जो दिव्यता से जुड़ा है, जो सुख, प्रसन्नता, शांति, प्रेम, आनंद से जुड़ा है वह योगी है।
भगवान कृष्ण 18वें अध्याय में कहते हैं- सभी प्राणीमात्रों के ह्रदय स्थान में परमात्मा विराजमान है। संपूर्ण भाव भावना से उसी के शरण में जाओ, तो उसकी कृपा से तुम निश्चित ही परम शांति और परमधाम प्राप्त करोगे।
हम सब सुखी होना चाहते हैं, इसके लिए सुख के साधन बनाते हैं। सुख से पहले शांति आनी चाहिए। जहां मन में संतुलन है, जो सुव्यवस्थित है, जिसका जीवन सहज स्वाभाविक है- वह शांत है। और जहां शांति है वहां सुख होगा।
जीवन में सुख, प्रसन्नता, आनंद चाहते हो तो अपनी जडों को सींचना शुरू करें। शांति आप की जड़ है। शांति पाने के लिए जीवन में संतुलन बनाओ, और सुव्यवस्था बनाओ।
पत्तों को पानी सिंचने से पौधे हरे भरे नहीं रहा करते। इसके लिए जड़ों में पानी सिंचना जरूरी है। तुम भी समस्या के मूल में जाओ- कारण पकड़ो जहां से समस्या शुरू होती है, और उस पर काम करो तो जीवन में हरे भरे रहोगे।
जीवन अस्तव्यस्त हो, कृत्रिमता, दिखावा हो तो अशांति आएगी। प्रकृति के साथ तालमेल मिलाएं तो शांति आएगी। धर्म से जुड़े तो शांति आएगी, ईश्वर के प्रति प्रेमपूर्ण बने तो परम शांति मिलेगी।
हमें हर पल शांत, प्रसन्न, संतुष्ट और संतुलित रहना है। शांति के साथ सुख सुकून भी आएगा। जहां भी भगवान की कृपा है वहां सुख शांति होगी। इसलिए अपने दिन का थोड़ा समय शांति के लिए, संतुलन के लिए लगाओ!
गुरु मंत्र सिद्धि सीखें- जिससे सारा ऐश्वर्य मिले, मुस्कुराते हुए जीना आए, संतुलन बनाना आए, निश्चय में दृढता आए और अतः शांति प्राप्त हो! भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं- अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करना सीखें। भक्ति योग, ज्ञानयोग, कर्मयोग यह माध्यम है परमधाम में पहुंचने के और यही मार्ग हैं शांति प्राप्त करने के!
3 Comments
सही है यही करना चाहिए लोगों को
Hair om gurudev ji
I liked the story of watering the leaves instead of roots. It is related to the Chinese leader Mai Tse Tung. We should worry about the roots . Om Guruve Namah