जो द्वैत और अद्वैत की भावना से ऊपर है, जो अपने आत्म-साक्षात्कार से प्रबुद्ध है; जो अज्ञान के अंधेरे से जाग्रत है ; और जो सर्वज्ञ है वह परम गुरु है! गुरु भक्ति से जीवन में निखार आता है!
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में गुरु का महत्व है-गुरु द्वारा व्यक्ति द्विज रूप प्राप्त करता है.. जो ज्ञान के द्वारा अपने को नया बनाये और अपने अंदर रूपांतरण लाए, वही उसका दूसरा जन्म होता है और ये गुरु कृपा से ही संभव होता है !
एक गुरु आराध्य, आदरणीय, पूजनीय होता है, और उत्तम सम्मान का पात्र होता है। वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। वह आपकी सफलता की कुंजी रखने वाले कई गुणों वाले एक विशेष व्यक्ति हैं, वह आपके गुरु हैं!
गुरु भक्ति, गुरु का शिष्य बनने के लिए सबसे पहली कसौटी है कि झुकना सीखो! भरने के लिए झुकना ज़रूरी है। जो विनम्र होगा उसे ही गुरु द्वारा ज्ञान प्रकट होगा! उसे गुरु भक्ति प्राप्त हो सकता है।
गुरु गीता में भगवान शिव माता पार्वती के प्रश्न का उतर देते हुए समझाते हैं कि गुरु ब्रह्म से अलग नहीं है गुरु ही ब्रह्म है!
गुरु वह जिसने शिक्षा के साथ दीक्षा और दीक्षा के साथ परमात्मा का हाथ पकड़ाया! उस से बड़ा कौन हो सकता है! आप भी गुरु के प्रति इतने समर्पित हो जाइए की गुरु अंदर प्रवेश करें और चमत्कार घटे!
प्रभु मिलन के आखरी परदे को तोड़ने के लिए चाहिए गुरु ! यह ज्ञान है गुरु गीता का जो भगवान शिव ने माँ पार्वती को समस्त विश्व के कल्याण के लिए सुनाया! गुरु गीता का पाठ कामना पूर्ति करनेवाला है और भक्ति प्रदान करनेवाला भी ! गुरु पूर्णिमा के दिनों में गुरु गीता का पाठ अवश्य करना चाहिए!
एक बेहतर समाज की रचना करने की जिम्मेदारी गुरु की होती है!
यह संसार और कुछ नहीं, हमारे अज्ञान से उत्पन्न एक भ्रम है और यह शरीर भी अज्ञान से उत्पन्न हुआ है! केवल गुरु की कृपा और ज्ञान ही हमें सत्य और असत्य के बीच अंतर करने और समझने की विश्लेषणात्मक क्षमता प्रदान करता है।