दोनों हाथ जोड़ लीजिए और प्रेमपूर्वक आंखें बन्द करें! मन और मस्तिष्क को शान्त कीजिए। एक लंबा गहरा श्वास भर के धीरे-धीरे छोड़िए। अब श्वास भर के ॐकार का उच्चारण करेंगे। प्रार्थना – हे दयानिधान प्रभु, सर्वशक्तिमान, हे परम पावन श्रद्धा भरा प्रणाम स्वीकार हो। इस पवित्र वेला में हम सभी आपके द्वारा दिए गए समस्त अनुदान और वरदानों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए श्रद्धा भाव से अपना सिर झुकाते हैं! हे परम सत्ता, हे परमपिता परमेश्वर हम सभी आपकी शरण में हैं।
इस संसार में हम जिस प्रकार के बुद्धि लेकर कार्य करते हैं! जिस प्रकार के विचार रखते हैं, जिस प्रकार की हमारी संगति, हमारी सोसाइटी, हमारा समाज जैसे लोगों में हम बैठने लगते हैं, जैसा स्वभाव हम बना लेते हैं!
बस वैसे ही हमारी पात्रता विकसित हो जाती है, वैसी औकात बन जाती है। वह पात्रता ही हमें हमारे नसीब को बनाने लगती है, फिर उसी के अनुरूप हम प्रभु आपके खजाने से पाते हैं और जब हमें जीवन में बहुत थोड़ा मिलता है, चीखते चिल्लाते हैं, हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
आप कहते हैं! कि तुम अपनी पात्रता बदलो और खजाने से अपने पात्रता के अनुसार जितना चाहो लो, बड़ी पात्रता बड़ा कुछ तुम्हें मिलेगा, जो प्रभु आपका समर्पित हो जाता है और आपका हो जाता है वह फिर खजाना नहीं चाहता तो फिर आपको चाहता है। जो आपको चाहता है, उसे आप ही मिलते हैं और फिर अष्ट सिद्धि नव निधि समस्त विभूतियां उसके पीछे चलती हैं।
क्योंकि उसके भीतर शान्ति और तृप्ति आ जाती है। उसका मन संतुलन से भर जाता है, उसका चेहरा आनंद और प्रसन्नता से युक्त रहता है। उसके जीवन में उत्साह बना रहता है, वह तितिक्षा शक्ति से युक्त हो जाता है, उसके अंदर बर्दाश्त करना, निभाना, तालमेल मिलाना और सबको प्रेम के धागे में बांधकर गुलदस्ता सजाकर जीवन को सुखद बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
जीवन के गुलदस्ते में फूलों के साथ कांटे भी फूलों के साथ खरपतवार भी पत्ते भी हैं! कांटे भी हैं बीच में फूल भी है! गुलदस्ता इसी से अच्छा लगता है जीवन के गुलदस्ते को जिसको सजाना आ गया वही प्रभु आपका हो जाता है और आपकी कृपा को पाता है। हम पर कृपा कीजिए कि ऐसे सुबुद्धि आए और हम अपनी दुनिया को सजा सकें, यही विनती है! प्रभु स्वीकार हो।