हर मानव अपने अंतःकरण में देव भाव जगाकर धरती पर ईश्वरीय इच्छा के अनुकूल जीवन जीने का लक्ष्य लेकर कार्य करता है। कोई नहीं चाहता कि उसका जीवन दयनीय बने, जग में अपयश का वह भागीदार बने, उसके प्रति लोगों की नकारात्मक दृष्टि बने, वह समाज में लांक्षित होकर जिये। न ही कोई चाहता है कि वह ऐसे कार्य करे जिससे जीवन दुख से भरे, सुख-सौभाग्य, सद्गति से वह वंचित रहे। इसके बावजूद भी करोंड़ों व्यक्ति का जीवन दुख, निराशा, हताशा, अपयश, दुर्भाग्य का कारक बन जाता है।
कभी कभी वह ऐसी परिस्थितियों से घिरा अनुभव करता है, जिसमें न तो उसे अपनी कमी नजर आती है, न ही उसे उन परिस्थितियों से बाहर निकलने का मार्ग सूझता है। जीवन के इन भंवरों के बीच से बाहर निकलने में कोई मदद कर पाता है, तो वह है सद्गुरु। विश्व जागृति मिशन के करोड़ों साधक इस संदर्भ में अत्यधिक सौभाग्यशाली हैं। करोड़ों शिष्यों के व्यक्तित्व को जगाने में उनके गुरुनिर्देशित सूत्र इस स्तर तक कारगर साबित हुए। इनसे करोड़ों साधक सेवा-सहकार से जुड़कर आत्म परिष्कार व आत्म उत्थान के उच्च सोपान को पाने में भी सफल हुए।
पूज्य सद्गुरुदेव महाराज जी कहते हैं कि-‘हर व्यक्ति सुख, आनन्द, प्रेम, सौभाग्य, शांति, निश्चिंतता, सुविधा, निर्भयता, निर्भय जीवन जीना चाहता है, ये सारी चीजें जहां से हमें मिलती हैं, वह स्त्रोत्र हमारा परमात्मा है। परमात्मा के स्त्रोत्र से जोड़ने में सहायक बनते हैं, सदगुरु की कृपा से प्राप्त उनके अनुभूत मार्गदर्शन, जीवन सूत्र जो साधक को नियमित अभ्यास के बल पर योगयुक्त कर देते हैं।’ पूज्य सद्गुरु द्वारा भक्तों-शिष्यों के लिए अनुभूत, सत्संग, साधना, सिमरन, स्वाध्याय, समर्पण, सहयोग एवं संतोष जैसे जीवन सूत्रें को इसी स्तर के सोभाग्यदायी ही तो हैं। करोड़ों लोगों ने अपनी समर्पण भावना-निष्ठा के साथ इनका पालन किया, अपने मानव जीवन को सौभाग्यशाली बनाकर अपने को धन्य किया और आज भी कर रहे हैं।
दूसरे की पीड़ा को देखकर सेवा के हाथ जब भी बढ़ते हैं, उसी क्षण जीवन में परमात्मा की कृपा बरसने लगती है। अंदर सुप्त पड़ा देवभाव जग पड़ता है, यही है जीवन में भगवान व गुरु का उतरना। पूज्य महाराजश्री ने इसी दैवीय प्रकृति को अंदर से जगाने के लिए पास आये करोड़ो भक्त, साधक, शिष्य को सर्वप्रथम सेवा से जुड़ने का संकल्प दिलाया। जिसमें जैसी सामर्थ्य थी, उसी स्तर से सेवा में लगा दिया अर्थात कोई सीधे श्रम के सहारे सेवाकार्य में उतरा, तो किसी व्यक्ति ने अपने धन, साधन, कला, क्षमता, योग्यता, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ को सेवा में लगाकर इस संसार को सुखमय बनाकर सुख-सौभाग्य का अवसर खोजा।
