हमारे यहां नवरात्रि से ठीक पहले पितृपक्ष (श्राद्धपर्व) प्रारंभ होता है , इसमें हम लोग अपने पूर्वजों को स्मरण करते हैं जो इस धरती पर नहीं रहे ! सभी श्रद्धा भाव से उनके सम्मान में ब्राह्मणों का आथित्य करते है ! भोजन, वस्त्र द्रव्य इत्यादि भेंट करके उनके प्रति अपना आदर व्यक्त करते हैं!
जिस तिथि में उन्होंने इस धरती से यह शरीर छोड़ा उसी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाता है! इसी प्रार्थना के साथ कि उनकी आत्मा को शांति मिले! वह जहां भी हो,आनंदित रहें -इसी श्रृंखला में माता, पिता दादा दादी आदि सभी का तर्पण किया जाता है!
हमारी यह (श्राद्धपर्व) प्राचीन परंपरा है! और हमे इसका पालन करना भी चाहिए , इसी में हम कऊवा, गौ, कुत्ता आदि सभी का भाग निकालकर उन्हें अर्पित करते हैं जिसका अर्थ होता है कि हमे जीव मात्र की रक्षा के लिये अपने पास से उनके भोजन का अंश निकालना आवश्यक है !
यह एक अच्छी परंपरा है कि हम वर्ष में एक बार अपने पूर्वजों को स्मरण करते हैं जिनका अंश हम है। परंतु साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी हमे कार्य करना चाहिए वह ये की उनकी याद में वृक्षारोपन का कार्य करें! वृक्ष लगाना एक स्वस्थ परंपरा को जन्म देती है !
तर्पण हमारे पूर्वजों की छह पीढ़ियों के लिए किया जाता है! ब्राह्मण कोई डाकिया नहीं हैं जो आपके प्रसाद को पूर्वजों के पास ले जाएंगे, इसलिए इस परंपरा को बुद्धिमानी से और श्रद्धापूर्वक करें!
भगवान से दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें! पूर्वजों से प्रार्थना करें और उनका आशीर्वाद लें। उनका आशीर्वाद हमारे जीवन में शांति और समृद्धि लाए। इनके साथ ही यह भी अवश्य ध्यान रखें कि मृत पितरों के लिए तो हम पितृपक्ष मनाते है! परंतु जीवित माता पिता का सम्मान करने का ओर उनका ध्यान रखने का हमे ज्ञान ही नही होता !
इसलिए हम पितृपक्ष के ठीक बाद, 2 अक्टूबर को श्रद्धा पर्व मनाते हैं! यह पर्व हमारे जीवीत माता पिता हैं उनको समर्पित किया जाता है! श्रद्धा पर्व को सभी विश्व जाग्रति मिशन की शाखाओं में धूम धाम से मनाया जाता है! माता पिता के साथ साथ समाज के वरिष्ट नागरिकों का भी सम्मान किया जाता है! माता पिता के ओर वृद्धजनों के आशीर्वाद आपके जीवन मे वह चमत्कार घटित कर सकते हैं! जो आपने कल्पना भी नही की होगी – इसलिए उन्हें प्रसन्न रखना, आदर सम्मान देना, अपने भाव व्यक्त करना सभी का कर्तव्य है!
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We are an expansion of our ancestors. They gave us so much when alive. One day we will be in their category. The cycle goes on. Rituals help us respect them besides increasing our plus points ( punya). Om Guruve Namah