प्रेमपूर्वक दोनों हाथ जोड़िए और आंखें बंद कर लीजिए! घट-घट वासी अंतर्यामी सच्चिदानंद स्वरुप परमेश्वर का ध्यान करते हुए !अपना प्रेम परमेश्वर की ओर भेजिए और उसकी स्मृति, उसका ध्यान, उसकी याद मन में लाकर उसकी करुणा को अपने अंदर महसूस करते हुए
चेहरे पर खुशी का प्रसन्नता का भाव लाइए, और प्रभु का स्वागत करें, अभिनंदन करें हृदय में! कि मेरे दाता, मेरे भगवान मेरे हृदय में पधारो!
मेरे रोम-रोम में आपकी अनुभुति मुझे हो, दृष्टि में बसो!
मेरी दृष्टि दिव्य दृष्टि हो, देखने का ढंग बदल जाए, बोलने का तरीका बदल जाए, काम करने की शैली मधुर हो जाए, मेरे अंदर मीठा भाव आ जाए, व्यवहार में आकर्षण हो! लेकिन अंदर की कुटिलता, धूर्तता, कोई भी खोट, बेईमानी, छल-कपट, दिखावा वो सब अशुभ चीजें निकल जाएं!
परमात्मा आपका वास होगा! खाली पड़े घर में जैसे रहने लोग आ जाएं तो वहां के बसने वाले अंदर कीट-पतंग, गलत तरह के पक्षी जो भी अंदर कुछ गंदगी नकारात्मकता होती है वो बाहर चली जाती है! ऐसे प्रभु आप हमारे हृदय में बसो!
हमारे भीतर की सारी नकारात्मकता बाहर हो जाए! हम आपके लायक बनें आपके योग्य बनें, आपके प्रेम पात्र बनें! ये जीवन धन्य हो और धन्यता को अनुभव भी करें! प्रसन्न रहें, प्रसन्नता फैलाएं! शांति से युक्त हों और शांति को फैलाएं, अशांति को बाहर करें! किसी भी प्रकार से उद्वेग, भड़काने वाली बातें संसार भर में चारों तरफ होती हैं! अच्छे को बुरा कहना और उसे और बुरा साबित करना दुनिया का ढंग है!
हम अपने कर्तव्य से विमुख न हो जाएं, चरणों से आपके दूर न हो जाएं, सतकर्म न छोड़ बैठें, धर्म से विमुख न हों! अच्छी संगति देना भगवान और अंदर जागृति देना! यही हमारी विनती है स्वीकार करना और तेरे दर पर आए हुए जो भी प्यारे भक्त हैं भगवान सब पर अपनी करुणा बरसाना, सभी भाग्यशाली बन जाएं! विनती को स्वीकार करिए!