महाराजश्री से जुड़कर कुछ न कुछ सेवाधर्म को हर एक ने स्वीकारा। किसी ने पर्व-त्योहारों पर अपने व अपने बच्चों के लिए नये कपडे़ खरीदते समय एक सेट उस अभाव ग्रस्त के लिए भी खरीदा, जिसका इस दुनियां में कोई सहारा नहीं था। किसी ने अपने घर में आहार बनाते समय एक खुराक निकाल कर किसी जरूरतमंद की भूख मिटाई, किसी ने अपने लिए घर बनवाते समय उन लोगों के लिए सोचा, जिनके बच्चों के सिर पर क्षत नहीं है। इस प्रकार करोड़ों शिष्यों ने देशभर में सेवा के बीच अपने गुरुनिर्देशन में बोये। इस प्रकार जन जन के जीवन में करुणा भाव फूट पड़ा, मिशन के हजारों नर-नारी पीड़ित-दुखी देखकर उसके आंसू पोछने में जुट गये।
संसार के झंझावातों के कारण जो मनुष्य अपने स्त्रोत्र ईश्वर से बिछड़ गये, अपने निज स्वभाव को खोने लगे। सदगुरु ऐसे करोड़ो लोगों को सिमरन से जोड़कर उसके मूल निज स्वरूप तक पहुंचाने में सहायक बनते हैं। जिन लोगों ने गुरु मार्गदर्शन में सेवाकार्य के सहारे अपने हृदय को गलाया, गुरुसेवा से जुड़कर करुणा भाव जगाने में सफल रहे, उन्हें परमात्मा से जोड़ने की कृपा दृष्टि मिली, परमात्मा के आसन पर बैठकर सिमरन का अवसर दिया। इस प्रकार सद्गुरु के मार्गदर्शन एवं अनुशासन में नियमित सिमरन साधना-सत्संग से असंख्यों के जीवन योगयुक्त बनें, ईश्वर की शक्तियां जीवन के अंतःकरण से बहने लगीं। अंदर प्रेम, दया, मित्रता, करुणा, सहयोग, सदभावना, दान, सेवा, ममता जैसे भाव प्रखर हो उठे। समाज देवमय बनाने में मदद मिली।
जिनमें दूसरे के आंसुओं के साथ खुद के आंसू बहने के स्तर की जीवन में करुणा फूटी तो दुनियां का अपनत्व खिंचकर स्वयं की ओर आने लगा। इस प्रकार सिमरन भगवान के स्रोत से जोड़ने का योग बना। करोड़ों साधकों को परमात्मा के वियोग से मुक्त होकर संयुक्त होने का अवसर है सिमरन। परमात्मा तक पहुंचने की इस विधि से नित्य ब्रह्ममुहूर्त में करोड़ों साधक प्रातः उठकर अपने ईष्ट व सदगुरु का ध्यान करने, नियमित गुरुमंत्र जप करके नित्य अनुशासन से आत्म अनुसंधान करने और ईश्वर व गुरुकृपा पाने में सफल होने लगे। आज का विराट विश्व जागृति मिशन इसी परम्परा से संगठित होकर खड़ा हुआ।
जीवन में सिमरन की वृत्ति मजबूत हो इसके लिए गुरुदेव ने देशभर में सत्संग की बयार बहाई। इससे लाखों नर-नारी को अपने चित्त, मन, बुद्धि, इंद्रियों सहित सम्पूर्ण व्यक्तित्व को सही दिशा मेें लगाने की दृष्टि मिली। मन को टिकाने की, नापसंद को पसंद में बदलने की, पसंद के लिए धन्यवादी बनकर गुरु-परमात्मा के गुणों का गान करने की आदत जगी। आज सत्संग के सहारे मिशन के करोड़ो भक्त संसार के बीच रहकर परमात्मा की लीला के दर्शन कर रहे हैं।
इस प्रकार पूज्यवर के सत्संग से करोड़ों साधकों के जीवन में सेवा, सिमरन की पंखुड़ियां खिलीं, असंख्यसाधारण व्यक्ति असाधारण बनें। करोड़ों गुरुभक्तों ने अपने पवित्र धन की सुगंधि से जीवन व समाज को महकाया। असंख्य लोगों के मन की चंचलता सधने लगी, सद पर स्थिर होने के संकल्प लोगों के अंतःकरण में उभारे। लोगों का मन परमात्मा के स्त्रोत्र से शक्ति पाकर भगवान की विभूतियों का स्वामी बनने लगा। अंतःकरण में बदलाव आये।
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जय गुरुदेव आपकी शरण पाकर जीवन मे कुछ सरसता आई जय गुरुदेव आपके श्री चरणों मे कोटि कोटि नमन नमन |