नचिकेता ने यमराज से प्रश्न किया-कुछ लोग यह विचार करते हैं कि मरने के बाद जीवन है और कुछ लोग कहते हैं कि जीवन नहीं है। इन्द्रलोक तो दिखाई देता है, परलोक नहीं दिखाई देता। परलोक क्या है? क्या मरने के बाद भी जीवन है?
नचिकेता ने यमराज से कहा, ‘‘हे यमराज! इसका सही उत्तर केवल आप दे सकते हैं, क्योंकि आप मृत्यु के अधिकर्ता हैं। मैं आपसे ही जानने के लिए आया हूँ कि मृत्यु क्या है? मरने के बाद जीवन है या नहीं? परलोक क्या है? इस सम्बन्ध में आप मुझे जानकारी दें। तीसरा वरदान मैं आपसे यही मांगता हूँ कि मुझे परलोक के सम्बन्ध में, मृत्यु के बाद के जीवन के सम्बन्ध में जानकारी दीजिए।’’
नचिकेता का प्रश्न सुनने के बाद यम ने उससे कहा, ‘‘यह जो प्रश्न तुमने किया है, तुम्हारी आयु के हिसाब से जानने योग्य नहीं है। आयु में आप छोटे हो, अभी आप संसार के सुख-भोग की बात करो। संसार में सुख-भोग के जो पदार्थ हैं, वह सब मैं तुम्हें दे सकता हूँ। राजसिंहासन चाहिये, वह तुम्हें मिल जायेगा। संसार में जिन सुखों के पीछे इंसान भागता है, वह सब सुख मैं तुम्हें दे सकता हूँ। नचिकेता! तुम संसार की वस्तुएं मांगो। मैं सोने के हाथी और रथ तुम्हें दूंगा। ऐसा परिवार दूंगा जो सैकड़ों वर्षों की आयु वाले होंगे। मैं तुम्हें मस्ती और संगीत-भरी जिंदगी दूंगा। जिससे डूबे हुए तुम आनंद से विहार करोगे। संसार की वासना की सारी वस्तुएं, सुविधाएं मैं तुम्हें दूंगा, जिनसे तुम आनन्दित हो सको।’’ यम के इस प्रलोभन को सुनकर नचिकेता ने एक और प्रश्न कर दिया-
संसार के ये भोग-विलास, जो आप मुझे दे रहे हैं, मनुष्य की इन्द्रियों को जलाते हैं, उसके तेज को क्षीण कर देते हैं। यह भी सत्य है कि यह सदा रहने वाले नहीं हैं। मनुष्य के शरीर की शक्तियां क्षीण हो जाती हैं, इन्द्रियां शिथिल हो जाती हैं और शरीर रोगी हो जाता है। आप मुझे संसार की सामर्थ्य और शक्तियां जितनी चाहो, दे दो, पर संसार के भोग कभी भी किसी को बहुत देर तक शांत नहीं रख सकते, सुखी नहीं रख सकते। यह ऐसी अग्नि है कि कोई इस अग्नि को बुझाना चाहे, तो यह बुझ नहीं सकती। इस अग्नि में संसार निरंतर जलता रहा है। मैं जलने के लिये नहीं आया हूँ, इससे पार होने के लिये आया हूँ।
यदि आप कहते हैं कि मैं तुम्हें धन दूंगा तो वास्तविकता तो यह है कि-मनुष्य को संसार में धन-दौलत मिल जाय, आदर-सम्मान मिल जाय तो व्यक्ति संतुष्ट हो जायेगा, लेकिन इस दुनिया में किसी को धन से संतुष्ट नहीं किया जा सकता। जितना भी धन मिल जायेगा, उतना ही कम नजर आयेगा। दौलत हमेशा कम ही नजर आती है। क्रोध और काम की तो सीमा-रेखा हो सकती है, लालच की कोई सीमा-रेखा नहीं होती। लालच का विस्तार लगातार होता रहता है। काम, क्रोध तो फिर भी चेहरे पर प्रकट होते दिखाई देते हैं, लेकिन लालच तो दिखाई भी नहीं देता, काम उठता है, तो इंसान को पागल कर देता है और उसकी बुद्धि को हर लेता है। व्यक्ति जहां जाना चाहता है वह उसे वहां जाने से रोक देता है। क्रोध आता है तो इंसान को अच्छी प्रवृत्ति के रास्ते से मोड़ देता है।
‘‘मैं इन सबसे दबने वाला, रुकने वाला नहीं हूँ। मेरी यात्रा आगे की है।’’ नचिकेता ने कहा, ‘‘हे यम! मैं संसार के इन साधनों से, इन खिलौनों से मन बहलाने वाला नहीं हूँ। मैं यही वरदान मांगता हूँ कि आप मुझे बताइये कि मरने के बाद क्या होता है?’’ यमराज ने उसे बार-बार प्रलोभन दिया।
मोह में पड़ोगे तो सेहत को दांव पर लगाना पड़ेगा। रोग आयेंगे, उनसे बचा नहीं जा सकेगा। भोग में रोग है। नीतिकारों ने लिखा है कि एक चीज पाओगे तो दूसरी जायेगी। कुछ तो दांव पर चढ़ाना ही पड़ेगा। मान प्राप्त करना होगा तो न जाने कितने-कितने अपमान सहकर मान की सीढ़ियां चढ़ोगे। धन प्राप्त करना है तो दुनिया में न जाने कितनी बार हानियां उठानी पड़ेंगी। एकदम तो नहीं पहुंच सकोगे धन प्राप्ति के लिए। सुख पाने के लिए न जाने कितना दुःख भोगना पड़ता है। दुनिया में हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। एक चीज आप पाओगे, दूसरी खो जायेगी।
यदि अपना आपा, अपनी मैं, अपना अहम् भगवान् को अर्पित कर सकते हो तो भगवान मिलेगा। अगर मैं, मैं रह जायेगा तब वह नहीं मिलेगा। कबीर ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा-‘‘जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।’’ दोनों साथ-साथ नहीं रह सकते, एक ही रहता है। तात्पर्य यह है कि अपने अहं को खोकर जब केवल परमात्मा को अपनाने की स्थिति में आओगे, तब ही उसकी प्राप्ति होगी।
यम ने परीक्षा लेने के लिए संसार के खिलौने नचिकेता के सामने रख दिये और कहा कि इनसे खेले, जैसे दुनिया खेलती है। पर, नचिकेता ने उन खिलौनों को छोड़ दिया और कहा कि मुझे अपने प्रश्न का उत्तर चाहिये, मुझे जानकारी चाहिये और कुछ नहीं चाहिये। इस संसार में जिस किसी ने भी इस बात की जिज्ञासा की, वह कुछ अनोखा ही करके गया। महात्मा बुद्ध का पहला नाम सिद्धार्थ था। उनके मन में प्रश्न था कि मृत्यु क्या है।
जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाये, अपनी समझ को विकसित करते जाइये। नचिकेता के मन में जो जिज्ञासा, जो प्रश्न उठे, आप सबके मन में भी उठने चाहिए। आप सबके मन में भी एक नचिकेता बैठा हुआ है जिस दिन उसे जगाना शुरू कर दोगे, उस दिन संसार भी समझ में आयेगा, संसार में रहकर कार्य करना भी आयेगा। मर कर तो संसार छूटेगा ही, तुम जीते-जी छोड़ने में सुख लो। नादानी और मजबूरी में छोड़ना दुःखदायी होता है। समझ कर, परख कर छोड़ना, त्याग करना आनंददायी होता है।
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श्री गुरूवे नमः