प्रभु से, सद्गुरु से अपना ध्यान जोड़ते हुए निवेदन करें की देखते-देखते जीवन के कितने सारे महीने, कितने सारे वर्ष बीत गये, श्वासों की पूंजी कम हो रही है। धीरे-धीरे जग छूट रहा है। जो भी पाया, जो भी संजोया सब दुसरों के नाम छोड़कर हर चीज पराई करके इस दुनिया से विदाई लेने के लिए धीरे-धीरे समय नजदीक आता जाता है।
जो कमाया पुण्य वो साथ खड़ा होगा साथी बनकर और जो गलतियां हो गई वो राह में रोड़े बनकर सुख के मार्ग से, शांति के मार्ग से भटकाकर नरक की तरफ, दुःख देने की तरफ एक साथ सारे पाप उधर धकेलने के लिए कोशिश करेंगे। वही सब साथ आकर पहले आगे खड़े हो जाते हैं। पुण्य कवच बनकर खड़ा होता है, चोट मारता है पाप, कवच बनता है पुण्य।
ऐसे में बचाव के लिए गुरु की कृपा और की गई भक्ति वही उसके बीच से, दलदल के बीच से सहारा बनकर निकालती है। उसी के लिए भगवान से प्रार्थना करें कि प्रभु कभी हाथ न छोड़ना। जन्मों की यात्र जारी है। इस जन्म में सफलतापूर्ण मिल जाये। मैं अपने पुरुषार्थ से नहीं आपकी कृपा से पार लगना चाहता हूं।
गुरु के निकट आकर भी न जाने किसी से भी प्रभावित होकर किसी के भी व्यवहार से किसी के भी बात से किसी भी कारण से पाप का प्रभाव सामने आ जाता है। जो संन्मार्ग से भी खींचकर ले जाये वो तो पाप का कार्य करता है। जो भगवान को भी भगवान के रूप में न देख पाये, गुरु को भी गुरु के रूप में न देख पाये, तीर्थ को भी तीर्थ के रूप में न समझ पाये, मंदिरों में जहां सबकी मनोकामनाएं पूर्ण हो रही हो।
वहां भी श्रद्धा-विश्वास जाग पाये तो ध्यान रखना चाहिए। जरूर हमारे अंदर, हमारे कर्मों का आवरण सामने आकर हमें अपने सौभाग्य से दूर ले जाता है। तो निवेदन करें प्रभु से इस माया के आवरण को खींचकर अपने सत्य स्वरूप का दर्शन कराओ प्रभु। यो सावादित्ये पुरुषः सो सावहम्। आप आदित्य स्वरूप हो, प्रकाश रूप हो।
मैं भी तो आपका ही हूं। मुझे अपने स्वरूप में आप ढाल लीजिए, अपने रंग में रंग लीजिए, तेरी भक्ति का रंग चढ़े, तेरे संग का रंग जीवन में आये। जीवन की दशा बदले तो हमारे दिशा को आप ठीक करिए। तो चरणों में निवेदन है प्रभु हाथ पकड़े रखिये। नियम बना रहे। श्रद्धा बढ़ती रहे। सेवा होती रहे। साधना में कमी न आये।
सहयोग और सहानुभूति से हमारा मन कभी उचटे नहीं, उबे नहीं, प्रार्थना स्वीकार करना प्रभु, सभी का कल्याण करना तेरे दर से जुड़े हुए जो भी बैठे हैं। झोली फैलाये हुए हैं, सबकी झोलियां भरना। दुःख दूर करना। विनती यही है प्रभु स्वीकार करना।