरों को संवेदनशील प्राणी के रूप में जगह देने की बात पर पूर्ण जोर दिया। हमस ब जानते हैं कि जंगलों की कटाई के कारण अनेक जंगली जानवर विश्व से विलुप्त होते जा रहे हैं, उन्हें बचाने एवं मानव के उनके साथ सम्बन्ध बनाने पर विशेष ध्यान देने पर बल दिया है। यूएनओ ने इसीलिए इस दिवस को मनाने का निर्णय लिया गया। इसके साथ-साथ करोड़ों हिन्दुओं की आस्था की प्रतीक ‘गौमाता’ की हत्या पर पूर्ण रूप से पाबन्दी लगाने पर भी विशेष बल दिया गया।

इस दिवस को मनाने का मूल कारण:

मानव एवं प्रकृति के साथ सन्तुलन बनाने के लिए पशुओं का इस पृथ्वी पर रहना बहुत ही आवश्यक है। पशुओं से हमें दूध मिलता है, इनके बच्चे किसानों के लिए खेती में काम आते हैं, बोझा ढोने के काम आते हैं, इन बैलों का यातायात के लिए भी प्रयोग किया जाता है। कुत्ता एवं बिल्ली आदि हमारे घरों की देखभाल करते हैं जिससे चोरी होने का खतरा कम होता है। पालतू जानवरों के घर में होने से बच्चों में दूसरों पर दया करने की भावना उत्पन्न होती है, मिल बाँटकर खाने की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है, अकेलापन दूर होता है तथा ये मानसिक तनाव को दूर करने का सबसे उत्तम साधन है।

इस दिवस को मनाने का मूल कारण यह है कि विश्व के सभी नर-नारियों, बूढ़े-बच्चों, सभी समूहों और विभिन्न प्रकार के गैर राजनैतिक संगठनों को पशुओं की सुरक्षा और उनके पालन-पालन हेतु उनका समर्थन प्राप्त करना अनिवार्य है। इस दिवस को ‘पशु प्रेमी दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है। हमें जानवरों के प्रति घृणा का व्यवहार नही करना चाहिए। आपदा के समय में हमें पशुओं को भी बचाना चाहिए, उनके साथ निम्न दर्ज का व्यवहार नहीं करना चाहिए।

इस दिवस पर अनेकों समारोहों का आयोजन:

पशु कल्याण दिवस पर अनेकों समारोहों का आयोजन किया जाता है। यथा-

समारोहों के जरिये आवारा घूमने वाले पशुओं के लिए आश्रयों का उद्घाटन।

आवारा पशुओं के चारा-पानी के लिए धन एकत्र करने हेतु आयोजन।

स्कूलों एवं अन्य सामुदायिक केन्द्रों पर वन्य जीवों और पशुओं के बारे में जानकारी देने सम्बन्धी कार्यक्रम।

इन कार्यक्रमों के जरिए यह समझाया जाता है कि जंगली जानवर हमारे दुश्मन नहीं हैं, बल्कि हमारे मित्र हैं। उनके साथ कैसा व्यवहार करें, उनसे अपनी रक्षा किस प्रकार करें? आदि जानकारियाँ दी जाती है।

पशु कल्याण के लिए कानूनी व्यवस्था:

पशु कल्याण हेतु अनेकों कानूनों और अधिनियमों को बनाया गया है। जिनमें से मुख्य हैं-

विश्व में जानवरों के सम्बन्ध में ब्रिटेन में प्रथम अधिनियम ‘पशु क्रूरता अधिनियम 1935 आदि।

वर्ष 1911 का ‘पशु संरक्षण अधिनियम’।
वर्ष 1966 का अमेरिकी राष्ट्रीय कानून ‘पशु कल्याण अधिनियम’ इत्यादि भी पशुओं के कल्याण हेतु बनाए गए।

भारत में भी करीब-करीब हर ब्लाॅक स्तर पर एक पशु चिकित्सा केन्द्र की स्थापना की गई है, जो पशुओं की बीमारी, उनकी शल्य चिकित्सा, गर्भ धारण, बांझ निवारण आदि बीमारियों की चिकित्सा करता है तथा पशु पालकों को परामर्श देता है।

विश्व में गोहत्या पर पूर्ण पाबन्दी लगानी आवश्यक:

भारत के ऋषि-मुनियों ने सिद्ध कर दिया था कि गाय के दूध, घी, गौमूत्र और गोबर में अद्भुत शक्ति है। जिस पशु में इतने सारे गुण हो, उसकी हत्या करने से विश्व का भारी नुकसान होता है। इसलिए इसकी हत्या पर पाबन्दी लगाई जाए और जो इसकी हत्या करता हुआ पाया जाए, उसको कठोर दण्ड दिया जाए।

गाय के गुणों को देखते हुए भारत के 29 राज्यों में से 10 राज्य ऐसे हैं जहाँ गाय, बछड़ा, बैल, सांड को काटने और उसका मांस खाने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। देश के अन्य राज्यों में गो-हत्या पर पूरी तरह अथवा आंशिक रूप से रोक लगी हुई है। गो-हत्या पर कुछ राज्यों में जुर्माने के साथ-साथ कारावास की सजा दी जाती है।

हमारे देश भारत में प्राचीनकाल में कौन व्यक्ति कितनी गौयें रखता है, उसके हिसाब से उसकी हैसियत आंकी जाती थी। भगवान श्रीकृष्ण के गाय प्रेम को सभी भारतवासी अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिए उनका एक नाम ‘गोपाल’ भी पड़ा। समुद्र मन्थन में कामधेनु नाम की गाय निकली थी जो ऋषियों के खान-पान आदि का पूरा ध्यान रखती थी। भारत में गाय को रोजाना रोटी देने का चलन है और गौमाता के नाम से पुकारा जाता है। दीपावली के अवसर पर गोवर्धन पूजा के दिन गायों की ही पूजा की जाती है। अतीत काल में गोवंश अर्थव्यवस्था का बहुत ही कारगर साधन रहा है और आज भी है।

विश्व जागृति मिशन का गौ-सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान:

भारतीय संस्कृति में गाय को माता कहा गया है। उसे समस्त शुभ कार्यों एवं धार्मिक कृत्यों की सम्पूर्ति में सहायक माना गया है। इसी भावना से विश्व जागृति मिशन के आनन्दधाम आश्रम में ‘आदर्श कामधेनु गौशाला’ की स्थापना कई वर्ष पूर्व की गई है। गौशाला में कई भारतीय नस्लों की 150 से अधिक गायों की सेवा बड़े अच्छे ढंग से की जा रही है। इस गौशाला को ‘कामधेनु मन्दिर’ भी कहा जाता है, जहाँ का गोदुग्ध आश्रम के अन्तःवासियों को भी पहुँचता है। आश्रम में स्थित गुरुकुल के बच्चों को भी गोदुग्ध दिया जाता है, ताकि उनका शारीरिक, मानसिक विकास हो सके। इसके अलावा बच्चों के कोमल अन्तःकरण को सात्विक बनाने के उद्देश्य में भी मदद मिल सके।

गौशाला में शोधार्थी गौविज्ञान पर अनुसंधान कार्य भी करते हैं और उस ज्ञान का प्रसार देश के कोने-कोने में करते हैं। गौशाला के माध्यम से जैविक खेती के सुविकास में तो मदद मिलती ही है, परिसर को जैविक बनाये रखने में भारी सहायता मिलती है। नई दिल्ली स्थित आनन्दधाम आश्रम के अलावा उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद एवं कानपुर, तेलंगाना के हैदराबाद, राजस्थान के लालसोट, कर्नाटक के बैंगलुरू तथा हरियाणा के पानीपत एवं करनाल में सेवारत गौशालाओं में 1200 से अधिक गोवंश की समुचित सेवा की जा रही है।

मेरा देशवासियों से आग्रह है कि गौ-सेवा के क्षेत्र में अपने आपको और अधिक सक्रिय करें तथा विश्व की प्रगति में सहायक बनें।

निष्कर्षः

जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चे के पालन-पोषण में अपना सब कुछ खुशी-खुशी खर्च करते है और उसे कामयाब बनाते हैं ताकि बुढ़ापे का सहारा बन सके, उसी प्रकार गाय के बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा किया जाता है ताकि बड़ी होकर वह हमारी सेवा कर सके। बड़ी होकर गाय हमारे लिए दूध, घी, गोबर, गौमूत्र आदि देती है जो हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं। गाय हमें बछडे़ देती है जो हमारी खेती करने के काम में आते हैं। गाय एक ऐसा सीधा-साधा जानवर है जो कभी भी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता। गाय के दूध में पौष्टिक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते है। गाय के घी और गौमूत्र का उपयोग अनेक आयुर्वेदिक औषधियाँ बनाने के काम में किया जाता है। गाय के गोबर से फसलों को उत्तम खाद प्राप्त होती है। इसलिए गाय की हत्या नहीं करनी चाहिए। बूढ़ी होने पर भी गाय हमें गोबर एवं गौमूत्र देती रहती है, उसका यदि ठीक से उपयोग किया जाए तो धन प्राप्त होता है। अतः गाय कभी हमारे ऊपर बोझ नहीं बनती। इसलिए जिस प्रकार हम अपने बुजुर्गों की सेवा करते हैं, उसी प्रकार बुजुर्ग गाय की सेवा भी हमें करते रहना चाहिए इससे न केवल हमारी आर्थिक क्षमता बढ़ेगी, बल्कि हमें पुण्य प्राप्त होगा।

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